"लुईस माउंटबेटन": अवतरणों में अंतर

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अगस्त 1941 में, माउंटबेटन को नोरफ्लोक, वर्जीनिया में स्थित एचएमएस ''इल्सट्रियस'' का कप्तान नियुक्त कर दिया गया, जिसका मकसद जनवरी के दौरान भूमध्य सागर में [[माल्टा]] पर हुए हमले के नुकसान की मरम्मत करना था. इस दौरान उनके पास अपेक्षाकृत ज्यादा खाली समय था, तो उन्होंने पर्ल हार्बर का अचानक ही मुआयना किया. यहां वो तत्परता की कमी, अमेरिकी थलसेना तथा अमेरिकी फ़ौज में सहयोग की कमी और एक साझा मुख्यालय न होने से नाराज़ थे.
 
माउंटबेटन [[विन्सटन चर्चिल|विंस्टन चर्चिल]] के चहेते थे (भले ही 1948 के बाद चर्चिल ने कभी भी माउंटबेटन से बात नहीं की, क्योंकि वे [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] की आज़ादी में उनकी भूमिका से काफ़ी नाराज़ थे), और 27 अक्टूबर 1941 को रॉजर केयेस के स्थान पर माउंटबेटन को साझी कार्रवाई का प्रमुख बना दिया गया. इस भूमिका में उनके मुख्य काम थे इंग्लिश चैनल में कमांडो हमले की योजना बनाना और विरोधी देशों में कार्रवाई के सहयोग के लिए नई तकनीक का अविष्कार करना.<ref name="ReferenceA"/> 1942 के मध्य में सेंट नज़ैरे में हुए हमले की योजना बनाने और इसे कार्यान्वित करने में माउंटबेटन की बहुत बड़ी भूमिका थी: एक हमला जिसके कारण नाज़ी कब्ज़े वाली फ़्रांस में सबसे ज़्यादा अच्छी तरह बचाई गयी एक नाव का युद्ध के अंत तक उपयोग नहीं हुआ, जिसका अटलांटिक की लड़ाई में मित्र देशों की सफलता में बहुत बड़ा योगदान था. 19 अगस्त 1942 को उन्होंने निजी तौर पर डिएपे का विनाशाकरी हमला करवाया (जिस पर मित्र देशों की सेना, खास तौर पर फ़ील्ड मार्शल मोंटगोमरी ने बाद में दावा किया कि यह हमला शुरू से ही एक गलत विचार था. हालांकि, 1942 के शुरू में, अमेरिका में एक बैठक के दौरान यह फ़ैसला किया गया था की डिएपे की बंदरगाह पर हमले से पहले बमबारी नहीं की जाएगी, क्योंकि इससे गलियों में अवरोध हो जाएगा, मोंटगोमरी, जिनकी अगुवाई में बैठक चल रही थी, उन्होंने कुछ नहीं कहा. {{Citation needed|date=April 2011}} सबने डिएपे पर हुए हमले को एक त्रासदी माना, जिसमें हजारों लोग मरे गए थे (जिनमें ज़ख़्मी और/या ले जाये गए कैदी भी शामिल हैं), और इनमें ज़्यादा तादाद कनाडा के लोगों की थी. इतिहासकार ब्रायन लोरिंग विला ने इसका यह निष्कर्ष निकाला कि माउंटबेटन ने बिना किसी अधिकार के यह हमला किया था, परन्तु कई वरिष्ठ लोगों को उनके इस इरादे की जानकारी थी लेकिन उन्होंने माउंटबेटन को रोकने की कोई कोशिश नहीं की.<ref>{{Cite book| last= Villa| first = Brian Loring| title = Unauthorized Action: Mountbatten and the Dieppe Raid| location = Toronto| publisher = Oxford University Press| year = 1989 | isbn= 0195408047}}</ref>
माउंटबेटन और उनके सहयोगियों की तीन प्रमुख तकनीकी उपलब्धियां हैं: 1) इंग्लैंड के तट से नोर्मंडी तक पानी के नीचे से तेल की पाईप-लाइन का निर्माण करना, 2) बारूद के बक्सों और डूबे हुए जहाजों से एक कृत्रिम बंदरगाह बनाना, और 3) धरती और पानी, दोनों जगह चलने वाले टैंक (ज़मीन पर आ सकने वाले पोत) का निर्माण.<ref name="ReferenceA"/>
माउंटबेटन ने एक और परियोजना, हाबाकुक परियोजना का प्रस्ताव चर्चिल को दिया था. यह था वायुयान को ले जाने वाला 600 मीटर का एक बड़ा और अभेद्य वाहक, जो भूसी और बर्फ़ से मिश्रित "पाय्क्रेट" से बनता था. बेहद खर्चीली होने के कारण हाबाकुक परियोजना कभी भी अमल में नहीं आ पाई.<ref name="ReferenceA"/>
[[चित्र:SE 000014 Mountbatten as SACSEA during Arakan tour.jpg|left|thumb|लॉर्ड लुइस माउंटबेटन, सुप्रीम एलाइड कमांडर, फरवरी 1944 में उनके अराकान मोर्चे के दौरे के दौरान देखे गए.]]
माउंटबेटन दावा था कि जो सबक डिएपे की विनाशक कार्रवाई से सीखे गए थे वो आने वाले दो साल बाद डी-डे पर नॉर्मेंडी आक्रमण के लिए आवश्यक थे. हालांकि, पूर्व रॉयल मरीन जूलियन थॉम्पसन जैसे इतिहासकारों ने लिखा है कि सबक सिखाने कि लिए डिएपे की विनाशनक कार्रवाई की जरूरत नहीं थी.<ref name="Thompson">{{Cite book|last=Thompson|first=Julian|authorlink=Julian Thompson|title=The Royal Marines: from Sea Soldiers to a Special Force|chapter=14. The Mediterranean and Atlantic, 1941–1942|pages=263–9|location=London|publisher=[[Pan Books]]|origyear=2000|year=2001|edition=Paperback|isbn=0-330-37702-7}}</ref> फिर भी, डिएपे की कार्रवाई की असफलताओं से सीख लेते हुए अंग्रेजों ने कई नए तरीके आजमाए - जिनमें सबसे उल्लेखनीय हैं होबार्ट फन्नीज़ - नवाचार, जिसकी वजह से नॉर्मेंडी उतरने के दौरान निसंदेह राष्ट्रमंडल देशों के सिपाहियों ने तीन बीच (गोल्ड बीच, जूनो बीच, और स्वॉर्ड बीच) पर कई जानें बचाईं.{{Citation needed|date=August 2010}} {{Or|date=August 2010}}
 
