"अर्धसूत्रीविभाजन": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Meiosis Overview.svg|right|thumb|300px|सूत्रीविभाजन शामिल घटनाक्रम, गुणसूत्र विदेशी दिखाते हुए]]
 
[[जीवशास्त्र]] में '''अर्धसूत्रीविभाजन''' (उच्चारित {{Audio-IPA|en-us-meiosis.ogg|maɪˈoʊsɨs}}) ऋणात्मक विभाजन की एक प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक कोशिका में मौजूद क्रोमोसोमों की संख्या आधी हो जाती है. पशुओं में अर्धसूत्रीविभाजन हमेशा युग्मकों के निर्माण में परिणीत होता है, जबकि अन्य जीवों में इससे [[बीजाणु]] उत्पन्न हो सकते हैं.हैं। [[सूत्रीविभाजन]] की तरह ही, अर्धसूत्रीविभाजन के शुरू होने के पहले मौलिक कोशिका का डीएनए कोशिका-चक्र के [[S-प्रावस्था]] में दोहरा हो जाता है. दो कोशिका विभाजनों द्वारा ये दोहरे क्रोमोसोम चार [[अगुणित]] युग्मकों या बीजाणुओं में बंट जाते हैं.हैं।
 
अर्धसूत्रीविभाजन [[लैंगिक प्रजनन]] के लिये आवश्यक होता है और इसलिये यह सभी [[यूकैर्योसाइटों]] में होता है. कुछ युकैर्योसाइटों में, विशेषकर [[बीडेलॉइड]] [[रोटिफरों]] में अर्धसूत्रीविभाजन की क्षमता नहीं होती और वे [[अनिषेकजनन]] द्वारा प्रजनन करते हैं.हैं। [[आरकिया]] या [[बैक्टीरिया]] में अर्धसूत्रीविभाजन नहीं होता और वे [[बाइनरी विखंडन]] जैसी लैंगिक प्रक्रियाओं द्वारा प्रजनन करते हैं.हैं।
 
अर्धसूत्रीविभाजन के समय [[द्विगुणित]] [[जनन कोशिका]] का [[जीनोम]], जो [[क्रोमोसोमों]] में भरे हुए डीएनए के लंबे हिस्सों से बना होता है, का [[डीएनए]] दोहरापन और उसके बाद विभाजन के दो दौर होते हैं, जिससे चार [[अगुणित]] कोशिकाएं उत्पन्न होती हैं.हैं। इनमें से प्रत्येक कोशिका में मौलिक कोशिका के [[क्रोमोसोमों]] का एक संपूर्ण सेट या उसकी जीन-सामग्री का आधा भाग होता है. यदि अर्धसूत्रीविभाजन से युग्मक उत्पन्न हुए, तो ये कोशिकाएं को [[गर्भाधान]] के समय संयोजित होकर अन्य किसी भी तरह के विकास के पहले नई द्विगुणित कोशिका या [[यग्मज]] का निर्माण करती हैं.हैं। इस प्रकार अर्धसूत्रीविभाजन की विभाजन की प्रक्रिया गर्भाधान के समय दो जीनोमों के संयोग के प्रति होने वाली अन्योन्य प्रक्रिया होती है. चूंकि हर मातापिता के क्रोमोसोमों का अर्धसूत्रीविभाजन के समय [[समधर्मी पुनःसंयोग]] होता है, इसलिये प्रत्येक युग्मक और हर युग्मज के डीएनए में एक अनूठी सांकेतिक ''रूपरेखा'' निहित होती है. अर्धसूत्रीविभाजन और गर्भाधान, दोनो मिलकर यूकैर्योसाइटों में लैंगिकता का प्रादुर्भाव करते हैं और जनसमुदायों में विशिष्ट जीनगुणों वाले व्यक्तियों की उत्पत्ति करते हैं.हैं।
 
सभी पौधों और कई प्रोटिस्टों में अर्धसूत्रीविभाजन के परिणामस्वरूप बीजाणु नामक अगुणित कोशिकाओं का निर्माण होता है जो बिना गर्भाधान के अलैंगिक तरीके से विभाजित हो सकती हैं.हैं। इन समूहों में युग्मक सूत्रीविभाजन द्वारा उत्पन्न होते हैं.हैं।
 
अर्धसूत्रीविभाजन में क्रोमोसोमों के पुनःवितरण के लिये [[सूत्रीविभाजन]] में प्रयुक्त जैवरसायनिक पद्धतियों में से ही कई पद्धतियों का प्रयोग होता है. अर्धसूत्रीविभाजन की अनेक अनूठी विशेषताएं होती हैं, जिनमें [[समधर्मी क्रोमोसोमों का जोड़ीकरण]] और पुनःसंयोग सबसे महत्वपूर्ण है.
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{{Main|Biological life cycle}}
यूकार्योटिक जीवन चक्रों के [[लैंगिक प्रजनन]] के समय अर्धसूत्रीविभाजन होता है, जिसमें अर्धसूत्रीविभाजन और गर्भाधान की लगातार चक्रीय प्रक्रिया होती रहती है. यह सामान्य [[सूत्रीकोशिका]] विभाजन के साथ-साथ जारी रहता है. बहुकोशीय जीवों में द्विगुणित से अगुणित में परिवर्तनकाल के बीच एक मध्यस्थ पायदान होती है जहां जीव का विकास होता है. जीव तब [[जनन कोशिकाओं]] की उत्पत्ति करता है जो जीवन-चक्र में जारी रहती हैं.हैं। शेष कोशिकाएं, जिन्हें [[दैहिक कोशिकाएं]] कहा जाता है, जीव के भीतर कार्य करती हैं और उसके साथ [[मरती]] है.
 
