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'''वृक्क''' या गुर्दे का जोड़ा एक मानव अंग हैं, जिनका प्रधान कार्य मूत्र उत्पादन (रक्त शोधन कर) करना है। गुर्दे बहुत से [[वर्टिब्रेट]] पशुओं में मिलते हैं। ये मूत्र-प्रणाली के अंग हैं। इनके द्वारा इलेक्त्रोलाइट, क्षार-अम्ल संतुलन और [[रक्तचाप]] का नियामन होता है। इनका मल स्वरुप मूत्र कहलाता है। इसमें मुख्यतः यूरिया और अमोनिया होते हैं।
 
'''गुर्दे''' युग्मित अंग होते हैं, जो कई कार्य करते हैं.हैं। ये अनेक प्रकार के पशुओं में पाये जाते हैं, जिनमें कशेरुकी व कुछ अकशेरुकी जीव शामिल हैं.हैं। ये हमारी मूत्र-प्रणाली का एक आवश्यक भाग हैं और ये इलेक्ट्रोलाइट नियंत्रण, अम्ल-क्षार संतुलन, व रक्तचाप नियंत्रण आदि जैसे समस्थिति (homeostatic) कार्य भी करते है. ये शरीर में रक्त के प्राकृतिक शोधक के रूप में कार्य करते हैं और अपशिष्ट को हटाते हैं, जिसे मूत्राशय की ओर भेज दिया जाता है. मूत्र का उत्पादन करते समय, गुर्दे यूरिया और अमोनियम जैसे अपशिष्ट पदार्थ उत्सर्जित करते हैं; गुर्दे जल, ग्लूकोज़ और अमिनो अम्लों के पुनरवशोषण के लिये भी ज़िम्मेदार होते हैं.हैं। गुर्दे हार्मोन भी उत्पन्न करते हैं, जिनमें कैल्सिट्रिओल (calcitriol), रेनिन (renin) और एरिथ्रोपिटिन (erythropoietin) शामिल हैं.हैं।
 
औदरिक गुहा के पिछले भाग में रेट्रोपेरिटोनियम (retroperitoneum) में स्थित गुर्दे वृक्कीय धमनियों के युग्म से रक्त प्राप्त करते हैं और इसे वृक्कीय शिराओं के एक जोड़े में प्रवाहित कर देते हैं.हैं। प्रत्येक गुर्दा मूत्र को एक मूत्रवाहिनी में उत्सर्जित करता है, जो कि स्वयं भी मूत्राशय में रिक्त होने वाली एक युग्मित संरचना होती है.
 
गुर्दे की कार्यप्रणाली के अध्ययन को वृक्कीय शरीर विज्ञान कहा जाता है, जबकि गुर्दे की बीमारियों से संबंधित चिकित्सीय विधा मेघविज्ञान (nephrology) कहलाती है. गुर्दे की बीमारियां विविध प्रकार की हैं, लेकिन गुर्दे से जुड़ी बीमारियों के रोगियों में अक्सर विशिष्ट चिकित्सीय लक्षण दिखाई देते हैं.हैं। गुर्दे से जुड़ी आम चिकित्सीय स्थितियों में नेफ्राइटिक और नेफ्रोटिक सिण्ड्रोम, वृक्कीय पुटी, गुर्दे में तीक्ष्ण घाव, गुर्दे की दीर्घकालिक बीमारियां, मूत्रवाहिनी में संक्रमण, वृक्कअश्मरी और मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न होना शामिल हैं.हैं।<ref name="robbins">{{cite book |author=Cotran, RS S.; Kumar, Vinay; Fausto, Nelson; Robbins, Stanley L.; Abbas, Abul K. |title=Robbins and Cotran pathologic basis of disease |publisher=Elsevier Saunders |location=St. Louis, MO |year=2005 |pages= |isbn=0-7216-0187-1 |oclc= |doi= |accessdate=}}</ref> गुर्दे के कैंसर के अनेक प्रकार भी मौजूद हैं; सबसे आम वयस्क वृक्क कैंसर वृक्क कोशिका कर्कट (renal cell carcinoma) है. कैंसर, पुटी और गुर्दे की कुछ अन्य अवस्थाओं का प्रबंधन गुर्दे को निकाल देने, या वृक्कुच्छेदन (nephrectomy) के द्वारा किया जा सकता है. जब गुर्दे का कार्य, जिसे केशिकागुच्छीय शुद्धिकरण दर (glomerular filtration rate) के द्वारा नापा जाता है, लगातार बुरी हो, तो डायालिसिस और गुर्दे का प्रत्यारोपण इसके उपचार के विकल्प हो सकते हैं.हैं। हालांकि, पथरी बहुत अधिक हानिकारक नहीं होती, लेकिन यह भी दर्द और समस्या का कारण बन सकती है. पथरी को हटाने की प्रक्रिया में ध्वनि तरंगों द्वारा उपचार शामिल है, जिससे पत्थर को छोटे टुकड़ों में तोड़कर मूत्राशय के रास्ते बाहर निकाल दिया जाता है. कमर के पिछले भाग के मध्यवर्ती/पार्श्विक खण्डों में तीक्ष्ण दर्द पथरी का एक आम लक्षण है.
 