डिएपे की कार्रवाई की वजह से माउंटबेटन [[कनाडा]] में विवादास्पद व्यक्ति एक बन गए, उनके बाद के करियर में रॉयल कनाडियन लीजियन ने उनसे दूरी बनाए रखी, और कनाडा के अनुभवी सिपाहियों से भी उनके रिश्ते "ठंडे ही रहे".<ref>[http://archives.cbc.ca/IDC-1-71-2359-13811/conflict_war/dieppe/clip6 "डिपी के लिए कौन जिम्मेदार था?"][http://archives.cbc.ca/IDC-1-71-2359-13811/conflict_war/dieppe/clip6 सीबीसी अभिलेखागार, 9 सितम्बर १९६२ को प्रसारण.] . 27 अगस्त 2007 को पुनःप्राप्त.</ref><ref>{{Cite book| last= Villa| first = Brian Loring| title = Unauthorized Action: Mountbatten and the Dieppe Raid| location = Toronto| publisher = Oxford University Press| year = 1989| pages = 240–241 | isbn= 0195408047}}</ref> फिर भी, 1946 में उनके नाम पर एक शाही कनाडाई समुद्र कैडेट कोर (RCSCC #134 एडमिरल माउंटबेटन सडबरी, [[ओन्टारियो|ऑन्टारियो]]) बनाया गया.
 