अर्धसूत्रीविभाजन और गर्भाधान के चक्र के कारण अगुणित और द्विगुणित दशाएं बारी-बारी से दोहराई जाती हैं.हैं। जीवन-चक्र की जैविक अवस्था द्विगुणित दशा (''युग्मक'' या ''द्विगुणित'' जीवन-चक्र), अगुणित दशा (''युग्मज'' या ''अगुणित'' जीवन-चक्र), या दोनो (''बीजाणु'' या ''अगुणित-द्विगुणित'' जीवन-चक्र, जिसमें दो स्पष्ट जैविक अवस्थाएं होती हैं, एक अगुणित दशा में और दूसरी द्विगुणित दशा में) में हो सकती है. इस तरह, जैविक अवस्थाओं के स्थान के अनुसार, लैंगिक प्रजनन का प्रयोग करने वाले तीन प्रकार के जीवन-चक्र होते हैं.हैं।
 
''युग्मक जीवन-चक्र'' में, जो मनुष्यों में भी होता है, जाति द्विगुणित होती है और [[युग्मज]] नामक द्विगुणित कोशिका से विकसित होती है. जीव की द्विगुणित जनन-रेखा स्टेम कोशिकाएं अर्धसूत्रीविभाजन द्वारा अगुणित युग्मकों का निर्माण करती हैं (नर में [[शुक्राणु]] और मादा में [[डिम्ब]]) जो संयुक्त होकर युग्मज का निर्माण करते हैं.हैं। द्विगुणित युग्मज का [[सूत्रीविभाजन]] द्वारा अनेक बार कोशिका-विभाजन होकर जीव का विकास होता है. सूत्रीविभाजन अर्धसूत्रीविभाजन से संबंधित प्रक्रिया है जो पैतृक कोशिका के जीनात्मक सदृश दो कोशिकाओं का निर्माण करती है. सामान्य सिद्धांत यह है कि सूत्रीविभाजन से दैहिक कोशिकाएं और अर्धसूत्रीविभाजन से जनन कोशिकाएं उत्पन्न होती हैं.हैं।
 
''युग्मज जीवन-चक्र'' में जाति अगुणित होती है, जो [[युग्मक]] नामक एक एकल अगुणित कोशिका के प्रफलन और विभेदीकरण से उत्पन्न होती है. भिन्न लिंगों के दो जीव अपनी अगुणित जनन कोशिकाएं प्रदान करके एक द्विगुणित युग्मज का निर्माण करते हैं.हैं। इस युग्मज का तुरंत अर्धसूत्रीविभाजन हो जाता है, जिससे चार अगुणित कोशिकाओं की उत्पत्ति होती है. ये कोशिकाएं [[सूत्रीविभाजन]] द्वारा जीव का निर्माण करती हैं.हैं। कई [[कवक]] और [[प्रोटोजोआ]] युग्मज जीवन-चक्र के सदस्य हैं.हैं।
 
''बीजाणु जीवन-चक्र'' में, जीव में अगुणित और द्विगुणित दशाएं बारी-बारी से होती हैं.हैं। इसलिये इस चक्र को [[पीढ़ियों का अदल-बदल]] भी कहा जाता है. द्विगुणित जीव की जनन-रेखा कोशिकाओं का अर्धसूत्रीविभाजन होकर बीजाणुओं की उत्पत्ति होती है. ये बीजाणु सूत्रीविभाजन द्वारा प्रफलित होकर एक अगुणित जीव में विकसित होते हैं.हैं। फिर अगुणित जीव की जनन कोशिकाएं अन्य अगुणित जीव की कोशिकाओं से संयुक्त होकर युग्मज का निर्माण करती हैं.हैं। इस युग्मज का बार-बार सूत्रीविभाजन और प्रफलन होकर पुनः द्विगुणित जीव का विकास होता है. बीजाणु जीवन-चक्र को युग्मक और युग्मज जीवन-चक्रों का संयोजन कहा जा सकता हैं.हैं।
 
== प्रक्रिया ==
चूंकि अर्धसूत्रीविभाजन एक ‘एक-तरफा’ प्रक्रिया है, इसलिये सुत्रीविभाजन की तरह [[कोशिका-चक्र]] में जुटा हुआ नहीं माना जा सकता है. लेकिन अर्धसूत्रीविभाजन के पहले उसकी तैयारी के सोपानों के प्रकार और नाम सूत्रीविभाजक कोशिका चक्र के इंटरफ़ेज़ के समान ही होते हैं.हैं।
 