== शरीर रचना ==
=== अवस्थिति ===
मनुष्यों में, गुर्दे उदर गुहा में रेट्रोपेरिटोनियम (retroperitoneum) नामक रिक्त स्थान में स्थित होते हैं.हैं। इनकी संख्या दो होती है और इनमें से एक-एक गुर्दा मेरुदण्ड के दोनों तरफ एक स्थित होता है; वे लगभग T12 से L3 के मेरुदण्ड स्तर पर होते हैं.हैं।<ref name="boron">{{cite book |author=Walter F., PhD. Boron |title=Medical Physiology: A Cellular And Molecular Approach |publisher=Elsevier/Saunders |location= |year=2004 |pages= |isbn=1-4160-2328-3 |oclc= |doi= |accessdate=}}</ref> दायां गुर्दा मध्यपट के ठीक नीचे और यकृत के पीछे स्थित होता है, तथा बायां मध्यपट के नीचे और प्लीहा के पीछे होता है. प्रत्येक गुर्दे के शीर्ष पर एक अधिवृक्क ग्रंथि होती है. यकृत के कारण उदर गुहा में पाई जाने वाली विषमता के कारण दायां गुर्दा बाएं की तुलना में थोड़ा नीचे होता है और बायां गुर्दा दाएं की तुलना में थोड़ा अधिक मध्यम में स्थित होता है.<ref>{{cite web |url=http://www.indexedvisuals.com/scripts/ivstock/pic.asp?id=118-100 |title=Kidneys Location Stock Illustration |format= |work= |accessdate=}}</ref><ref>http://www.bioportfolio.com/indepth/Kidney.html</ref> गुर्दे के ऊपरी (कपालीय) भाग आंशिक रूप से ग्यारहवीं व बारहवीं पसली द्वारा सुरक्षा की जाती है और पूरा गुर्दा तथा अधिवृक्क ग्रंथि वसा (पेरिरीनल व पैरारीनल वसा) तथा वृक्क पट्टी (renal fascia) द्वारा ढंके होते हैं.हैं। प्रत्येक वयस्क गुर्दे का भार पुरुषों में 125 से 170 ग्राम के बीच और महिलाओं में 115 से 155 ग्राम के बीच होता है.<ref name="boron" /> विशिष्ट रूप से बायां गुर्दा दाएं की तुलना में थोड़ा बड़ा होता है.<ref name="pmid20030823">{{cite journal |author=Glodny B, Unterholzner V, Taferner B, ''et al.'' |title=Normal kidney size and its influencing factors - a 64-slice MDCT study of 1.040 asymptomatic patients |journal=BMC Urology |volume=9 |issue= |pages=19 |year=2009 |pmid=20030823 |pmc=2813848 |doi=10.1186/1471-2490-9-19 |url=http://www.biomedcentral.com/1471-2490/9/19}}</ref>
=== संरचना ===
[[चित्र:KidneyStructures PioM.svg|thumb|250px|right|1.गुर्दे पिरामिड •2.अंतर्खण्डात्मक धमनियों •3.गुर्दे धमनी •4.गुर्दे नस 5.वृक्कीय नाभिका •6.वृक्कीय पेडू •7.मूत्राशय •8.माइनर कैल्य्क्स •9.रीनल कैप्सूल •10.अवर गुर्दे कैप्सूल •11.बेहतर गुर्दे कैप्सूल •12.अंतर्खण्डात्मक शिराओं •13.नेफ्रॉन •14.माइनर कैल्य्क्स •15.प्रमुख कैल्य्क्स •16.गुर्दे पपिला •17.गुर्दे स्तंभ]]
 
गुर्दे की संरचना सेम के आकार की होती है, प्रत्येक गुर्दे में अवतल और उत्तल सतहें पाई जाती हैं.हैं। अवतल सतह, जिसे वृक्कीय नाभिका (renal hilum) कहा जाता है, वह बिंदु है, जहां से वृक्क धमनी इस अंग में प्रवेश करती है और वृक्क शिरा तथा मूत्रवाहिनी बाहर निकलती है. गुर्दा सख्त रेशेदार ऊतकों, वृक्कीय कैप्सूल (renal capsule) से घिरा होता है, जो स्वयं पेरिनेफ्रिक (perinephric) वसा, वृक्क पट्टी (गेरोटा की) तथा पैरानेफ्रिक वसा से घिरी होती है. इन ऊतकों की अग्रवर्ती (अगली) सीमा पेरिटोनियम है, जबकि पश्च (पिछली) सीमा ट्रांसवर्सैलिस पट्टी है.
 