अक्टूबर 1943 में, चर्चिल ने माउंटबेटन को दक्षिण पूर्वी एशिया कमान का प्रधान संबद्ध कमांडर नियुक्त किया. उनके कम व्यवहारिक विचारों को लेफ़्टिनेंट कर्नल जेम्स एलासन के नेतृत्व में योजना बनाने वाले अनुभवी कर्मचारियों ने दरकिनार कर दिया, हालांकि उनमें से कुछ प्रस्ताव को, जैसे कि रंगून के निकट जल और थल से हमला करना, चर्चिल के अंत के पहले, उनके समान ही पाया गया.<ref>''हॉट सीट ", जेम्स एलासन, ब्लेकसोर्न, लंदन 2006.'' </ref> वे, 1946 में दक्षिण पूर्वी एशिया कमान (SEAC) के भंग होने तक उस पद पर बने रहे.
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यह देखते हुए कि ब्रिटिश सरकार तुरंत आजादी देने के लिए आग्रही है,<ref>ज़िग्लर, फिलिप, ''माउंटबेटन.'' ''भारत में वाइसराय के रूप में बिताए गए वर्षों सहित '' (न्यू योर्क: नोफ, 1985)</ref>
माउंटबेटन ने निष्कर्ष निकाला कि स्वतन्त्र भारत एक अप्राप्य लक्ष्य है और उन्होंने स्वतन्त्र भारत और [[पाकिस्तान]] के विभाजन की योजना मान ली.<ref name="ReferenceA"/> माउंटबेटन ने मांग की कि एक तय दिन पर ब्रिटिश द्वारा भारतीयों को सत्ता का हस्तांतरण होना चाहिए, मसलन एक समयसीमा से भारतीयों को विश्वास दिलाया जा सकता है कि ब्रिटिश सरकार निष्कपटता से इस जल्द मिलने वाली और कुशल स्वतंत्रता की ओर प्रयासरत है, और किसी कारणवश ये प्रक्रिया रुकनी नहीं चाहिए.<ref>ज़िग्लर, ''माउंटबेटन.'' ''भारत में वाइसराय के रूप में बिताए गए वर्षों सहित,'' पी. 355.</ref> उन्होंने यह भी निष्कर्ष निकाला है कि इस अनसुलझी स्थिति से निबटने के लिए वह १९४७ से आगे का इंतज़ार नहीं करेंगे. इसके विनाशकारी परिणाम भारतीय उपमहाद्वीप पर रहने वाले लोगों पर होने वाले थे.जल्दबाजी में हस्तांतरण की प्रक्रिया एक विध्वंस को सामने लाकर खड़ी करेगी जिसमे ऐसे उत्पात का व्यभिचार और प्रतिशोध उत्पन्न होगा जो भारतीय उपमहाद्वीप ने कभी न देखा हो.
 
भारतीय नेताओ में गांधी ने बलपूर्वक एक एकजुट भारत के सपने का समर्थन किया और कुछ समय तक लोगों को इस उद्देश्य के लिए एकत्र किया. लेकिन जब माउंटबेटन की सीमा ने जल्द स्वतंत्रता प्राप्त करने की सम्भावना पर मुहर लगायी तब लोगों के मत बदल गए. माउंटबेटन के निश्चय की दृढ़ता देखते हुए, मुस्लिम लीग से किसी भी तरह के समझौते में नेहरु और पटेल की असफलता और जिन्ना की जिद्द के चलते सभी नेताओ (गांधी को छोड़कर) ने जिन्ना के विभाजन के प्लान को मान लिया, जिसने माउंटबेटन के नियुक्त काम को आसान बना दिया.<ref>ज़िग्लर, ''माउंटबेटन.'' ''भारत में वाइसराय के रूप में बिताए गए वर्षों सहित,'' पी. 373</ref> इससे एक ऐसे प्रतिकूलता का असर पहुंचा की जिन्ना का सौदेकारी दर्ज़ा ऊंचा हो गया जो अंत में अपने आप में उसको मिली ज्यादा रियायतों का कारण बना.
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भारत की स्वतंत्रता में अपनी स्वयं की भूमिका के आत्म-प्रचार—विशेषकर अपने दामाद लॉर्ड ब्रेबोर्न और डोमिनिक लापियर व लैरी कॉलिंस की अपेक्षाकृत सनसनीखेज पुस्तक ''फ्रीडम एट मिडनाइट'' में (जिसके मुख्य सूचनाकार वे स्वयं थे)—के बावजूद उनका रिकार्ड बहुत मिश्रित समझा जाता है. एक मुख्य मत यह है कि उन्होंने आजादी की प्रक्रिया में अनुचित और अविवेकपूर्ण जल्दबाजी कराई और ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि उन्हें यह अनुमान हो गया था कि इसमें व्यापक अव्यवस्था और जनहानि होगी और वे नहीं चाहते थे कि यह सब अंग्रेजों के सामने हो और इस प्रकार वे वास्तव में उसके, विशेषकर पंजाब और [[बंगाल]] में घटित होने का कारण बन गए.<ref>देखें, उदा., वोल्पार्ट, स्टेनली (2006). ''शेमफुल फ्लाइट: द लास्ट ईयर्स ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर इन इंडिया.'' </ref> इन आलोचकों का दावा है कि आजादी की दौड़ में और उसके बाद घटनाएं जिस रूप में उत्तरोत्तर बढ़ीं, उसकी जिम्मेदारी से माउंटबेटन बच नहीं सकते.
 