[[इंटरफ़ेज़]] की तीन अवस्थाएं होती हैं-
* '''[[विकास 1 (G1) अवस्थाः|विकास 1 (G<sub>1</sub>) अवस्थाः]]''' यह एक अत्यंत सक्रिय अवस्था है, जिसमें कोशिका अपने विकास के लिये आवश्यक एंजाइमों और रचनात्मक प्रोटीनों सहित अपने सारे प्रोटीनों का संश्लेषण करती है. इस G<sub>1</sub> अवस्था में प्रत्येक क्रोमोसोम में डीएनए का एक एकल (बहुत लंबा) अणु होता है. मनुष्यों में, इस दशा में दैहिक कोशिकाओं के समान ही कोशिकाओं में '''46 क्रोमोसोम, 2N''', होते हैं.हैं।
* '''[[संश्लेषण (S) अवस्थाः]]''' जीनीय पदार्थ दोहरा हो जाता है: प्रत्येक क्रोमोसोम की प्रतिकृति बनती है, जिससे दो सहोदरा क्रोमेटिडों से 46 क्रोमोसोम उत्पन्न होते हैं.हैं। कोशिका को अभी भी द्विगुणित ही माना जाता है क्यौंकि इसमें [[सेंट्रोमीयरों]] की संख्या यथातथित ही रहती है. एक समान दिखने वाले सहोदरा [[क्रोमेटिड]] लाइट माइक्रोस्कोप से देखे जा सकने वाले घने ऱूप में भरे हुए क्रोमोसोमों में अभी संघनित नहीं हुए होते हैं.हैं। ऐसा अर्धसूत्रीविभाजन के प्रोफेज़ I अवस्था में होता है.
* '''[[विकास 2 (G2) अवस्थाः|विकास 2 (G<sub>2</sub>) अवस्थाः]]''' G<sub>2</sub> अवस्था अर्धसूत्रीविभाजन में नहीं होती है.
 
इंटरफेज़ के बाद अर्धसूत्रीविभाजन I और फिर अर्धसूत्रीविभाजन II होता है. अर्धसूत्रीविभाजन I में दो सहोदरा क्रोमेटिडों से बने [[समरूपी क्रोमोसोमों]] की जोड़ियां अलग होकर दो कोशिकाओं में बदल जाती हैं.हैं। प्रत्येक कन्या कोशिका में क्रोमोसोमों की एक संपूर्ण अगुणित मात्रा होती है; पहला अर्धसूत्रीविभाजन मौलिक कोशिका की गुणिता को 2 के गुणक से घटा देता है.
 
अर्धसूत्रीविभाजन II में प्रत्येक क्रोमोसोम के सहोदरा धागों ([[क्रोमेटिड]]) का पृथक्कीकरण होता है और व्यक्तिगत क्रोमेटिड अगुणित कन्या कोशिकाओं में बंट जाते हैं.हैं। अर्धसूत्रीविभाजन I से उत्पन्न दो कोशिकाएं अर्धसूत्रीविभाजन II के समय विभाजित होती हैं, जिससे 4 अगुणित कन्या कोशिकाओं का निर्माण होता है. अर्धसूत्रीविभाजन I और II दोनो, [[प्रोफेज़]], [[मेटाफेज़]], [[एनाफेज़]] और [[टीलोफेज़]] में बंटे होते हैं, जिनका उद्धेश्य सूत्रीविभाजन कोशिका चक्र के समरूपी उपअवस्थाओं के समान ही होता है. इसलिये, अर्धसूत्रीविभाजन में अर्धसूत्रीविभाजन I (प्रोफेज़ I, मेटाफेज़ I, एनाफेज़ I और टीलोफेज़ I) और अर्धसूत्रीविभाजन II (प्रोफेज़ II, मेटाफेज़ II, एनाफेज़ II और टीलोफेज़ II) की अवस्थाएं शामिल होती है.
 
अर्धसूत्रीविभाजन जीनीय विविधता को दो तरह से उत्पन्न करता है (1) स्वतन्त्र संरेखन और तत्पश्चात पहले अर्धसूत्रीविभाजन के समय समरूपी क्रोमोसोमों की जोड़ियों का पृथक्कीकरण, जिससे प्रत्येक क्रोमोसोम सेग्रीगेटों का प्रत्येक युग्मक में अनियत और स्वतन्त्र चुनाव होता है और (2) प्रोफेज़ I में समरूपी पुनःसंयोग द्वारा समरूपी क्रोमोसोमीय क्षेत्रों का भौतिक विनिमय होकर क्रोमोसोमों के भीतर डीएनए के नए संयोजन बनते हैं.हैं।
 