दाएं गुर्दे की ऊपरी सीमा यकृय से सटी हुई होती है; और बायीं सीमा प्लीहा से जुड़ी होती है. अतः सांस लेने पर ये दोनों ही नीचे की ओर जाते हैं.हैं।
 
गुर्दा लगभग 11-14 सेमी लंबा, 6 सेमी चौड़ा और 3 सेमी मोटा होता है.
 
गुर्दे का पदार्थ, या जीवितक (parenchyma), दो मुख्य संरचनाओं में विभक्त होता है: ऊपरी भाग में वृक्कीय छाल (renal cortex) और इसके भीतर वृक्कीय मज्जा (renal medulla) होती है. कुल मिलाकर ये संरचनाएं शंकु के आकार के आठ से अठारह वृक्कीय खण्डों की एक आकृति बनाती हैं, जिनमें से प्रत्येक में मज्जा के एक भाग को ढंकने वाली वृक्क छाल होती है, जिसे वृक्कीय पिरामिड (मैल्पिघी का) कहा जाता है.<ref name="boron" /> वृक्कीय पिरामिडों के बीच छाल के उभार होते हैं, जिन्हें वृक्कीय स्तंभ (बर्टिन के) कहा जाता है. नेफ्रॉन (Nephrons), गुर्दे की मूत्र उत्पन्न करने वाली कार्यात्मक संरचनाएं, छाल से लेकर मज्जा तक फैली होती हैं.हैं। एक नेफ्रॉन का प्रारंभिक शुद्धिकरण भाग छाल में स्थित वृक्कीय कणिका (renal corpuscle) होता है, जिसके बाद छाल से होकर मज्जात्मक पिरामिडों में गहराई तक जानी वाली एक वृक्कीय नलिका (renal tubule) पाई जाती है. एक मज्जात्मक किरण, वृक्कीय छाल का एक भाग, वृक्कीय नलिकाओं का एक समूह होता है, जो एक एकल संग्रहण नलिका में जाकर रिक्त होती हैं.हैं।
 
प्रत्येक पिरामिड का सिरा, या अंकुरक (papilla) मूत्र को लघु पुटक (minor calyx) में पहुंचाता है, लघु पुटक मुख्य पुटकों (major calyces) में जाकर रिक्त होता है और मुख्य पुटक वृक्कीय पेडू (renal pelvis) में रिक्त होता है, जो कि मूत्रनलिका बन जाती है.
 
=== रक्त की आपूर्ति ===
गुर्दे बायीं तथा दाहिनी वृक्क धमनियों से रक्त प्राप्त करते हैं, जो सीधे औदरिक महाधमनी (abdominal aorta) से निकलती हैं.हैं। अपने अपेक्षाकृत छोटे आकार के बावजूद गुर्दे हृदय से निकलने वाले रक्त का लगभग 20% भाग प्राप्त करते हैं.हैं।<ref name="boron" />
 
प्रत्येक वृक्कीय धमनी अनेक खण्डात्मक धमनियों में विभाजित हो जाती है, जो आगे अंतर्खण्डात्मक धमनियों (interlobar arteries) में बंट जाती हैं, जो वृक्कीय कैप्सूल का छेदन करती हैं और वृक्कीय पिरामिडों के बीच स्थित वृक्कीय स्तंभों से होकर गुज़रती हैं.हैं। इसके बाद अंतर्खण्डात्मक धमनियां चापाकार धमनियों (arcuate arteries), जो छाल तथा मज्जा की सीमा पर होती हैं, को रक्त की आपूर्ति करती हैं.हैं। प्रत्येक चापाकार धमनी विभिन्न अंतर्खण्डात्मक धमनियां प्रदान करती है, जो अभिवाही धमनियों को भरती हैं, जो ग्लोमेरुली को रक्त की आपूर्ति करती हैं.हैं।
 
'''इंटरस्टिटम (interstitum)''' (या '''इंटरस्टिशियम (interstitium)''' ) गुर्दे में कार्यात्मक स्थान है, जो एकल तंतुओं (केशिकास्तवक) के नीचे स्थित होता है, जो कि रक्त वाहिनियों से परिपूर्ण होते हैं.हैं। इंटरस्टिटम मूत्र से पुनर्प्राप्त हुए द्रव को अवशोषित कर लेता है. अनेक स्थितियों के कारण इस क्षेत्र में दाग़-धब्बे या रक्त-संचय हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप गुर्दे के कार्य में बाधा उत्पन्न हो सकती है और यह काम करना बंद भी कर सकता है.
 
