"विरचना": अवतरणों में अंतर
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== डेरिडा के बारे मे==
डेरिडा ने लिखना तब शुरू किया जब फ्रांसीसी बौद्धिक परिदृश्यों में प्रतिभास और संरचनावाद दृष्टिकोण मे बढता दरार साफ़ नज़र आने लगा था। घटनात्मक दृष्टिकोण उसे कहते हें जब एक अनुभव को उसके जन्मोत्पत्ति द्वारा समझा जाता हें। संरचनावादिक दृष्टिकोण कहता है की किसी भी वास्तु की जन्मोत्पत्ति के अध्ययन से सिर्फ तथ्य का पता लग सकता हें, मगर उसके संरचना के अध्ययन से उसके अनुभव के गहराईयों का आभास होता हें।<ref name=book>{{cite book|last=Chandra|first=Joseph|title=Classical to Contemporary Critical Theory - A Demystified Approach|date=10 February, 2014|publisher=Atlantic Publisher and Distributors Pvt Ltd.|location=New Delhi|isbn=9788126913497|pages=55 - 67}}</ref>
सन् १९५९ मे डेरिडा इस विचारधारा पर प्रश्न उठाते हुए पूछते हें की क्या हर एक संरचना की एक उत्पत्ति स्थल नहीं होती
== सौसयौर और संरचनावाद ==
डीकंस्ट्रक्शन के सिद्धान्तों को आज पोस्ट-स्ट्रकचरलिस्म का एक उपखंड मन जाता है। इस सिद्धान्त का डेरिडा ने सौसयौर के संरचनावादी सिद्धान्त से व्युत्पन्न किया है। सौसयौर के मुताबिक़ शब्दों का उनके अनुरूपित वस्तुओं से कोई प्राकृतिक सम्बन्ध नहीं हें। वह कहते हें की एक शब्द सिर्फ एक संकेत चिन्ह की तरह काम करता हें जो हमे एक वास्तु के तरफ इशारा करता है। एक चिन्ह दो भागों का बना होता हें – सिग्नीफाईड (वह संकल्पना जिसकी तरफ इशारा किया गया है) और सिग्नीफाईयर (वचक - बोलचाल ध्वनी या तो लिखित अक्षर)।
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सौसयौर के मुताबिक एक सिग्नीफाईड और एक सिग्नीफाईयर के बीच का रिश्ता प्राकृतिक नहीं मात्र मनमाना है। हर शब्द को पहले से एक मतलब दिया गया है और इस मतलब का उस वास्तु के वास्तविक रूप से कोई सम्बन्ध नहीं होता। हलाकि क्योंकि हर शब्द से एक अर्थ जोड़ा गया हें उन दोनों का रिश्ता स्थिर मन जाता हें।
== पोस्ट-स्ट्रकचरलिस्म और विरचना==
डेरिडा इस स्थिर रिश्ते को चुनौती देते हुए कहते हें की चूँकि एक शब्द का अर्थ कभी उस शब्द के अन्दर कैद नहीं किया जा सकता
डेरिडा के मुताबिक हर वास्तु का एक द्विचर विपरीत होता हें, जैसे उजाला और अँधेरा, सफेद और काला, अच्छाई और बुरे इत्यादि। इसे और विस्तार मे समझाते हुए वह कहते हें की एक शब्द का पूरा अर्थ कभी उस शब्द मे समाया नहीं होता है। और चूँकि पूरा अर्थ नहीं समाया है हम यह कह सकते हें की अर्थ की अनुपस्थित है। ततः एक द्विचर विपरीत को डीकंस्ट्रक्ट करने के लिए आवश्यक है की हाशिए अवधि (मारजिनलाईजड् टर्म) के महत्व को पहचाना जाये, क्योंकि इसी शब्द के आधार पर विशेषाधिकृत अवधि को अर्थ मिलता है। एक द्विचर अर्थ उस बात कि भी निशानी हे जो अनुपस्थित है। हम एक कुर्सी को कुर्सी मानते हें क्योंकि वह एक मेज़ से अलग है। इस अनुपस्थिथि को डेरिडा डिफ्फेरांस (différance) का नाम देते हें। उनके मुताबिक डिफ्फेरांस बनता है डिफरेंस (अंतर) और डेफेर्रल (अर्थ को टालना) के संघटन से। एक चिन्ह का अर्थ हमेशा उससे परे होता हें। अतः एक चिन्ह पूरी तरह अपने मे समाया नहीं होता, वह हमेशा एक दुसरे चिन्ह या वास्तु पे निर्भर रहता हें, अपने से परे की तरफ इशारा करता है। इसी वजह से डेरिडा कहतें हें की एक चिन्ह का पूरा मतलब उसके द्विचर विपरीत (डिफरेंस) और उसके अर्थ के टालने (डेफेर्रल) के आधार पर ही समझा जा सकता है
फलतः डेरिडा कहते हें की एक ट्रांससेंडेंटल (उत्तोतम) सिग्नीफाईड (हर शब्द के लिए एक ऐसी वास्तु या चिन्ह जो और किसी भी वास्तु या चिन्ह के तरफ इशारा न करे) ढूँढने की आवश्यकता हें, अर्थात एक ऐसा चिन्ह या सिग्नीफाईयर जिसको अपने अर्थ के लिए दुसरे सिग्नीफाईयर पर निर्भर न होना पड़े। हालांकि यह साफ़ ज़ाहिर है की यह मुमकिन नहीं हो सकता।
== विरचना की परिभाषा==
डेरिडा डीकंस्ट्रक्शन की परिभाषा कुछ इस तरह देतें हें (हालाँकि वह हमेशा डीकंस्ट्रक्शन के लिए कोई एकमात्र सही परिभाषा देने से हमेशा कतराएं है) – डीकंस्ट्रक्शन एक गंभीर रूख या पढ़ने और विश्लेषण की रणनीति है जिसे साहित्य, भाषा वैज्ञानं, दर्शनशास्र, कानून और स्थापत्य मे लागू किया जा सकता है। यह भाषा का एक सिद्धान्त है, पढ़ने का एक तरीका है जो हरदम कोशिश करता है की एक कृति के सीमा, हाशिया, जुटना, नियत अर्थ, सच्चाई और पहचान को खंडित करता है, नष्ट करता है
== व्याकरण का अध्ययन (ऑफ़ ग्राममटोलोजी ==
डीकंस्ट्रक्शन का ज़िक्र डेरिडा पहली बार अपने कृति ऑफ़ ग्राममटोलोजि (व्याकरण का अध्ययन) मे करते हैं, जो की उन्होंने सन् १९६७ मे लिखी थी। ग्राममटोलोजि का अर्थ, डेरिडा के मुताबिक है लिखित भाषा का विज्ञानं। इस कृति मे डेरिडा कहतें हें की जब भाषा को लेखन के रूप मे समझा जाता है तब उसके अर्थ का जो हाल होता है, इसे हम डीकंस्ट्रक्शन कहतें हें। कहने का मतलब यह हुआ की चाहे लिखित हमारा ही हो मगर उन शब्दों को अर्थ हमने नहीं दिए हें, वह पहले से ही दुनिया मे मौजूद थे। सालों से उन शब्दों का अर्थ वही रहा है, इसीलिए भाषा हमारे बस मे कभी नहीं होती। डीकंस्ट्रक्शन अस्तित्व मे है क्योंकि अर्थ मे अनिवार्य रूप से व्याख्या, समझौता वार्ता और अनुवाद कुछ कुछ मात्र मे उपलब्ध होतें है।
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