[[चित्र:Meiosis diagram.jpg|thumb|right|300px|अर्धसूत्रीविभाजनिक चरणों का एक चित्र]]
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== अर्धसूत्रीविभाजन की अवस्थाएं ==
=== अर्धसूत्रीविभाजन I ===
अर्धसूत्रीविभाजन I समरूपी क्रोमोसोमों का पृथक्कीकरण करके दो अगुणित कोशिकाओं ('''N क्रोमोसोम, मनुष्यों में 23''' ) का निर्माण करता है, इसलिये इसे '''ऋणात्मक विभाजन''' कहा जाता है. नियमित द्विगुणित मानव कोशिका में 46 क्रोमोसोम होते हैं और उसे 2N माना जाता है क्योंकि उसमें समरूपी क्रोमोसोमों की 23 जोड़ियां होती हैं.हैं। लेकिन अर्धसूत्रीविभाजन I के बाद, हालांकि कोशिका में 46 क्रोमेटिड होता हैं, फिर भी उसे 23 क्रोमोसोमयुक्त N माना जाता है. ऐसा इसलिये होता है क्योंकि आगे चलकर एनाफे़ज़ I में, जिस समय तर्कु सहोदरा क्रोमेटिडों को नई कोशिका के ध्रुवों की तरफ खींचता है, तब यह जोड़ी साथ में बनी रहती है. अर्धसूत्रीविभाजन II में सूत्रीविभाजन के समान '''समीकरणी विभाजन''' होता है, जिससे सहोदरा क्रोमेटिड अंततः विभाजित हो जाते हैं और पहले विभाजन से उत्पन्न प्रति कन्या कोशिका से कुल 4 अगुणित कोशिकाओं ('''23 क्रोमोसोम, N''' ) की उत्पत्ति होती है.
 
==== प्रोफे़ज़ I ====
प्रोफ़ेज़ I में [[समरूपी पुनःसंयोग]] नामक प्रक्रिया से [[समरूपी क्रोमोसोमों]] के बीच डीएनए का आदान-प्रदान होता है. इससे अकसर [[क्रोमोसोमीय क्रासओवर]] होता है. क्रासओवर के समय बने डीएनए के नए संयोजन [[जीनीय परिवर्तनों]] के महत्वपूर्ण स्रोत होते है और [[एलीलों]] के नए लाभदायक संयोजनों की उत्पत्ति कर सकते हैं.हैं। युगल और दोहरे क्रोमोसोम बाईवालेंट या टेट्राड कहलाते हैं, जिनमें दो क्रोमोसोम और चार [[क्रोमेटिड]] होते हैं, हर माता-पिता से एक क्रोमोसोम प्राप्त होता है. इस अवस्था में, [[कियाज़्मा]] नामक विन्दुओं पर असहादरा क्रोमेटिडों का क्रासओवर हो सकता है.
 
===== लेप्टोटीन =====
प्रोफ़ेज़ I की पहली दशा ''लेप्टोटीन'' दशा है, जिसे ''लेप्टोनीमा'' (ग्रीक शब्द, अर्थात्-‘पतले धागे’) भी कहा जाता है.<ref name="Snustad-Simmons">स्नस्टड, डी. पीटर और सीमन्स, माइकल जे. 2006. ''आनुवंशिकी के सिद्धांत'' . 4थ एड, विले.</ref> इस अवस्था में, अकेले क्रोमोसोम केन्द्रक के भीतर लंबे भागों में संघनित होने लगता हैं.हैं। परंतु दोनो सहोदरा क्रोमेटिड अभी भी इतने बलपूर्वक बंधे होता हैं कि उन्हें एक दूसरे से अलग नहीं पहचाना जा सकता.
 
===== ज़ाइगोटीन =====
''ज़ाइगोटीन'' दशा में, जिसे ''ज़ाइगोनीमा'' (ग्रीक शब्द, अर्थात् ‘धागों की जोड़ियां’) भी कहा जाता है,<ref name="Snustad-Simmons"/> क्रोमोसोम समरूपी क्रोमोसोम जोड़ियों के ऱूप में पास-पास कतार में जमा हो जाते हैं.हैं। इसे गुलदस्ता दशा कहा जाता है, क्यौंकि टीलोमीयर इसके सदृश केन्द्रक के एक सिरे पर एकत्रित हो जाते हैं.हैं। इस दशा में, समरूपी क्रोमोसोमों का युगलीकरण होता है.
 
===== पैकीटीन =====
''पैकीटीन'' दशा में, जिसे ''पैकीनीमा'' (ग्रीक शब्द, अर्थात्-‘मोटे धागे’) भी कहते हैं,<ref name="Snustad-Simmons"/> निम्न [[क्रोमोसोमीय क्रॉसओवर]] होते हैं.हैं। समरूपी क्रोमोसोमों के असहोदरा क्रोमेटिड बेतरतीब तरीके से समरूप क्षेत्रों पर जीनीय जानकारी के भागों का विनिमय करते हैं.हैं। किंतु [[लैंगिक क्रोमोसोम]] पूरी तरह से एक समान नहीं होते हैं और समरूपिता के छोटे से क्षेत्र पर ही जानकारी का विनिमय करते हैं.हैं। विनिमय उन स्थानों पर होता है जहां पर ''पुनःसंयोजन गांठें'' (कियाज़्मा) बनती हैं.हैं। असहोदरा क्रोमेटिडों के बीच जानकारी का विनिमय होने से जानकारी का पुनःसंयोजन होता है; प्रत्येक क्रोमोसोम में जानकारी का वही पूर्ण सेट दोता है, जो उसके पास पहले था और इस प्रक्रिया के कारण कोई त्रुटियां नहीं होतीं. चूंकि साइनेप्टोनीमल काम्प्लेक्स में क्रोमोसोमों को नहीं पहचाना जा सकता है, इसलिये क्रास-ओवर को वास्तविक रूप से माइक्रोस्कोप से नहीं देखा जा सकता.
 
