"वाष्पक": अवतरणों में अंतर
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*(३) बलात् प्रवाही नलिकाएँ, जिनमें किसी भी दिशा में लगाई जा सकती हैं।
प्रथम दो श्रेणियों में तो जल का प्रवाह स्वत: ही गरमी की परिवहनक्रिया द्वारा होता रहता है, लेकिन तृतीय श्रेणी के बॉयलरों में किसी पंप की सहायता से बलपूर्वक प्रवाह चालू रखा जाता है। सभी जलनलिकायुक्त, बाह्यत: प्रज्वलित बॉयलरों में ऊपर और नीचे क्रमश: वाष्प और पानी के ढोल रहते हैं, जिन्हें परस्पर छोटी अथवा बड़ी व्यास की जलनलिकाओं से संबंधित कर एक अथवा अधिक संख्या में लगा दिया जाता है। ऊपरवाले ढोलों में वाष्प, अथवा पानी और वाष्प, दोनों का मिश्रण रहता है और नीचेवाले ढोल में केवल पानी
आड़ी जलनलिकायुक्त बॉयलरों में [[बैवक़ॉक-विलकॉक्स बॉयलर]] सर्वोत्तम समझा जाता है। इसमें चार इंच व्यास की नलिकाओं की श्रेणियाँ हेडरों (headers) में दोनों तरफ से लगाकर, उनके सिरों को फुला दिया जाता है और फिर इन हेडरों के ऊपर की तरफ लगी चार इंच व्यास की ही, लेकिन कम लंबाई की, नालियों को उसी प्रकार से बैठ कर, उनके ऊपरी सिरों को वाष्प ढोल में बैठाकर, नीचे की नलिकाश्रेणियों के पूरे जाल को ढोल से आगे और पीछे की ओर से संबंधित कर दिया जाता है। पीछे वाले हेडरों का संबंध, नीचे की ओर से पंकसंग्राहक (mudbox) से कर दिया जाता है, जिसमें बॉयलर के काम करते समय कीचड़ और बहुत गाढ़ा पानी इकट्ठा हो जाता है जो सुविधानुसार बाहर निकाल दिया जाता है। स्थलीय बॉयलरों में वाष्प पानी के ढोल को नलियों की लंबाई की दिशा में रखा जाता है और जहाजी बॉयलरों में आड़ा भी रख सकते हैं।
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