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== परिचय ==
सभी गैसों में [[श्यानता]] (viscosity), और [[संपीड्यता]] (compressibility), दो गुण न्यूनाधिक मात्रा में होते हैं। तीसरा गुणा [[समांगता]] (homogeneity) का है। यद्यपि वायु विविक्त अणुओं (discrete molecules) से बनी होती है, इसे संतत माध्यम अथवा सांतत्यक (continuum) मान लेने में त्रुटि तब तक उपेक्षीयणीय रहती है, जब तक वह अत्यधिक विरल न हो। सांतत्य माने बिना सैद्वांतिक उपचार प्राय: असंभव सा ही है।
 
श्यानताहीन, अर्थात् घर्षणहीन, असंपीड्य तथा समांग तरल को '''परिपूर्ण तरल''' (Perfect fluid) कहते हैं। [[जल]] और [[वाय]] दोनो को परिपूर्ण तरल माना जा सकता है ([[ध्वनि]] वेग से कम वेगवती वायु, केवल पिंडपृष्ठ के निकटवर्ती प्रांत को छोड़कर, जहाँ श्यानताप्रभाव अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण होते हैं)। कम वेगवाले वायुप्रवाह के वायुगतिविज्ञान के गणितीय सिद्धांत प्राय: [[द्रवगति विज्ञान]] जैसे हैं। वायुगति विज्ञान की क्लिष्टतर समस्याओं का हल परिपूर्ण तरल की मान्यता पर प्राप्त हल में श्यानताजन्य अतिरिक्त प्रभाव जोड़ देने पर मिल जाता है। श्यान तरलों के वायुगतिविज्ञान में सर्वाधिक महत्तावाला सिद्धांत परिसीमा स्तर (boundary layer) सिद्धांत है, जिसके आधार पर वायु में गतिमान पिंड में त्वक्-घर्षण-कर्ष (skin friction drag) की व्याख्या दी जाती है।
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== विविध प्रकार के प्रवाह ==
[[चित्र:Airplane vortex edit.jpg|right|300px|thumb|वायुयान के पंख के गुजरने से निर्मित भवंर; यह भवंर, धुएँ से निर्मित की गयी है ताकि दृष्टिगोचर हो सके]]
[[तरल]] की ऐसी गति को, जिसमें समय के साथ वेग और दिशा कोई नहीं बदलती, '''[[अपरिवर्ती प्रवाह]]''' (Steady flow) कहते हैं, अन्यथा उसे परिवर्ती प्रवाह कहते हैं। दोलायमान पक्षक (ऐरोफ़ॉइल) अथवा स्थिर कुंद पिंड के पीछेवाला प्रवाह परिवर्ती होता है। वायुगतिविज्ञान में व्यवहृत अधिकांश समस्याएँ अपरिवर्ती प्रवाहवाली होती हैं। प्रवाह को एकविम, द्विविम या त्रिविम इस बात के अनुसार कहते हैं कि उसमें वेग, घनत्व और दाब केवल एक, दो या तीन आकाशचरों (space variables, अर्थात् निर्देशांकों) के [[फलन]] हैं। [[वात सुरंग]] (wind tunnel) की [[डिजाइन|डिज़ाइन]] एक विम प्रवाह सिद्धांत का अनुप्रयोग है। द्विविम अर्थात् समतल प्रवाह में गति रेखाएँ, अर्थात् धारा रेखाएँ (stream lines), या तो एक ही समतल में होंगी या समांतर समतलों में होंगी, और तब इन समतलों में गति तत्सम होगी। अनंत विस्तारवाले पक्षक पर से प्रवाह द्विविम होता है, क्योंकि पक्षक के अनुप्रस्थ परिच्छेदों पर तत्सम प्रवाह मिलेगा। यदि पक्षक सीमित विस्तार का हो, तो त्रिविम प्रवाह प्राप्त होता है।
 
जब वेग इतना कम हो (लगभग 200 मील प्रति घंटा तक) कि वायु को द्रव के समान संपीड्य माना जा सके, तो प्रवाह को '''असंपीड्य प्रवाह''' कहते हैं। [[वेग]] की दृष्टि से प्रवाह को अवध्वानिक (Subsonic), ट्रांसध्वानिक (Transonic), पराध्वनिक (Supersonic), या अतिध्वनिक (Hypersonic), इस तथ्य के अनुसार कहते हैं कि प्रवाहवेग ध्वनिवेग से कम, उसके निकट, उससे अधिक, या उससे कहीं अधिक है। पिंडजन्य दाबसंकेतों का वेग ध्वनिवेग से, आगेवाले पिंड के सापेक्ष उसके वेग को घटाने पर, या पीछेवाले पिंड के सापेक्ष उसके वेग को जोड़ देने पर, प्राप्त होता है। कालांतर पिंड के सापेक्ष उसके वेग को जोड़ देने पर, प्राप्त होता है। कालांतर में संकेत आकाश के सभी बिंदुओं पर पहुँच जाते हैं। अत्यंत न्यून अवध्वानिक वेगों पर दाबसंकेतों का संचरण (propagation) सभी दिशाओं में [[सममिति|सममित]] होता है और यदि दाबसंकेतों का वेग अनंत माना जा सके, तो अवध्वानिक प्रवाह असंपीड्य प्रवाह जैसा हो जाता है। '''पराध्वानिक प्रवाह''' में दाबसंकेत आगे नहीं जा पाते और किसी बिंदु विशेष पर का विक्षोभ अनुप्रवाह दिशा में "मेक" शंकु (mach cone) के भीतर ही सीमित रहता है। जैसा कि कार्मां ने सिद्ध किया है, अतिध्वानिक प्रवाह का वायुगति-विज्ञान कई बातों में [[न्यूटन]] के [[कणिकावाद]] (Corpuscular Theory) से मेल खाता है। [[रॉकेट]] उड़ान के विकास ने अतिध्वानिक प्रवाह के अध्ययन को प्रेरित किया। इस अध्ययन में शांकवीय प्रवाह के, जिसमें एक मूल बिंदुगामी त्रिज्यों के अनुदिश तरल गुण अपरिवर्तित रहते हैं, अनेकों अनुप्रयोग हैं।