शोधन की प्रक्रिया पूर्ण हो जाने पर रक्त शिरिकाओं के एक छोटे नेटवर्क से होकर गुज़रता है, जो अंतर्खण्डात्मक शिराओं की ओर अभिसरण करती हैं.हैं। शिराएं भी धमनियों जैसे वितरण पैटर्न का ही पालन करती हैं, अभिवाही शिराएं चापाकार शिराओं को रक्त प्रदान करती हैं और फिर वहां से यह अंतर्खण्डात्मक शिराओं की ओर जाता है, जो रक्ताधान के लिये गुर्दे से बाहर निकलने वाली वृक्कीय शिरा का निर्माण करती हैं.हैं।
 
=== ऊतक-विज्ञान ===
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=== अभिप्रेरणा ===
गुर्दा और स्नायु तंत्र वृक्कीय जाल (renal plexus) के माध्यम से आपस में संवाद करते हैं, जिसके रेशे गुर्दे तक पहुंचने के लिये वृक्कीय धमनियों के साथ जुड़े होते हैं.हैं।<ref name="Bard">{{cite book |author=Bard, Johnathan; Vize, Peter D.; Woolf, Adrian S. |title=The kidney: from normal development to congenital disease |publisher=Academic Press |location=Boston |year=2003 |pages=154 |isbn=0-12-722441-6 |url=http://books.google.com/?id=ctOm-cPwo60C&pg=PA154 |oclc= |doi= |accessdate=}}</ref> अनुकंपी स्नायु तंत्र से प्राप्त इनपुट गुर्दे में वाहिकासंकीर्णक (vasoconstriction) को अभिप्रेरित करता है, जिससे वृक्कीय रक्त प्रवाह में कमी आती है.<ref name="Bard" /> ऐसा माना जाता है कि गुर्दे सहानुकम्पी स्नायु तंत्र से इनपुट प्राप्त नहीं करते.<ref name="Bard" /> गुर्दे से निकलने वाले संवेदक इनपुट मेरुदण्ड के T10-11 स्तरों की ओर बढ़ता है और संबंधित अंतर्त्वचा (dermatome) द्वारा महसूस किया जाता है.<ref name="Bard" /> अतः बगल में महसूस होने वाला दर्द गुर्दे से संबद्ध हो सकता है.<ref name="Bard" />
 
== कार्य ==
{{main|गुर्दे की बनावट}}
 
अम्ल-क्षार संतुलन, इलेक्ट्रोलाइट सान्द्रता, कोशिकेतर द्रव मात्रा (extracellular fluid volume) को नियंत्रित करके और रक्तचाप पर नियंत्रण रखते हुए गुर्दे पूरे शरीर के होमियोस्टैसिस (homeostasis) में भाग लेते हैं.हैं। गुर्दे इन होमियोस्टैटिक कार्यों को स्वतंत्र रूप से व अन्य अंगों, विशिष्टतः अंतःस्रावी तंत्र के अंगों, के साथ मिलकर, दोनों ही प्रकार से पूर्ण करते हैं.हैं। इन अंतःस्रावी कार्यों की पूर्ति के लिये विभिन्न अंतःस्रावी हार्मोन के बीच तालमेल की आवश्यकता होती है, जिनमें रेनिन, एंजियोटेन्सिस II, एल्डोस्टेरोन, एन्टिडाययूरेटिक हॉर्मोन और आर्टियल नैट्रियूरेटिक पेप्टाइड आदि शामिल हैं.हैं।
 