===== डिप्लोटीन =====
''डिप्लोटीन'' दशा में, जिसे ''डिप्लोनीमा'' भी कहा जाता है, ग्रीक शब्द, अर्थात् - ‘दो धागे’)<ref name="Snustad-Simmons"/> [[साइनेप्टोनीमल कॉम्प्लेक्स अवक्रमित]] हो जाता है और समरूपी क्रोमोसोम एक दूसरे से जरा दूर हो जाते हैं.हैं। क्रोमोसोम स्वयं भी कुछ खुल जाते हैं जिससे डीएनए का कुछ [[प्रतिलेखन]] हो जाता है. लेकिन, प्रत्येक बाईवॉलेंट के समरूपी क्रोमोसोम क्रॉसिंगओवर के क्षेत्रों, कियास्माटा पर बलपूर्वक बंधे होते हैं.हैं। कियास्माटा एनाफ़ेज़ I में पृथक होने तक क्रोमोसोमों पर बने रहते हैं.हैं।
 
मानव भ्रूण डिम्बजनन में विकसित हो रहे सभी [[डिम्ब]] इस अवस्था तक विकसित होते हैं और जन्म के पहले यह विकास ऱूक जाता है. यह निलंबित अवस्था [[डिक्ट्योटीन दशा|''डिक्ट्योटीन दशा'']] कहलाती है और यह [[यौवनारंभ]] तक ऐसे ही रहती है. नर में [[यौवनारंभ]] ([[शुक्राणुओं]]) में अर्धसूत्रीविभाजन के शुरू होने तक केवल शुक्राणुजन रहते हैं.हैं।
 
===== डायाकाइनेसिस =====
''डायाकाइनेसिस'' अवस्था में, जिसका ग्रीक में अर्थ ‘स्थानांतरण’ होता है, क्रोमोसोम और संघनित होते हैं.हैं।<ref name="Snustad-Simmons"/> इस meiosis जहां tetrads के चार भागों में दिखाई दे रहे हैं वास्तव में पहला बिंदु है. पार उलझाना एक साथ, प्रभावी रूप से अतिव्यापी की साइटें, chiasmata स्पष्ट रूप से दिखाई बना रही है. इसको छोड़कर, इस दशा का बाकी भाग बिलकुल सूत्रीविभाजन के [[प्रोमेटाफ़ेज़]] के समान ही होता है, [[उपकेन्द्रक]] गायब हो जाते हैं, केन्द्रकीय [[झिल्ली पुटिकाओं]] में परिवर्तित हो जाती है तथा अर्धसूत्रीविभाजनिक तर्कु बनने लगता है.
 
===== समकालिक प्रक्रियाएं =====
इन दशाओं में, पशु कोशिकाओं के [[तारक केन्द्रकों]] की जोड़ीयुक्त दो [[तारक]] काय कोशिका के दोनो ध्रुवों की ओर विस्थापित हो जाते हैं.हैं। ये तारक काय जो S-अवस्था में प्रतिकृत हुए थे, सूक्ष्मनलिकाओं, जो वास्तव में कोशिकीय रस्सियां और खम्बे हैं, के केन्द्रकीकरण करने वाले [[सूक्ष्मनलिका]] संगठन केन्द्रों का काम करते हैं.हैं। सूक्ष्मनलिकाएं केन्द्रक क्षेत्र में केन्द्रक आवरण के नष्ट होने के बाद आक्रमण करती हैं और क्रोमोसोमों को [[गुणसूत्रबिंदु]] से जोडती हैं.हैं। गुणसूत्रबिंदु एक मोटर की तरह काम करता है-वह क्रोमोसोमों को संलग्न सूक्ष्मनलिकाओं के साथ तारक काय की ओर खींचता है, जैसे कोई ट्रेन पटरी पर चलती है. प्रत्येक टेट्राड में चार गुणसूत्रबिंदु होते हैं, लेकिन प्रत्येक सहोदरा क्रोमेटिड पर गुणसूत्रबिंदुओं की जोड़ी का संयोजन हो जाता है और अर्धसूत्रीविभाजनI के समय एक इकाई की तरह काम करता है.<ref name="Raven-Johnson-Mason-Losos-Singer">रेवेन, पीटर एच.; जॉनसन, जॉर्ज बी, मेसन, केनेथ ए; लोसोस, योनातान और गायक, सुसाn. जीव विज्ञान, 8थ एड. मैकग्रौक- हिल 2007.</ref><ref name="Petronczki-Siomos-Nasmyth">{{cite journal |author=Petronczki M, Siomos MF, Nasmyth K |title=Un ménage à quatre: the molecular biology of chromosome segregation in meiosis |journal=Cell |volume=112 |issue=4 |pages=423–40 |year=2003 |month=February |pmid=12600308 |doi=10.1016/S0092-8674(03)00083-7}}</ref>
 