1950 के दशक में भारत सरकारों के सलाहकार रहे कनाडियन-अमेरिकी हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री जॉन केनेथ गालब्रेथ, जो नेहरू के आत्मीय बन गए थे और जिन्होंने 1961-63 में अमेरिकी राजदूत के रूप में कार्य किया, इस संबंध में माउंटबेटन के विशेष रूप से कड़े आलोचक थे. पंजाब-विभाजन की भयंकर दुर्घटनाओं का सनसनीखेज विवरण कॉलिंस और लापियर की पुस्तक ''फ्रीडम एट मिडनाइट'', जिसके माउंटबेटन स्वयं मुख्य सूचनाकर थे, और उसके बाद बापसी सिधवा के उपन्यास ''आइस कैंडी मैन'' (संयुक्त राज्य में ''क्रैकिंग इंडिया'' के रूप में प्रकाशित), जिस पर ''[[अर्थ (१९९८ फ़िल्म)|अर्थ]]'' फिल्म बनी, में दिया गया है. 1986 में आईटीवी ने अंतिम वायसराय के रूप में माउंटबेटन के दिनों का अनेक भागों में नाट्य रूपांतर प्रसारित किया''[[Lord Mountbatten: The Last Viceroy]]'' .
 
=== भारत और पाकिस्तान के बाद करियर ===
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=== हेरोल्ड विल्सन के खिलाफ कथित षड्यंत्र ===
अपनी पुस्तक स्पाईकैचर में, पीटर राइट ने दावा किया है कि 1967 में माउंटबेटन ने प्रेस व्यापारी और MI5 एजेंट सेसिल किंग, और सरकार प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार, सोली ज़करमैन के साथ एक निजी बैठक की थी. किंग और पीटर राइट तीस M15 अधिकारियों के समूह के सदस्य थे, जो उस समय के हेरोल्ड विल्सन संकट-पीड़ित श्रम सरकार का तख्तापलट करना चाहते थे, और किंग ने कथित रूप से बैठक का उपयोग माउंटबेटन से यह आग्रह करने के लिए किया था कि वे नेशनल साल्वेशन के सरकार के नेता बन जाएं. सोली ज़करमैन ने इसे राजद्रोह बताते हुए कहा था कि यह विचार माउंटबेटन की अनिच्छा के कारण कारगर सिद्ध नहीं हुआ.<ref>{{Cite web| title = House of Commons, Hansard: 10 January 1996 Column 287. |url=http://www.publications.parliament.uk/pa/cm199596/cmhansrd/vo950110/debtext/60110-43.htm}}</ref>
 
2006 में बीबीसी के वृत्तचित्र ''हेरोल्ड विल्सन के खिलाफ साजिश'' में आरोप लगाया गया कि माउंटबेटन ने अपने दूसरे कार्यकाल (1974-1976) के दौरान विल्सन को बेद्खल कर दिया था. अवधि को उच्च मुद्रास्फीति, बढ़ती बेरोजगारी और व्यापक औद्योगिक अशांति द्वार वर्गीकृत किया जाता था. कथित साजिश दक्षिणपंथी पूर्व सैन्य सेना के दिग्गज जो ट्रेड यूनियन और [[सोवियत संघ]] से होने वाले अनुमानित खतरे से बचने के लिए कथित रूप से अपनी निजी आर्मी बना रहे थे, पर केन्द्रित था. वे मानते थे कि लेबर पार्टी, जो आंशिक रूप से है संबद्ध ट्रेड यूनियन द्वारा वित्त पोषित था, इन विकासों को करने में असमर्थ और अनिच्छुक था, और विल्सन या तो सोवियत एजेंट था या साम्यवाद का समर्थक था, इन दावों का विल्सन ने पुरजूर खंडन किया था. वृत्तचित्र में आरोप लगाया था कि विल्सन का तख्तापलट करके, उसके स्थान पर माउंटबेटन को बिठाने के लिए सेना और MI5 में निजी आर्मी और समर्थकों का उपयोग कर एक घातक षड्यंत्र रचा गया था. वित्तचित्र में कहा गया था कि षड्यंत्र को माउंटबेटन और ब्रिटिश शाही परिवार के अन्य सदस्यों का असमर्थन प्राप्त था.<ref>{{Cite news| url=http://news.bbc.co.uk/1/hi/uk_politics/4789060.stm | work=BBC News | title=Wilson 'plot': The secret tapes | date=9 March 2006 | accessdate=11 May 2010}}</ref>
 
