"पुस्तकालय विज्ञान": अवतरणों में अंतर

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पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान की शिक्षा के माध्यम से ही पुस्तकालयों का व्यस्थापन तथा संचालन हेतु योग्य और कुशल कर्मचारियों को तैयार किया जाता है .पुस्तकालय विज्ञान तकनीकी विषयों की श्रेणी में आता है तथा एक सेवा सम्बन्धी व्यवसाय है. यह प्रबंधन, सूचना प्रौद्योगिकी, शिक्षाशास्त्र एवं अन्य विधाओं के सिद्धान्तो एवं उपकरणों का पुस्तकालय के सन्दर्भ में उपयोग करता है।
पुस्तकालय विकासशील संस्था है क्योंकि उसमें पुस्तकों और अन्य आवश्यक उपादानों की निरंतर वृद्धि होती रहती है। इस कारण इसकी स्थापना के समय ही इस तथ्य पर ध्यान देना आवश्यक होता है।यह संचरण इकाइयों के इतिहास, संगठन, प्रबंधन, विभिन्न तकनीको, सेवाओं, समाज के प्रति उनके कर्तव्यों तथा सामान्य कार्य कलापों का सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक अध्ययन पर आधारित एक वृहद् विषय है .इसका आकार - प्रकार तथा परिसीमा विषय व् सूचना जगत के साथ निरंतर बदलता रहता है .इसलिए पुस्तकालय विज्ञान की शिक्षा में पुस्तकालय की विभिन्न तकनीकियों एवं प्रविधियों के साथ -साथ पुस्तकालय सम्बन्धी विभिन्न सेवाओं का भी पर्याप्त ज्ञान एवं जानकारी प्रदान की जाती है।१९ वीं शताब्दी के प्रारंभ होने तक पुस्तकालय शिक्षा प्रदान करने की कोई आवश्यकता नहीं समझी जाती थी क्योंकि तब यह माना जाता था कि पुस्तकालय की व्यवस्था एवं संचालन के लिए किसी विशेष रूप से शिक्षित अथवा प्रशिक्षित व्यक्ति की आवश्यकता नहीं है।
थॉमस जेफरसन, के संग्रह मोंतिसल्लो (Monticello) में हजारों पुस्तकें थी। उसने विषय पर आधारित वर्गीकरण प्रणाली का प्रयोग किया.किया। जेफरसन संग्रह संयुक्त राज्य अमेरिका का पहला राष्ट्रीय संग्रह था जो की अब कांग्रेस के पुस्तकालय के रूप में विश्व विख्यात है.
पुस्तकालय विज्ञान पर मार्टिन स्च्रेत्तिन्गेर की पहली पाठ्यपुस्तक. १८८० में प्रकाशित हुयी थी
इसके बाद जोहान्न जेओर्ग सेइज़िन्गेर की दूसरी पुस्तक प्रकाशित हुयी.
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डा मेलविल ड्युई के प्रयासों से कोलंबिया कालेज में पुस्तकालय विज्ञान का पहला अमेरिकन स्कूल
१ जनवरी १८८७ को आरम्भ किया गया तथा इसे लाइब्रेरी इकोनोमी का नाम दिया गया जो की १९४२ तक अमेरिका में इसी नाम से प्रचलित रहा. इसके पाठ्यक्रमों में पुस्तकालय तकनीको तथा पुस्तकालय सेवा के व्यावहारिक पक्षों पर अधिक जोर दिया गया था. इस प्रकार १९वी शताब्दी के अंत तक अमेरिका में अनेक स्थानों पर पुस्तकालय विज्ञान की शिक्षा का कार्य प्रारम्भ हो गया था. अमेरिका ही पहला देश है जहाँ पुस्तकालय विज्ञान की स्नातक तथा डॉक्टर की उपाधियों से सम्बंधित पाठ्यक्रम सर्वप्रथम प्रारंभ किये गए। अमेरिका के बाद इंग्लेंड दूसरा देश है जहाँ पुस्तकालय विज्ञान का पहला विद्यालय लन्दन में १९२१ में लन्दन स्कूल आफ लैब्रेरिंशिप प्रारंभ किया गया.