गुणसूत्रबिंदुओं से संलग्न सूक्ष्मनलिकाएं ''गुणसूत्री सूक्ष्मनलिकाएं'' कहलाती हैं.हैं। अन्य सूक्ष्मनलिकाएं विपक्षी तारक काय की सूक्ष्मनलिकाओं से अंतःक्रिया करती हैं; इन्हें ''अगुणसूत्री सूक्ष्मनलिकाएं'' या ''ध्रुवीय सूक्ष्मनलिकाएं'' कहा जाता है. एक तीसरी प्रकार की सूक्ष्मनलिकाएं, तारक सूक्ष्मनलिकाएं तारक काय से जीवद्रव्य मेंजाती हैं या झिल्ली- कंकाल के भागों से संपर्क करती हैं.हैं।
 
==== मेटाफ़ेज़ I ====
समरूपी जोड़े मेटाफ़ेज़ प्लेट के साथ-साथ चलते हैं.हैं।
जैसे-जैसे दोनो तारक कायों से निकली '''गुणसूत्रीबिंदु सूक्ष्मनलिकाएं''' उनसे संबंधित गुणसूत्रीबिंदुओं से संलग्न होती हैं, समरूपी क्रोमोसोमों के दोनो गुणसूत्रीबिंदुओं से उत्पन्न सूक्ष्मनलिकाओं द्वारा बाईवॉलेंटों पर लगाए गए अविरल परस्पर विरोधी बलों के कारण समरूपी क्रोमोसोम एक भूमध्य तल में तर्कु को काटते हुए व्यवस्थित हो जाते हैं.हैं। क्रोमोसोमों के स्वतंत्र विन्यास का भौतिक आधार समान भूमध्यरेखा के साथ अन्य बाईवॉलेंटों के प्रति प्रत्येक बाईवॉलेंट का मेटाफ़ेज़ प्लेट पर बेतरतीब अनुस्थापन है.
 
==== एनाफ़ेज़ I ====
'''गुणसूत्रीबिंदु सूक्ष्मनलिकाएं''' (द्विध्रुवीय तर्कु) छोटी होकर पुनःसंयोजन पर्वों से अलग हो जाती हैं और समरूपी क्रोमोसोमों को अलग कर देती हैं.हैं। चूंकि हर क्रोमोसोम में गुणसूत्रीबिंदुओं की एक ही सक्रिय जोड़ी होती है,<ref name="Petronczki-Siomos-Nasmyth"/> सारे क्रोमोसोम विपक्षी ध्रुवों की ओर खिंच जाते हैं, जिससे दो अगुणित सेट बन जाते हैं.हैं। हर क्रोमोसोम में अभी भी सहोदरा क्रोमेटिडों की एक जोड़ी होती है. अगुणसूत्रीबिंदु सूक्ष्मनलिकाएं लंबी होकर तारक कायों को दूर धकेलती हैं.हैं। कोशिका केंद्र के नीचे की ओर विभाजन की तैयारी में लम्बी होने लगती है.
 
==== टीलोफ़ेज़ I ====
अंतिम अर्धसूत्रीविभाजन प्रभावकारी रूप से क्रोमोसोमों के ध्रुवों पर पहुंचने के साथ समाप्त हो जाता है. अब हर पुत्री कोशिका में क्रोमोसोमों की संख्या आधी होती है किन्तु हर क्रोमोसोम में क्रोमेटिडों की एक जोड़ी होती है. तर्कु के जाल को बनाने वाली सूक्ष्मनलिकाएं गायब हो जाती हैं और हर अगुणित सेट को एक नई केन्द्रक झिल्ली घेरे रहती है. क्रोमोसोम खुलकर पुनः क्रोमेटिन में परिवर्तित हो जाते हैं.हैं। पशुकोशिकाओं में कोशिका झिल्ली का ह्रास या वनस्पति कोशिकाओं में कोशिका-भित्ति का निर्माण होता है, जिसे साइटोकाइनेसिस कहते हैं और इसके साथ ही दो पुत्री कोशिकाओं की उत्पत्ति का कार्य पूरा हो जाता है. सहोदरा क्रोमेटिड टीलोफ़ेज़ 1 के समय संलग्न बने रहते हैं.हैं।
 
कोशिकाएं विश्राम की अवस्था यानी [[इंटरकाइनेसिस]] या इंटरफ़ेज़ II मे प्रविष्ट हो सकती हैं.हैं। इस अवस्था में डीएनए का दोहराना नहीं होता है.
 