विल्सन लंबे समय से मानते थे कि उनके तख्तापलट करने के लिए MI5 द्वारा प्रायोजित कोई षड्यंत्र रचा जा रहा है. 1974 में यह संदेह बढ़ गया था जब सेना ने यह कहते हुए हीथ्रो हवाई अड्डे पर कब्जा कर लिया था कि यहां संभावित IRA हमले से बचने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है. मेरिको फाल्केंडर वरिष्ठ सहयोगी और विल्सन के करीबी दोस्त, ने कहा था कि प्रधानमंत्री को इस अभ्यास की कोई सूचना नहीं दी गई थी और फिर भी इसे अभ्यास करने के लिए सैन्य अधिग्रहण का आदेश बताया गया था. विल्सन को भी यकीन हो गया था कि दक्षिणपंथी MI5 अधिकारियों का एक छोटा समूह उनके खिलाफ एक स्मियर अभियान चला रहा है. ऐसे आरोप विल्सन के संविभ्रम को पहले से जिम्मेदार ठहराया गया था, कम से कम एक बार 1988 में, पीटर राइट ने स्वीकार किया था कि उनकी किताब में आरोप "अविश्वसनीय" और बहुत अतिरंजित थे.<ref>{{Cite news| title = Spies like us, The Guardian: 11 September 2001 |url=http://www.guardian.co.uk/politics/2001/sep/11/freedomofinformation.media | location=London | date=11 September 2001 | accessdate=11 May 2010 | first=Stella | last=Rimington}}</ref><ref>{{Cite web| title = Top 50 Political Scandals, The Spectator |url=http://www.spectator.co.uk/the-magazine/features/3756033/part_5/top-50-political-scandals-part-one.thtml}}</ref> हालांकि बीबीसी वृत्तचित्र में कई नए गवाहों का साक्षात्कार किया गया, जिन्होंने इन आरोपों को नई विश्वसनीयता दी थी.
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[[चित्र:The Earl Mountbatten of Burma at home Allan Warren.jpg|thumb|200px|लॉर्ड माउंटबेटन ऑफ बर्मा, 1976, एलेन वारेन द्वारा लिखित.]]
{{Refimprove|date=August 2010}}
परिवार और दोस्तों के बीच माउंटबेटन का उपनाम "डिकी" था, उल्लेखनीय है कि "रिचर्ड" नाम उन्हें कभी नहीं दिया गया था. ऐसा इसलिए था, क्योंकि उनकी परदादी, महारानी विक्टोरिया, ने उपनाम 'निकी' सुझाया था, हालांकि यह रूसी शाही परिवार के कई निकी नामों से मेल खाता था ( विशेष रूप से "निकी" का उपयोग निकोलस द्वितीय, अंतिम सार), इसलिए उन्होंने इसे डिकी से बदल दिया. माउंटबेटन का विवाह विल्फ्रेड विलियम एश्ले, माउंट टेंपल के पहले बैरोन, साफ्ट्सबरी के सातवें अर्ल के पोते, की बेटी एड्विना सिंथिया एश्ले, के साथ 18 जुलाई 1922 में हुआ था. वह एदवार्डियन मैगनेट सर अर्नस्ट कैसल की सबसे प्यारी पोती और अपने भाग्य की मुख्य वारिस थी. इसके बाद वे ग्लैमरस हनीमून पर यूरोपीय कोर्ट और अमेरिका की यात्रा पर गए, इस दौरान उन्होंने डगलस फेयरबैंक्स, मैरी पिकफोर्ड, और [[चार्ली चैपलिन]] के साथ [[हॉलीवुड]] की यात्रा की, चैपकलीन उस दौरान अपनी फिल्म "नाइस एंड ईजी", को फिल्मा रहे थे, इस फिल्म के मुख्य कलाकारों में फेयरबैंक्स, पिकफ़ोर्ड, चैपलिन और माउंटबेटन परिवार शामिल थे.. उनकी दो बेटियां थी: पेट्रीसिया माउंटबेटन, बर्मा की दूसरी माउंटबेटन काउंटेस (जन्म 14 फ़रवरी 1924), और लेडी पामेला कारमेन लुईस (हिक्स) (जन्म 19 अप्रैल 1929). {{Citation needed|date=August 2010}}
 
