"विज्ञान कथा साहित्य": अवतरणों में अंतर

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हिंदी की विज्ञान कथाओं के बारे में लिखते समय लोग प्रायः केशव प्रसाद सिंह की ‘चंद्रलोक की यात्रा’ (1900) का प्रथम विज्ञान गल्प के रूप में उल्लेख करते हैं। अभी तक ऐसा ही अभिमत है। कदाचित इसका कारण पं॰ श्रीनारायण चतुर्वेदी की वह टिप्पणी है जो उन्होंने ‘सरस्वती’ पत्रिका के 60 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में प्रकाशित ‘हीरक जयंती विशेषांक’ के कहानी खंड के आरंभ में दी थी। ‘सरस्वती’ के भाग 1, संख्या 6 (जून, 1900), में पहिली बार दो कहानियां एक साथ प्रकाशित हुई। किशोरी लाल गोस्वामी की ‘इंदुमती’ और केशव प्रसाद सिंह की ‘चद्रलोक की यात्रा’। चतुर्वेदी जी इन पर टिप्पणी करते हैं-दूसरी कहानी किसी अंग्रेजी कहानी के आधार पर लिखी हुई मालूम होती है। वह लंबी है और धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुई थी। ‘इंदुमती’ सरस्वती ही मे नहीं, हिंदी में आधुनिक शैली की प्रथम कहानी है।’
 
‘चंद्रलोक की यात्रा’ को तो उन्होंने आंग्ल-आधृत कहकर महत्वहीन कर दिया लेकिन ‘इंदुमती’ को पहिली हिन्दी कहानी घोषित किया। ‘इससे पहिले ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’ और ‘पीयूष प्रावह’ में एक-दो कहानियां छपी थीं। पं॰ अंबिका दत्त व्यास की ‘आश्चर्य-वृत्तांत’ नाम की, और पं॰ बाल कृष्ण भट्ट की ‘नूतन ब्रह्यचारी’ नामक कहानियां संभवतः इसके पहिले की प्रकाशित हो चुकी थीं। किंतु ‘इंदुमती’ को ही हिन्दी की पहिली आधुनिक कहानी होने का श्रेय दिया जाता है।’
संभवतः कहकर उन्होंने अपनी बात समाप्त कर दी लेकिन यदि इसकी पड़ताल करने की चेष्टा ही गई होती तो यह विभ्रम समाप्त हो गया होता कि प्रथम हिंदी विज्ञान गल्प कौन-सा है ? यद्यपि हिंदी में यह विमर्श आज भी जारी है कि हिंदी की पहली आधुनिक कहानी कौन सी है....‘इंदुमती’ ? इंशा अल्ला खां की 1803 में प्रकाशित ‘रानी केतकी की कहानी ? या फिर 1870 में प्रकाशित मेरठ में पं॰ गौरी दत्त प्रणीत ‘देवरानी जेठानी की कहानी’ जो वस्तुतः एक लघु सामाजिक उपन्यास है। इस विमर्श मे प्रतिभाग करने का यहां न तो मुझे अवकाश है और न ही यह चर्चा प्रासंगिक ही है।