"अनावृतबीजी": अवतरणों में अंतर

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एफिड्रा में नर और मादा शंकु अलग अलग पौधे पर निकलता है। केवल एफिड्रा की एक जाति, ए. फोलिपेटा, में ही एक पौधे पर दोनों प्रकार के शंकु पाए जाते हैं। नर शंकु से दो, तीन अथवा चार चक्र में लघुबीजाणुधानियाँ (microsporangiums) निकलती हैं। जहाँ से ये निकलती हैं, वहाँ चार-पाँच से आठ जोड़े तक शुल्क होते हैं, जिसमें दो जोड़े बाँझ होते हैं। बीजाणुधानी की संख्या ४-५ या ६ तक होती है। मादा शंकु काफी लंबा तथा २-३ या ४ चक्र में हरे रंग का होता है। सहपत्रों (bracts) की संख्या भी नर से अधिक होती है। अंडकोशिका (egg cell) के चारों ओर कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) भरा होता है। परागकण चिपचिपे द्रव के बूंद में फंस जाता है और लंबे बीजांडद्वार द्वारा खिंचकर अंड तक पहुँचता है। तीन या चार भ्रूण तक एक बीजांड में देखे गए हैं।
 
'''वेल्विशिया''' (Welwitschia) दक्षिण अफ्रीका के पश्चिम तट पर ही उगता है और कहीं भी नहीं पाया जाता। यह तट के कुछ मील के भीतर ही सीमित है। प्रथम इसे टमबोआ मिरैविलिस कहा गया था, परंतु बाद में इसके आविष्कारक डा.डॉ॰ वेल्विश के नाम पर इसे वेल्विश या मिरैविसि कहा गया। यह अत्यंत मरुद्भिदी (xerophytic), अर्थात् सूखे स्थान पर उगनेवाले पौधों जैसा, होता है। जहाँ यह उगता है वहाँ वर्ष भर की पूरी वर्षा लगभग एक इंच ही होती है। शक्ल सूरत तो गाजर जैसी होती है, पर इससे बहुत बड़ा, लगभग ३-४ फुट चौड़ा, होता है। पौधे के ऊपर एक मोदा आवरण बाह्यवल्क (periderm) होता है। मुख्यत: दो ही पत्तियाँ होती हैं, जो बहुत मोटे चमड़े के पट्टे की तरह होती हैं। मध्य भाग में लैंगिक जनन के अंग, जो पकने पर झड़कर गिर जाते हैं, निकलते हैं और वे निकलने के स्थान पर एक क्षतचिन्ह छोड़ देते हैं। पौधे की प्रथम दो पत्तियाँ ही, संपूर्ण जीवन भर बिना झड़े, लगभग ६०-७० या १०० वर्ष तक, लगी रहती हैं। तेज हवा के झोंके से पत्तियाँ लंबाई में, शिराओं की सीधी लाइन में, फट जाती हैं। शिखा से पत्ती सूखती चलती है और नीचे से बढ़ती चलती है। जड़ तो बहुत गहराई तक जाती है।,
 
वेल्विशिया के पौधे के काटने से पता चलता है कि तने तथा जड़ में कैल्शियम ऑक्सैलेट की बहुमुखी सूई के आकार की कंटिका (spicule) की तरह की कोशिकाएँ होती हैं। संवहन ऊतक (vascular tissue) भी कई प्रकार के पाए जाते हैं। नर शंकु और मादा शंकु अलग अलग बनते हैं। बीजांड प्रारंभ में हरे होते हैं, पर पकने पर चमकीले लाल हो जाते हैं। प्रत्येक शंकु में ६०--७० बीजांड होते हैं। उत्पत्ति और अन्य रूप से भी यह पौधा अपना साथी नहीं रखता और ऐसा लगता है कि इसने पौधे की किसी अन्य जाति को भी उत्पन्न नहीं किया है। यह एक जीवित फॉसिल है।