गुर्दे के कार्यों में से अनेक कार्य नेफ्रॉन में होने वाले परिशोधन, पुनरवशोषण और स्राव की अपेक्षाकृत सरल कार्यप्रणालियों के द्वारा पूर्ण किये जाते हैं.हैं। परिशोधन, जो कि वृक्कीय कणिका में होता है, एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोशिकाएं तथा बड़े प्रोटीन रक्त से छाने जाते हैं और एक अल्ट्राफिल्ट्रेट का निर्माण होता है, जो अंततः मूत्र बनेगा. गुर्दे एक दिन में 180 लीटर अल्ट्राफिल्ट्रेट उत्पन्न करते हैं, जिसका एक बहुत बड़ा प्रतिशत पुनरवशोषित कर लिया जाता है और मूत्र की लगभग 2 लीटर मात्रा की उत्पन्न होती है. इस अल्ट्राफिल्ट्रेट से रक्त में अणुओं का परिवहन पुनरवशोषण कहलाता है. स्राव इसकी विपरीत प्रक्रिया है, जिसमें अणु विपरीत दिशा में, रक्त से मूत्र की ओर भेजे जाते हैं.हैं।
 
कार के अपशिष्ट पदार्थ उत्सर्जित करते हैं.हैं। इनमें प्रोटीन अपचय से उत्पन्न नाइट्रोजन-युक्त अपशिष्ट यूरिया और न्यूक्लिक अम्ल के चयापचय से उत्पन्न यूरिक अम्ल शामिल हैं.हैं।
 
=== परासरणीयता नियंत्रण ===
प्लाज़्मा परासरणीयता (plasma osmolality) में किसी भी उल्लेखनीय वृद्धि या गिरावट की पहचान हाइपोथेलेमस द्वारा की जाती है, जो सीधे पिछली श्लेषमीय ग्रंथि से संवाद करता है. परासरणीयता में वृद्धि होने पर यह ग्रंथि एन्टीडाययूरेटिक हार्मोन (antidiuretic hormone) एडीएच (ADH) का स्राव करती है, जिसके परिणामस्वरूप गुर्दे द्वारा जल का पुनरवशोषण किया जाता है और मूत्र की सान्द्रता बढ़ जाती है. ये दोनों कारक एक साथ कार्य करके प्लाज़्मा की परासरणीयता को पुनः सामान्य स्तरों पर लाते हैं.हैं।
 
एडीएच (ADH) संग्रहण नलिका में स्थित मुख्य कोशिकाओं से जुड़ा होता है, जो एक्वापोरिन (aquaporins) को मज्जा में स्थानांतरित करता है, ताकि जल सामान्यतः अभेद्य मज्जा को छोड़ सके और वासा रिएक्टा (vasa recta) द्वारा शरीर में इसका पुनरवशोषण किया जा सके, जिससे शरीर में प्लाज़्मा की मात्रा में वृद्धि होती है.
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ऐसी दो प्रणालियां हैं, जो अतिपरासरणीय मज्जा (hyperosmotic medulla) का निर्माण करती हैं और इस प्रकार शरीर में प्लाज़्मा की मात्रा को बढ़ाती हैं: यूरिया पुनर्चक्रण तथा ‘एकल प्रभाव (single effect).'
 
यूरिया सामान्यतः गुर्दों से एक अपशिष्ट पदार्थ के रूप में उत्सर्जित किया जाता है. हालांकि, जब प्लाज़्मा रक्त-मात्रा कम होती है और एडीएच (ADH) छोड़ा जाता है, तो इससे खुलने वाले एक्वापोरिन्स (aquaporins) भी यूरिया के प्रति भेद्य होते हैं.हैं। इससे यूरिया को एक हाइपर संग्रहण नलिका को छोड़कर मज्जा में प्रवेश करके जल को ‘आकर्षित’ करने वाले एक हाइपरॉस्मॉटिक विलयन का निर्माण करने का मौका मिलता है. इसके बाद यूरिया नेफ्रॉन में पुनः प्रवेश कर सकता है और इस आधार पर इसे पुनः उत्सर्जित या पुनर्चक्रित किया जा सकता है कि एडीएच (ADH) अभी भी उपस्थित है या नहीं.
 