कुछ मायनों में, शुरुआत से यह जोड़ा असंगत प्रतीत होता था. लॉर्ड माउंटबेटन व्यवस्थित रहने के अपने जुनून के कारण एदविना पर हमेशा कद्ा नज़र रखते थे और उनका निरंतर ध्यान चाहते थे. कोई शौक या जुनून न होने के कारण शाही जीवनशैली अपनाने के लिए, एड्विना अपना खली समय ब्रिटिश और भारतीय कुलीन वर्ग के साथ पार्टियों में, समुद्री यात्रा करके और सप्ताहांतो में अपने कंट्री हाउस में बिताती थी. दोनों ओर से बढ़ती अप्रसन्नता के बावजूद, लुईस से तलाक देने से इंकार कर दिया क्योंकि उसे लगता था कि इससे वह सैन्य कमान श्रृंखला में आगे नहीं बढ़ पाएगा. एड्विना के कई बाहरी संबधों ने लुईस को योला लेतेलियर नामक फ्रेंच महिला से संबंध बनाने के लिए प्रेरित किया. {{Citation needed|date=August 2010}} इसके बाद उनकी शादी लगातार आरोपों और संदेह से विघटित होती रही. 1930 के दशक के दौरान दोनों बाहरी संबंध रखने के पक्ष में थे. द्वितीय विश्व युद्ध ने एड्विना को 'लुईस की बेवफाई के अलावा कुछ अन्य चीजों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर दिया. वे प्रशासक के रूप में सेंट जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड में शामिल हो गईं. इस भूमिका ने एड्विना को विभाजन अवधि के दौरान पंजाब के लोगों के दुख और दर्द को कम करने का उनके प्रयासों के कारण नायिका{{Who|date=August 2010}} के रूप में स्थापित कर दिया.{{Citation needed|date=August 2010}}
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=== अवकाश के क्षण ===
शाही परिवार के कई सदस्यों की तरह, माउंटबेटन पोलो के बहुत बड़े प्रशंसक थे, और 1931 में एक पोलो स्टीक के लिए उन्हें यू.एस. पेटेंट 1,993,334 भी मिला था.<ref>{{Cite web| url = http://www.americanheritage.com/articles/magazine/it/1997/4/1997_4_10.shtml| title = Advanced Weaponry of the Stars| accessdate = 2009-12-24| publisher = American Heritage}}</ref>
 
=== प्रिंस ऑफ वेल्स के गुरू के रूप में ===
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चार साल बाद माउंटबेटन ने 1980 की उनकी भारत की योजनाबद्ध यात्रा के लिए स्वंय और चार्ल्स का साथ देने के लिए अमांडा का आंमत्रण सुरक्षित कर लिया.<ref>{{Cite book| last=Dimbleby| first = Jonathan| authorlink = Jonathan Dimbleby| title = The Prince of Wales: A Biography| location = New York| publisher = William Morrow and Company| year = 1994| page = 263|isbn =0-688-12996-X}}</ref> उनके पिताओं ने आपत्ति जताई. प्रिंस फिलिप ने सोचा कि भारतीय जनता का स्वागत भतीजे से ज्यादा चाचा के होने की संभावना है. लॉर्ड ब्रेबॉर्न ने सलाह दी कि माउंटबेटन के धर्म-पुत्र और पोती को एक साथ के बजाय अकेले होने पर प्रेस का ध्यान उन पर अधिक जाएगा.<ref name="JD"/>
 
चार्ल्स की भारत की यात्रा को पुनः निर्धारित की गई, लेकिन प्रस्थान के योजना की तिथि तक माउंटबेटन जीवित नहीं रहे. जब 1979 में, चार्ल्स ने अंततः अमांदा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, लेकिन उस समय तक परिस्थितियां नाटकीय रूप से बदल गई थीं, और अमांडा ने चार्ल्स का विवाह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया.<ref name="JD"/>
 