अंग्रेजी में पुस्तकालय विज्ञान शब्द का प्रयोग १९१६ में पंजाब विश्विद्यालय लाहोर द्वारा प्रकाशित पुस्तक “ पंजाब लाइब्रेरी “ में किया गया. पंजाब विश्विद्यालय लाहोर एशिया में पहला विश्विद्यालय था जो की पुस्तकालय विज्ञान की शिक्षा प्रदान कर रहा था. यह अंग्रेजी में प्रकाशित पहली पाठ्य पुस्तक थी.थी। इसी प्रकार अमेरिका में १९२९ में पहली पाठ्य पुस्तक “Manual of Library Economy “ . इसके बाद शियाली रामामृत रंगनाथन की "The Five Laws of Library Science (1931)“ प्रकाशित हुयी जिससे पुस्तकालय विज्ञान का प्रचलन आरंभ हुआ.
रंगनाथन नें पुस्तकालय के कार्य एवं उद्देश्य भी स्पष्ट किये . रंगनाथन द्वारा १९३१ में पुस्तकालय विज्ञानं हेतु पांच सूत्र प्रतिपादित किये. इसके अनुसार :
१. पुस्तक उपयोग के लिए हैं.हैं।
२.प्रत्येक पाठक को उसकी पुस्तक मिले .
३.प्रत्येक पुस्तक को उसका पाठक मिले.
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विस्तृत तथा विशेष ज्ञान प्रदान करने में पुस्तकालयों की भूमिका को व्यापक रूप में स्वीकार जाता है .आज के सन्दर्भ में पुस्तकालयों को दो विशिष्ट भूमिकाओं का निर्वहन करना है .पहली सूचना तथा ज्ञान के स्थानीय केंद्र के रूप में कार्य करने की और दूसरी राष्ट्रीय एवं विश्व ज्ञान के स्थानीय श्रोत के रूप में .इस सन्दर्भ में भारतीय संस्कृति विभाग ने एक केन्द्रीय क्षेत्र योजना के रूप में एक राष्ट्रिय पुस्तकालय मिशन स्थापित करने का प्रस्ताव किया है. इसके अंतर्गत इन्टरनेट की सुविधा युक्त कंप्यूटर वाले ७००० पुस्तकालय भारत में स्थापित करने का प्रस्ताव है.
पुस्तकालय विज्ञानं शिक्षा के द्वारा पुस्तकालय से सम्बंधित तकनीकियों एवं सेवाओं के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है .जिससे पुस्तकालय का संगठन और सञ्चालन कुशलता पूर्वक किया जा सके.
पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान में स्नातक,परास्नातक तथा पी एच डी पाठ्यक्रम भारत के लगभग ८० विश्विद्यालयों में संचालित है .सुदूर अध्ययन पद्यति द्वारा भी यह सभी पाठ्य क्रम उपलब्ध हैं.हैं।
पुस्तकालय विज्ञानं के स्नातक डिग्री पाठ्यक्रम के अंतर्गत -पुस्तकालय एवं समाज, पुस्तकालय प्रबंध, पुस्तकालय वर्गीकरण सैधांतिक तथा प्रायोगिक, पुस्तकालय प्रसूचिकरण सैधांतिक तथा प्रायोगिक,सन्दर्भ तथा सूचना सेवाएँ, सूचना सेवाएँ, सूचना प्रोद्योगिकी के मूलाधार विषय सम्मिलित हैं.हैं। पुस्तकालय विज्ञानं के स्नातकोत्तर डिग्री पाठ्यक्रम में सूचना, संचार तथा समाज,सूचना स्रोत प्रणालियाँ तथा सेवाएँ, पुस्तकालय तथा सूचना केन्द्रों का प्रबंधन, सूचना संचार प्रोद्योगिकी के मूल आधार, सूचना संचार प्रोद्योगिकी के अनुप्रयोग, पुस्तकालय सामग्री का अनुरक्षण, अनुसन्धान प्रणाली, शैक्षिक पुस्तकालय प्रणाली, तकनीकी लेखन, सार्वजानिक पुस्तकालय प्रणाली तथा सेवाएँ तथा इन्फोर्मत्रिक्स तथा सैएन्त्रोमेत्रिक्स मुख्य रूप से पढाये जाते हैं.हैं।
ज्ञान के इस युग में सूचनाओं का विस्तार तीव्र गति से हो रहा है .जिसके फलस्वरूप वर्तमान समाज, ज्ञान समाज के रूप में परिवर्तित हो चूका है और पाठकों की सूचना आवश्यकता में व्यापक परिवर्तन आ रहा है जिसका प्रभाव पुस्तकालय विज्ञानं के शिक्षण तथा प्रशिक्षण पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है. सामाजिक एवं शैक्षिक आवश्यकता की पूर्ती हेतु ही पुस्तकालयों की स्थापना प्राचीन कल से की जाती रही है. वस्तुत: ज्ञान का भण्डारण, सरक्षण और उपयोग हेतु उपलब्धता की सम्पूर्ण प्रक्रिया पुस्तकालयों द्वारा ही प्रदान की जाती रही है. विविध प्रकार की अध्ययन सामग्री का चयन, अर्जन, प्रक्रियाकरण और व्यस्थापन करने के पश्चात् ही पाठकों को उनकी आवश्यकतानुसार पठनीय सामग्री सुलभ करने का कार्य इसमें सम्मिलित है.पाठ्य सामग्री में निहित महत्वपूर्ण ज्ञान का सम्प्रेषण भी इन्हीं के द्वारा किया जाता है. व्यक्ति की सभ्यता, संस्कृति, तथा शिक्षा के उन्नयन में इन संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है तथा इनके द्वारा ही सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक विकास संभव है.समाज के बोद्धिक एवं मानसिक विकास का श्रेय इन्हें दिया जाता है.