‘एकल प्रभाव’ इस तथ्य का वर्णन करता है कि लूप्स ऑफ हेनली का मोटा आरोही अंग जल के द्वारा भेद्य नहीं है, लेकिन भू.नी (NaCl) के द्वारा भेद्य है. इसका अर्थ यह है कि एक प्रति-प्रवाही प्रणाली निर्मित होती है, जिसके द्वारा मज्जा अधिक सान्द्रित बन जाती है और यदि एडीएच (ADH) द्वारा संग्रहण नलिका को खोल दिया गया हो, तो जल के एक परासरणीयता अनुपात द्वारा इसका अनुपालन किया जाना चाहिये.
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लंबी-अवधि में रक्तचाप का नियंत्रण मुख्यतः गुर्दे पर निर्भर होता है. मुख्यतः ऐसा कोशिकेतर द्रव उपखंड के अनुरक्षण के माध्यम से होता है, जिसका आकर प्लाज़्मा सोडियम सान्द्रता पर निर्भर करता है. हालांकि, गुर्दे सीधे ही रक्तचाप का अनुमान नहीं लगा सकते, लेकिन नेफ्रॉन के दूरस्थ भागों में सोडियम और क्लोराइड की सुपुर्दगी में परिवर्तन गुर्दे द्वारा किये जाने वाले किण्वक रेनिन के स्राव को परिवर्तित कर देता है. जब कोशिकेतर द्रव उपखंड विस्तारित हो और रक्तचाप उच्च हो, तो इन आयनों की सुपुर्दगी बढ़ जाती है और रेनिन का स्राव घट जाता है. इसी प्रकार, जब कोशिकेतर द्रव उपखंड संकुचित हो और रक्तचाप निम्न हो, तो सोडियम और क्लोराइड की सुपुर्दगी कम हो जाती है और प्रतिक्रियास्वरूप रेनिन स्राव बढ़ जाता है.
 
रेनिन उन रासायनिक संदेशवाहकों की श्रृंखला का पहला सदस्य है, जो मिलकर रेनिन-एंजियोटेन्सिन तंत्र का निर्माण करते हैं.हैं। रेनिन में होने वाले परिवर्तन अंततः इस तंत्र के आउटपुट, मुख्य रूप से एंजियोटेन्सिन II और एल्डोस्टेरॉन, को परिवर्तित करते हैं.हैं। प्रत्येक हार्मोन अनेक कार्यप्रणालियों के माध्यम से कार्य करता है, लेकिन दोनों ही गुर्दे द्वारा किये जाने वाले सोडियम क्लोराइड के अवशोषण को बढ़ाते हैं, जिससे कोशिकेतर द्रव उपखंड का विस्तार होता है और रक्तचाप बढ़ता है. जब रेनिन के स्तर बढ़े हुए होते हैं, तो एंजियोटेन्सिन II और एल्डोस्टेरॉन की सान्द्रता बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप सोडियम क्लोराइड के पुनरवशोषण में वृद्धि होती है, कोशिकेतर द्रव उपखंड का विस्तार होता है और रक्तचाप बढ़ जाता है. इसके विपरीत, जब रेनिन के स्तर निम्न होते हैं, तो एंजियोटेन्सिन II और एल्डोस्टेरॉन के स्तर घट जाते हैं, जिससे कोशिकेतर द्रव उपखंड का संकुचन होता है और रक्तचाप में कमी आती है.
 
=== हार्मोन स्राव ===
गुर्दे अनेक प्रकार के हार्मोन का स्राव करते हैं, जिनमें एरिथ्रोपीटिन, कैल्सिट्रिऑल और रेनिन शामिल हैं.हैं। एरिथ्रोपीटिन को वृक्कीय प्रवाह में हाइपॉक्सिया (ऊतक स्तर पर ऑक्सीजन का निम्न स्तर) की प्रतिक्रिया के रूप में छोड़ा जाता है. यह अस्थि-मज्जा में एरिथ्रोपोएसिस (लाल रक्त कणिकाओं के उत्पादन) को उत्प्रेरित करता है. कैल्सिट्रिऑल, विटामिन डी का उत्प्रेरित रूप, कैल्शियम के आन्त्र अवशोषण तथा फॉस्फेट के वृक्कीय पुनरवशोषण को प्रोत्साहित करता है. रेनिन, जो कि रेनिन-एंजिओटेन्सिन-एल्डोस्टेरॉन तंत्र का एक भाग है, एल्डोस्टेरॉन स्तरों के नियंत्रण में शामिल एक एंज़ाइम होता है.
 