=== अर्धसूत्रीविभाजन II ===
अर्धसूत्रीविभाजन II इस प्रक्रिया का दूसरा चरण है. इस प्रक्रिया का अधिकांश भाग सूत्रीविभाजन के समान ही होता है. इसके अंत में अर्धसूत्रीविभाजन I में उत्पन्न दो अगुणित कोशिकाओं ('''23 क्रोमोसोम, 1N''' * प्रत्येक क्रोमोसोम दो सहोदर क्रोमेटिड युक्त) से 4 अगुणित कोशिकाएं (मनुष्यों में '''23 क्रोमोसोम, 1N''' ) उत्पन्न होती हैं.हैं। अर्धसूत्रीविभाजन II के चार मुख्य कदम हैं-प्रोफ़ेज़ II, मेटाफ़ेज़ II, एनाफ़ेज़ II और टीलोफ़ेज़ II.
 
'''प्रोफ़ेज़ II''' में उपकेन्द्रक और [[केन्द्रिक आवरण]] दोनो अंतर्धान हो जाते हैं और साथ ही क्रोमेटिड छोटे और स्थूल हो जाते हैं.हैं। तारककाय ध्रुवीय क्षेत्रों की ओर चले जाते हैं तथा तर्कु के रेशों को द्वितीय अर्धसूत्रीविभाजन के लिय़े व्यवस्थित करने लगते हैं.हैं।
 
'''मेटाफ़ेज़ II''' में, सेंट्रोमीयरों में दो गुणसूत्रबिंदु होते हैं जो तारक कायों के तर्कु रेशों से प्रत्येक ध्रुव पर संलग्न हो जाते हैं.हैं। नई भुमध्यरेखीय मेटाफ़ेज़ प्लेट अर्धसूत्रीविभाजन I की तुलना में पिछली प्लेट से 90 डिग्री पर घूम जाती है{{Citation needed|date=April 2010}}.
 
इसके बाद '''एनाफ़ेज़ II''' होता है,जिसमें सेन्ट्रोमीयर विदलित हो जाते हैं, जिससे गुणसुत्री विंदुओं से जुड़ी सूक्ष्मनलिकाएं सहोदरा क्रोमेटिडों को अलग खींचने लगती हैं.हैं। विपक्षी ध्रुवों की ओर बढ़ते सहोदरा क्रोमेटिडों को अब सहोदरा क्रोमोसोम कहा जाता है.
 
यह प्रक्रिया '''टीलोफ़ेज़ II''', जो टीलोफ़ेज़ I के समान होती है, के साथ समाप्त हो जाती है और इसमें क्रोमोसोम खुलकर लंबे हो जाते हैं तथा तर्कु गायब हो जाता है. केन्द्रिक आवरण पुनः बनते और विभाजित होते हैं या कोशिका-भित्ति निर्माण अंततः कुल चार पुत्री कोशिकाओं की उत्पत्ति करता है, जिसमें प्रत्येक में क्रोमोसोमों का एक अगुणित सेट होता है. अर्धसूत्रीविभाजन अब पूर्ण हो जाता है और चार नई पुत्री कोशिकाएं उत्पन्न हो जाती हैं.हैं।
 
== महत्व ==
अर्धसूत्रीविभाजन स्थिर लैंगिक प्रजनन का मार्ग प्रशस्त करता है. [[गुणित]] या क्रोमोसोमों को आधा किये बिना गर्भाधान होने पर ऐसे युग्मज उत्पन्न होते हैं जिनमें क्रोमोसोमों की संख्या पिछली पीढ़ी के युग्मजों से दुगुनी होती है. क्रमिक पीढ़ियों में ऐसा होने पर क्रोमोसोमों की संख्या में भयंकर वृद्धि हो जाएगी. सामान्यतः द्विगुणित जीवों में [[बहुगुणिता]], यानी तीन या अधिक क्रोमोसोम सेटों की उपस्थिति, के कारण तीव्र विकास विकार होते हैं<ref>[http://www.bio.miami.edu/dana/104/104F02_15.html BIL 104 - व्याख्यान 15]</ref>. अधिकांश पशु जातियों में बहुगुणिता को सहन नहीं किया जाता. लेकिन पोधे सामान्यतः उपजाऊ, जीवक्षम बहुगुणक पैदा करते हैं.हैं। वनस्पति जातिकरण में बहुगुणिता को महत्वपूर्ण प्रक्रिया माना गया है.
 
समरूपी क्रोमोसोमों का पुनःसंयोजन और स्वतंत्र विन्यास जनता में जीनोटाइपों की अधिक विविधता का कारक होता है. इससे युग्मकों में जीनीय विविधता आती है, जिससे संतति में जीनीय और फीनोटाइपिक विविधता को बढ़ावा मिलता है.
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{{Main|Nondisjunction}}
 
अर्धसूत्रीविभाजन 1 में क्रोमोसोमों का सामान्य पृथक्कीकरण या अर्धसूत्रीविभाजन II में सहोदरा क्रोमेटिडों का पृथक्कीकरण ''डिस्जंक्शन'' कहलाता है. जब पृथक्कीकरण सामान्य नहीं होता,तो इसे '''नॉनडिस्जंक्शन''' कहते हैं.हैं। इसके परिणामस्वरूप ऐसे युग्मकों की उत्पत्ति होती है जिनमें किसी विशिष्ट क्रोमोसोम की संख्या बहुत ज्यादा या बहुत कम होती है और [[ट्राईसोमी]] या [[मोनोसोमी]] की साधारम प्रक्रिया है. नॉनडिस्जंक्शन अर्धसूत्रीविभाजन I या अर्धसूत्रीविभाजन II, कोशिकीय प्रजनन की अवस्थाओं में, या [[सूत्रीविभाजन]] के समय हो सकता है.
 
