"इस्पात निर्माण": अवतरणों में अंतर
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== परिचय तथा इतिहास ==
इस्पात उत्पादन का [[इतिहास]] करीब चार हजार साल पुराना है। अंटोलिया के उत्खनन से कुछ इस्पात के सामान मिले
आधुनिक काल में इस्पात का व्यवसायिक निर्माण [[बेसमेर विधि]] की खोज के बाद शुरु हुआ. बेसमेर विधि से इस्पात का उत्पादन काफी सस्ता हो गया. बाद में [[गिलक्रिस्ट-थोमस विधि]] के आने से बेसमेर विधि में और ज्यादा सुधार हुआ. बाद में [[सीमन-मार्टिन विधि]] की खोज से इस्पात निर्माण और भी सुगम हो गया।
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[[अयस्क]] (ore) से अधिक से अधिक धातु प्राप्त करने के लिए अवकारक वस्तु, कार्बन, बहुतायत से मिलाई जाती है। कार्बन बाद में इच्छित मात्रा तक आक्सीकरण की क्रिया द्वारा निकाल दिया जाता है। इससे साथ के दूसरे तत्वों का भी, जिनका अवकरण हुआ रहता है और जो आक्सीकरणीय होते हैं, आक्सीकरण हो जाता है।
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि लोहे में कार्बन के थोड़ से हेर-फेर से इस्पात की गुणवत्ता में बड़ा बदलाव आ जाता है. इस्पात के गुणों में वांछित बदलाव के लिए लौहे और कार्बन के मिश्रण में दूसरे पदार्थ भी मिलाए जाते
धातुकार्मिक व्यवहार में "विशुद्ध धातु" शब्द का उपयोग ऐसे व्यापारिक मेल की धातु के लिए भी होता है जिसमें प्रधानत: वे ही गुण (जैसे, रंग विद्युच्चालकता इत्यादि) होते हैं जो शुद्ध रासायनिक धातु में होते हैं। इनमें शेष जो अशुद्धता होती है या तो उसे दूर करना कठिन होता है, अथवा धातु में कोई विशेष गुण प्राप्त करने के लिए उसे जान बूझकर मिलाया जाता है। इस प्रकार मिलाए जानेवाले तत्वों को 'मिश्रधातुकारी तत्व' (alloying elements) कहते हैं।
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