== विकास ==
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== शब्द व्युत्पत्ति ==
गुर्दे से जुड़ी चिकित्सीय शब्दावलियां आमतौर पर ''वृक्कीय (renal)'' जैसे शब्दों तथा ''नेफ्रो- (nephro-)'' उपसर्ग का प्रयोग करती हैं.हैं। विशेषण ''वृक्कीय (renal)'', जिसका अर्थ होता है, वृक्क (गुर्दे) से संबंधित, लैटिन शब्द ''रेनेस (rēnēs)'' से लिया गया है, जिसका अर्थ है गुर्दे; उपसर्ग ''नेफ्रो- (nephro-)'' गुर्दे के लिये प्रयुक्त [[प्राचीन यूनानी भाषा|प्राचीन ग्रीक]] शब्द ''नेफ्रॉस (nephros (νεφρός)'' ) से लिया गया है.<ref>{{cite book | last = Maton | first = Anthea | authorlink = | coauthors = Jean Hopkins, Charles William McLaughlin, Susan Johnson, Maryanna Quon Warner, David LaHart, Jill D. Wright | title = Human Biology and Health | publisher = Prentice Hall | year = 1993 | location = Englewood Cliffs, New Jersey, USA | pages = | url = | doi = | id = | isbn = 0-13-981176-1}}</ref> उदाहरण के लिये, शल्यचिकित्सा के द्वारा गुर्दे को निकाल देना ''नेफ्रेक्टॉमी (nephrectomy)'' कहलाता है, जबकि गुर्दे के कार्य में कमी को ''वृक्कीय दुष्क्रिया (renal dysfunction)'' कहते हैं.हैं।
 
== बीमारियां एवं विकार ==
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* लूपस वृक्कशोथ (Lupus nephritis)
* न्यूनतम परिवर्तन रोग (Minimal change disease)
* नेफ्रॉटिक सिण्ड्रोम में केशिकास्तवक क्षतिग्रस्त हो जाता है, जिससे रक्त में उपस्थित प्रोभूजिन की एक बड़ी मात्रा मूत्र में प्रवेश कर जाती है. नेफ्रॉटिक सिण्ड्रोम के अन्य आम लक्षणों में निम्न सीरम एल्ब्युमिन (low serum albumin) और उच्च कोलेस्टेरॉल शामिल हैं.हैं।
* वृक्कगोणिकाशोध (Pyelonephritis) गुर्दे का संक्रमण है और अक्सर यह मूत्रवाहिनी के संक्रमण में जटिलता बढ़ने पर होता है.
* वृक्कीय विफलता (Renal failure)
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== अन्य जीवों में ==
[[चित्र:Kidney.JPG|thumb|150px|righ|एक सुअर गुर्दे खोला.]]अधिकांश कशेरुकी जीवों में, मेसोनेफ्रॉस (mesonephros) एक वयस्क गुर्दे में परिवर्तित हो जाता है, हालांकि अक्सर यह अधिक उन्नत मेटानेफ्रॉस (metanephros) के साथ जुड़ा हुआ होता है; केवल एम्निओट (amniotes) में मेसोनेफ्रॉस भ्रूण तक सीमित होता है. मछली और उभयचरों के गुर्दे विशिष्ट रूप से संकरे, लंबे अंग होते हैं, जो धड़ का एक बहुत बड़ा भाग घेर लेते हैं.हैं। नेफ्रॉन के प्रत्येक झुण्ड की संग्रहण नलिकाएं एक ''आर्चिनेफ्रिक नलिका (archinephric duct)'' में जाकर रिक्त होती है, जो कि अम्निओट जीवों के वास डेफरेन्स (vas deferens) सदृश है. हालांकि, यह स्थिति सदैव ही सरल नहीं होती; उपास्थिसम मछलियों में और कुछ उभयचरों में, एम्नियोट जीवों में पाई जाने वाली मूत्रवाहिनी के समान, एक छोटी नलिका होती है, जो गुर्दे के पिछले (मेटानेफ्रिक) भागों को रिक्त करती है और मूत्राशय या मोरी (cloaca) पर आर्चिनेफ्रिक नलिका से जुड़ जाती है. वस्तुतः, अनेक वयस्क उपास्थिसम मछलियों में, गुर्दे का अग्र भाग विकृत हो सकता है या पूरी तरह कार्य करना बंद कर सकता है.<ref name="VB" />
 
सर्वाधिक आदिम कशेरुकी जीवों, हैगफिश (hagfish) और लैम्प्रे (Lamprey) में, गुर्दे की संरचना असाधारण रूप से सरल होती है: यह नेफ्रॉन की एक पंक्ति से मिलकर बनती है, जिनमें से प्रत्येक सीधे आर्चिनेफ्रिक नलिका में रिक्त होता है. अकशेरुकी जीवों में ऐसे उत्सर्जन अंग हो सकते हैं, जिनका उल्लेख कभी-कभी “गुर्दों” के रूप में किया जाता है, लेकिन, यहां तक कि ''एम्फिऑक्सस (Amphioxus)'' में भी, ये कभी भी कशेरुकी जीवों के गुर्दों के सदृश नहीं होते और ज्यादा सही रूप से उनके लिये अन्य नामों, जैसे नेफ्रिडिया (nephridia) का प्रयोग किया जाता है.<ref name="VB" />
 