== टेलीविज़न प्रस्तुतियां ==
1969 में, अर्ल माउंटबेटन ने 12-भागों वाले आत्मकथात्मक टेलीविजन श्रृंखला ''लॉर्ड माउंटबेटन: ए मैन फ़ोर द सेंचुरी'' में हिस्सा लिया, जिसे ''द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ लॉर्ड माउंटबेटन'' जे नाम से भी जाना जाता है, इसके निर्माता एसोसिएटेड-रेडिफशन थे, और इसकी पटकथा इतिहासकार जॉन टेराइन ने लिखी थी.<ref>{{cite web | title= Lord Mountbatten: A Man for the Century | url= http://www.imdb.com/title/tt0335705/ | work= Main page | publisher= [[IMDB]] | date= 2011 | accessdate=2011-05-06}}</ref><ref>{{cite web | title= Lord Mountbatten: A Man for the Century | url= http://www.imdb.com/title/tt0335705/ | work= Full cast and crew | publisher= [[IMDB]] | date= 2011 | accessdate=2011-05-06}}</ref> एपिसोड की सूची:<ref> {{cite web | title= Lord Mountbatten: A Man for the Century | url= http://www.imdb.com/title/tt0335705/ | work= Episode list | publisher= [[IMDB]] | date= 2011 | accessdate=2011-05-06}} </</ref>
 
# द किंग्स शिप्स वर एट सी (1900-1917)
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== हत्या ==
माउंटबेटन आमतौर पर छुट्टियां मनाने मुलघमोर, काउंटी सिल्गो के अपने ग्रीष्मकालीन घर जाते थे, यह आयरलैंड के उत्तरी समुद्री तट बुंड्रोन, काउंटी डोनेगल और सिल्गो, काउंटी सिल्गो के बीच बसा एक छोटा समुद्रतटीय गांव है. बुंड्रोन मुलघमोर आईआरए के स्वयंसेवकों में बहुत लोकप्रिय अवकाश गंतव्य था, उनमें से कई वहां माउंटबेटन की उपस्थिति और मुलघमोर के आंदोलनों से अवगत हो सकते हैं. {{Citation needed|date=December 2009}} गार्डा सिओचना के सुरक्षा सलाह और चेतावनियों के बावजूद, 27 अगस्त 1979 को, माउंटबेटन एक तीस फुट (10 मीटर) लकड़ी की नाव, ''शेडो वी'' में लॉबस्टर के शिकार और टुना मछली पकड़ने के लिए potting बंदरगाह पर और टूना मछली पकड़ने गए, जो मुलघमोर के बंदरगाह में दलदल में फ6स गया था. थॉमस मैकमोहन नामक एक आईआरए सदस्य उस रात सुरक्षा रहित नाव से फिसल कर गिरते गिरते एक रेडियो नियंत्रित पचास पाउंड (२३ किग्रा) का बम नाव में लगा गया. जब माउंटबेटन नाव पर डोनेगल बे जा रहे थे, एक अज्ञात व्यक्ति ने किनारे से बम को विस्फोट कर दिया. मैकमोहन को [[लॉंगफ़र्ड, लंदन|लॉगफ़ोर्ड]] और ग्रेनार्ड के बीच गार्डा नाके पर पहले ही गिरफ्तार किया गया था. माउंटबेटन, उस समय 79 वर्ष के थे, गंभीर रूप से घायल हो गए थे और विस्फ़ोट के तुरंत बाद बेहोश होकर गिर गए और उनकी मृत्यु हो गई. विस्फ़ोट में मरने वाले अन्य लोगों में निकोलस नैचबुल, उनके बद्ी बेटी का 14 साल का बेटा; पोल मैक्सवेल, काउंटी फेर्मानघ का 15 वर्षीय युवा जो क्रू सदस्य के रूप में कार्य कर रहा था; और बैरोनेस ब्रेबॉर्न, उनकी बड़ी बेटी की 83 वर्षीय सास जो कि विस्फ़ोट में गंभीर रूप से घायल हुई थीं, और विस्फ़ोट के दूसरे दिन चोटों के कारण उनकी मृत्यु हो गई.<ref>पैटन, एल्लिसन, "ब्रॉदलैंड्स: लॉर्ड माउंटबेटन्स क6तरी होम," ''ब्रिटिश विरासत'' मार्च 2005, वॉल्यूम. 26 अंक 1, पीपी 14-17.</ref>
निकोलस नैचबुल के माता और पिता, उसके जुड़वें भाई तीमुथि सहित, विस्फ़ोट में बच गए थे लेकिन गंभीर रूप से घायल हो गए थे.
 
