"आलोचना": अवतरणों में अंतर

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== आलोचना के प्रकार ==
आलोचना करते समय जिन मान्यताओं और पद्धतियों को स्वीकार किया जाता है, उनके अनुसार आलोचना केप्रकार विकसित हो जाते हैं.हैं। सामान्यत: समीक्षा के चार प्रकारों को स्वीकार किया गया है:-
# सैद्धान्तिक आलोचना
# निर्णयात्मक आलोचना
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=== सैद्धान्तिक आलोचना ===
सैद्धान्तिक आलोचना में साहित्य के सिद्धान्तों पर विचार होता है। इसमें प्राचीन शास्त्रीय काव्यागों - रस, अलंकार आदि और साहित्य की आधुनिक मान्यताओं तथा नियमों की मुख्य रूप से विवचेना की जाती है।सैद्धान्तिक आलोचना में विचार का बिन्दुयह हैͩक साहित्य का मानदंड शास्त्रीय है या ऐतिहासिक. मानदंड का शास्त्रीय रूप, स्थिर और अपरिवर्तनशील होता है किन्तु मानदंडों को ऐतिहासिक श्रेणी माननेपर उनका स्वरूप परिवर्तनशील और विकासात्मक होता है। दोनों प्रकार की सैद्धान्तिक आलोचनाएँ उपलब्ध हैं.हैं। किन्तु अब उसी सैद्धान्तिक आलोचना का महत्त्व अधिक है जो साहित्य के तत्वों और नियमों की ऐतिहासिक प्रक्रिया में विकासमान मानती है।
 
=== निर्णयात्मक आलोचना ===
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यद्यपि मूल्य या श्रेष्ठ साहित्य और निकृष्ट साहित्य का बोध पैदा करना आलोचना के प्रधान धर्मों में से एक है लेकिन वह सिद्धान्तों के यांत्रिक उपयोग से नहीं सभंव है। 'हिन्दी साहित्य कोश' में निर्णयात्मक आलोचना के विषय में बताया गया है:
 
:वह कृतियों की श्रेष्ठता या अश्रेष्ठता के सबंधं में निर्णय देती है। इस निर्णय में वह साहित्य तथा कला संबन्धी नियमों से सहायता लेती है किन्तु ये नियम साहित्य और कला के सहज रूप से सबंधंन रख वाह्य रूप से आरोपित हैं.हैं।
 
इस प्रकार आलोचना में निर्णय विवाद का बिन्दु उतना नहीं है जितना निर्णय केͧलए अपनाया गया तरीका. जसै रामचन्द्र शुक्ल की आलोचना में मूल्य निर्णय है, लेकिन उसका तरीका सजृनात्मक है, यांत्रिक नहीं। निर्णयात्मक आलोचना में मूल्य और तरीका, दोनों की में लचीलापन नहीं होता.