सरीसृपों के गुर्दे अनेक खण्डों से बने होते हैं, जो कि मोटे तौर पर एक रेखीय पैटर्न में व्यवस्थित होते हैं.हैं। प्रत्येक खण्ड के केंद्र में मूत्रवाहिनी की एक एकल शाखा होती है, जिसमें संग्रहण वाहिनी आकर रिक्त होती है. सरीसृपों में उसी आकार के अन्य एम्निओट (amniotes) जीवों की तुलना में अपेक्षाकृत कम नेफ्रॉन होते हैं, संभवतः इसलिये क्योंकि उनमें चयापचय की दर निम्न होती है.<ref name="VB">{{cite book |author=Romer, Alfred Sherwood|author2=Parsons, Thomas S.|year=1977 |title=The Vertebrate Body |publisher=Holt-Saunders International |location= Philadelphia, PA|pages= 367–376|isbn= 0-03-910284-X}}</ref>
 
[[पक्षी|पक्षियों]] में अपेक्षाकृत बड़े, लंबे गुर्दे होते हैं, जिनमें से प्रत्येक तीन या अधिक पृथक खण्डों में विभाजित होता है. ये खण्ड अनेक छोटे, अनियमित रूप से व्यवस्थित खण्डों से मिलकर बने होते हैं, जिनमें से प्रत्येक मूत्रवाहिनी की एक शाखा पर केंद्रित होता है. पक्षियों के ग्लोमेरुली का आकार छोटा होता है, लेकिन उनमें नेफ्रॉन की संख्या स्तनपायी जीवों की तुलना में लगभग दोगुनी होती है.<ref name="VB" />
 
मानव गुर्दा स्तनपायी जीवों का एक बहुत विशिष्ट उदाहरण है. अन्य कशेरुकी जीवों की तुलना में स्तनपायी गुर्दे के विशिष्ट लक्षणों में, वृक्कीय पेडू और वृक्कीय पिरामिड की उपस्थिति और एक स्पष्ट रूप से पहचाने जा सकने वाली छाल और मज्जा की उपस्थिति शामिल हैं.हैं। बाद वाला लक्षण लूप्स ऑफ हेन्ले के बड़े आकार की उपस्थिति के कारण होता है; पक्षियों में ये बहुत छोटे होते हैं और अन्य कशेरुकी जीवों में वस्तुतः ये नहीं पाये जाते (हालांकि अक्सर नेफ्रॉन में संवलित नलिकाओं के बीच एक छोटा ''मध्यवर्ती खण्ड'' होता है). केवल स्तनपायी जीवों में ही गुर्दा अपनी पारंपरिक “गुर्दा” आकृति में होता है, हालांकि इसके कुछ अपवाद हैं, जैसे तिमिवर्ग के सदस्यों (cetaceans) के बहु-खण्डीय रेनिक्यूलेट गुर्दे.<ref name="VB" />
 
== इतिहास ==
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जानवरों के गुर्दों को मनुष्यों द्वारा पकाकर खाया जा सकता है (अन्य आंतरिक अंगों के साथ).
 
गुर्दों को सामान्यतः भुना या तला जाता है, लेकिन बहुत जटिल खाद्य-पदार्थों में उन्हें एक सालन (sauce), जो इनके स्वाद को बढ़ाएगा, के साथ धीमी आंच पर पकाया जाता है. अनेक पदार्थों, जैसे मिक्सड ग्रिल (mixed grill) या म्युराव येरुशाल्मी (Meurav Yerushalmi) में, गुर्दों को मांस या यकृत के टुकड़ों के साथ मिलाया जाता है. गुर्दे से बनने वाले सर्वाधिक प्रतिष्ठित खाद्य-पदार्थों में, ब्रिटिश स्टीक और किडनी पाई (Steak and kidney pie), स्वीडिश हॉकार्पाना (Hökarpanna) (सूअर का मांस और धीमी आंच पर पकाया गया गुर्दा), फ्रेंच ''रॉग्नॉस डी वीयु सॉस मॉट्रार्डे (Rognons de veau sauce moutarde)'' (राई के सालन में बछड़े के गुर्दे) और स्पैनिश ''“रिनॉन्स अल जेरेज़ (Riñones al Jerez)”'' (शैरी के सालन में धीमी आंच पर पकाए गए गुर्दे), विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.हैं।<ref>[http://cuisine.notrefamille.com/recettes-cuisine/rognons-recette.html रोग्नोंस दानस लेस रेसेटस] {{fr}}</ref>
 
== इन्हें भी देखें ==