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<blockquote>आईआरए ने निष्पादन के लिए स्पष्ट कारण दिए हैं. मुझे लगता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने लोग मारे गए, लेकिन माउंटबेटन की मृत्यु पर हंगामा मीडिया की स्थापना के कपटी प्रवृति को दर्शाता है. हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य के रूप में, माउंटबेटन ब्रिटिश और आयरिश राजनीति दोनों में एक भावनात्मक व्यक्ति थे. आईआरए ने जो किया वही माउंटबेटन अपने पूरे जीवन में अन्य लोगों के साथ करते थे; और उनके युद्ध के रिकॉर्ड देखकर मुझे नहीं लगता कि युद्ध जैसी स्थिति में मरने पर उन्हें कोई आपत्ति हुई होगी. वे इस देश में आने के खतरों को जानते थे. मेरी राय में, आईआरए ने अपना उद्देश्य पूर कर लिया है: लोग अब इस पर ध्यान दे रहे हैं कि आयरलैंड में क्या हो रहा है.<ref name="time">{{Cite news| title = It is "Clearly a War Situation" | author = Louisa Wright | url = http://www.time.com/time/magazine/article/0,9171,948791-1,00.html | publisher = ''[[Time (magazine)|TIME]]'' | date = 19 November 1979 | accessdate = 2007-09-02}}</ref></blockquote>
 
जिस दिन माउंटबेटन की हत्या हुई थी, उसी दिन, आईआरए भी ताक में था, और अठारह ब्रिटिश आर्मी के सैनिकों को मार गिराया था, उनमें से सोलह वार्रेनपॉइंट, काउंटी डाउन के पैराशूट रेजिमेंट से थे, जिसके कारण उसे वार्रेनपॉइंट एम्ब्यूस के नाम से जाना जाती है.
 
प्रिंस चार्ल्स ने माउंटबेटन को गंभीर बताया, और मित्रों के चर्चा की थी कि गुरू के जाने के बाद चीजें पहले जैसी नहीं रह गई हैं.<ref>2002, रॉबर्ट लैसी द्वारा ''रॉयल'' </ref>
इस बात का खुलासा किया गया था कि माउंटबेटन आयरलैंड के संभावित एकीकरण के पक्ष में थे.<ref>{{Cite web|author=BBQs warning |url=http://www.herald.ie/entertainment/tv-radio/killing-that-changed-the-course-of-history-1862633.html |title=Killing that changed the course of history - TV & Radio, Entertainment |publisher=Herald.ie |date= |accessdate=2010-06-22}}</ref><ref>{{Cite news| url=http://www.guardian.co.uk/politics/2007/dec/29/uk.past | work=The Guardian | location=London | title=Royal blown up by IRA 'backed united Ireland' | first=Henry | last=McDonald | date=29 December 2007 | accessdate=11 May 2010}}</ref>
 
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लॉर्ड माउंटबेटन कई बार फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं.
 
इन विच वी सर्व 1942 की एक ब्रिटिश देशभक्ति युद्ध फिल्म है, जिसका निर्देशन डेविड लीन और नोएल कोवार्ड ने किया था, यह फिल्म माउंटबेटन के कमांड वाले एचएमएस केली, के डुबने से प्रेरित है. कोवार्ड माउंटबेटन के निजी दोस्त थे, और फिल्म में कई भाषणों की नकल की गई थी.
 
माउंटबेटन इतिहासकार ब्रायन लोरिंग-विला द्वारा लिखी गई पुस्तक "अनऑथोराइज्ड एक्शन" पर बनी, सीबीकी की लघु श्रृंखला "डिएपी" में अभिनय किया है, जिसमें अगस्त 1942 की प्रसिद्ध मित्र राष्ट्रों पर की गई कंमाडो छपे में उनकी विवादित भूमिका की व्याख्या की गई थी.