"खगोल शास्त्र": अवतरणों में अंतर

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इस अपरिमित ब्रह्मांड का अति क्षुद्र अंश हम देख पाते हैं। आधुनिक खोजों के कारण जैसे जैसे दूरबीन की क्षमता बढ़ती जाती है, वैसे वैसे ब्रह्मांड के इस दृश्यमान क्षेत्र की सीमा बढ़ती जाती है। परन्तु वर्तमान परिदृश्य में ब्रह्मांड की पूरी थाह मानव क्षमता से बहुत दूर है।
 
खगोल भौतिकी का आधुनिक युग जर्मन भौतिकविद् किरचाक से आरंभ हुआ। सूर्य के वातावरण में सोडियम, लौह, मैग्नेशियम, कैल्शियम तथा अनेक अन्य तत्वों का उन्होंने पता लगाया (सन् 1859)। हमारे देश में स्वर्गीय प्रोफेसर मेघनाद साहा ने सूर्य और तारों के भौतिक तत्वों के अध्ययन में महत्वपूर्ण कार्य किया है। उन्होंने वर्णक्रमों के अध्ययन से खगोलीय पिंडों के वातावरण में अत्यंत महत्वपूर्ण खोजें की हैं। आजकल हमारे देश के दो प्रख्यात वैज्ञानिक डा.डॉ॰ एस. चंद्रशेखर और डा.डॉ॰ जयंत विष्णु नारलीकर भी ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाने में उलझे हुए हैं।
 
बहुत पहले कोपर्निकस, टाइको ब्राहे और मुख्यत: कैप्लर ने खगोल विद्या में महत्वपर्णू कार्य किया था। कैप्लर ने ग्रहों के गति के संबंध में जिन तीन नियमों का प्रतिपादन किया है वे ही खगोल भौतिकी की आधारशिला बने हुए हैं। खगोल विद्या में न्यूटन का कार्य बहुत महत्वपूर्ण रहा है।