यह मनुष्यों में होने वाली कई बीमारियों का कारण है (जैसे):
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== स्तनपायी जंतुओं में अर्धसूत्रीविभाजन ==
मादा में [[डिम्बाणुप्रसूजन]] नामक कोशिकाओं में अर्धसूत्रीविभाजन होता है. प्रत्येक [[डिम्बाणुप्रसूजन]] जो अर्धसूत्रीविभाजन की शुरूआत करता है, दो बार विभाजित होकर एक एकल डिम्बजन और दो [[ध्रुवीय कायों]] की उत्पत्ति करता है.<ref>{{cite journal |author=Rosenbusch B |title=The contradictory information on the distribution of non-disjunction and pre-division in female gametes |journal=Hum. Reprod. |volume=21 |issue=11 |pages=2739–42 |year=2006 |month=November |pmid=16982661 |doi=10.1093/humrep/del122}}</ref> किंतु, इन विभाजनों के होने के पहले, ये कोशिकाएं अर्धसूत्रीविभाजन I की डिप्लोटीन दशा पर ठहर जाती हैं और एक [[कूप]] नामक दैहिक कोशिकाओं के रक्षात्मक आवरण के भीतर प्रसुप्त हो जाती हैं.हैं। ये कूप [[कूपजनन]] नामक एक प्रक्रिया द्वारा स्थिर गति से विकसित होने लगते हैं और इनमें से कुछ [[मासिक चक्र]] में प्रवेश कर जाते हैं.हैं। ऋतुस्रवित डिम्बजन अर्धसूत्रीविभाजन I जारी रखते हैं और गर्भाधान होने तक अर्धसूत्रीविभाजन II पर ठहरे रहते हैं.हैं। मादाओं में अर्धसूत्रीविभाजन की प्रक्रिया [[डिम्बजनन]] के समय होती है और प्ररूपी अर्धसूत्रीविभाजन से भिन्न होती है क्यौंकि इसमें अर्धसूत्रीविभाजन लंबे समय तक [[डिक्ट्येट]] दशा में रूका रहता है और [[तारक कायों]] की सहायता से वंचित होता है.
 
नरों में, अर्धसूत्रीविभाजन शुक्राणुजन नामक पूर्वगामी कोशिकाओं में होता है, जो दो बार विभाजित होकर शुक्राणु में बदल जाती हैं.हैं। ये कोशिकाएं [[वृषणों]] की [[वीर्यजनक नलिकाओं]] में बिना रूके लगातार विभाजित होती जाती हैं.हैं। [[वीर्य]] एक स्थिर गति से उत्पन्न होता जाता है. नरों में अर्धसूत्रीविभाजन की प्रक्रिया [[शुक्राणुजनन]] के समय होती है.
 
मादा स्तनपायियों में अर्धसूत्रीविभाजन भ्रूण में प्राथमिक जनन कोशिकाओं के अंडाशय में पहंचने के तुरंत बाद शुरू हो जाता है. लेकिन नर में अर्धसूत्रीविभाजन कई सालों के बाद यौवनारंभ के समय शुरू होता है. अनगढ़ गुर्दे से प्राप्त रेटिनोइक एसिड अंडाशय के डिम्बाणुप्रसूजन में अर्धसूत्रीविभाजन को उत्तेजित करता है. नर वृषण के ऊतक रेटिनोइक एसिड का अपक्षम करके अर्धसूत्रीविभाजन को होने से रोकते हैं.हैं। इस पर काबू तब पाया जाता है, जब यौवनारंभ के समय वीर्यजनक नलिकाओं की सेर्टोली कोशिकाएं स्वयं रेटिनोइक एसिड का उत्पादन शुरू कर देती हैं.हैं। रेटिनोइक एसिड के प्रति संवेदनशीलता नैनोस और डीएजैडएल नामक प्रोटीनों द्वारा भी समायोजित की जाती है.<ref>{{cite journal |author=Lin Y, Gill ME, Koubova J, Page DC |title=Germ cell-intrinsic and -extrinsic factors govern meiotic initiation in mouse embryos |journal=Science |volume=322 |issue=5908 |pages=1685–7 |year=2008 |month=December |pmid=19074348 |doi=10.1126/science.1166340}}</ref><ref>{{cite journal |author=Suzuki A, Saga Y |title=Nanos2 suppresses meiosis and promotes male germ cell differentiation |journal=Genes Dev. |volume=22 |issue=4 |pages=430–5 |year=2008 |month=February |pmid=18281459 |pmc=2238665 |doi=10.1101/gad.1612708}}</ref> अर्धसूत्रीविभाजन शुक्राणुकोशिकाओं में होता है.
 
== यह भी देखें ==