आधुनिक पुस्तकालय, पुस्तकालय विज्ञानं के नवीन सिधान्तों तथा प्रक्रिया का पूर्ण उपयोग करते हैं.जिसकेहैं।जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है की पुस्तकालय विज्ञानं आज के पुस्तकालयों के परिवर्तित परिवेश में उन सब गतिविधियों में सम्मिलित है जिसमें - सूचना प्रोद्योगिकी पर आधारित माध्यमों से प्रलेख सूचना संग्रहण, सूचना प्रक्रियाकरण, व् लक्ष्य प्रयोक्ता तक सम्प्रेषण, सूचना की खोज एवं मूल्याकन हेतु प्रोद्योगिकी का प्रयोग, पुस्तकालय प्रणाली के अनुरूप आवश्यक उपकरणों का प्रयोग, प्रणाली विश्लेषण एवं अभिकल्पन, डेटाबेस का उपयुक्त सॉफ्टवेर के माध्यम से सृजन, इलेक्ट्रोनिक माध्यमों पर सूचनाओं का भण्डारण, पुस्तकालय नेटवर्क द्वारा संघ प्रसुचियों का अभिगम, इन्टरनेट के द्वारा सूचना अभिगम एवं खोज,बाह्य पुस्तकालयों से पुस्तक प्राप्ति हेतु पुस्तकालय नेटवर्क का उपयोग, मुद्रित के स्थान पर डिजिटल सूचनाओं का आदान प्रदान, इन्टरनेट पर आधारित सूचनाओं का संकलन एवं प्रबंधन, प्राप्त सूचनाओं का मूल्यांकन एवं संग्रह को अद्यतन रखना, इ-मेल, वार्ता फोरम का निरंतर प्रयोग, डिजिटल पुस्तकालय, पुस्तकालय समूह, वेब साईट का सृजन तथा निरंतर अद्य्नता, विषय वास्तु प्रबंधन, पुस्तकालय तथा सूचना सेवाओं का विपणन, सूचना साक्षरता का प्रसार, प्रयोक्ता समूह की सूचना आवश्यकता की पहचान, सूचना के सृजन, संग्रहण, संगठन, पुनर्प्राप्ति तथा प्रसार विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.हैं।
परिवर्तित परिवेश में विभिन्न विश्विद्यालयों द्वारा प्रदान की जा रही पुस्तकालय विज्ञानं की शिक्षा का शोध के आधार पर पुन: आकलन करने की आवश्यकता है जिससे पुस्तकालय एवं सूचना के क्षेत्र में कार्यरत जनशक्ति को सम्पूर्ण रूप से सक्षम बना सकें तथा वे दक्षता के साथ कुशलता पूर्वक आपने कार्यों का निष्पादन कर सकें. पुस्तकालय विज्ञानं को उसी दिशा में सक्रीय होना चाहिए जो की आज के सन्दर्भ में आवश्यक रूप से अपेक्षित है.
 
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== पुस्तक वर्गीकरण ==
पुस्तकों को ठीक से रखने के लिए जिससे वाँछित पुस्तक आसानी से प्राप्त हो जाय, पुस्तकों पर वर्गीकरण नजर डाले जाते हैं। इस समय दशमलव वर्गीकरण पद्धति, द्विबिंदु वर्गीकरण पद्धति, विस्तारशील वर्गीकरण पद्धति, लाइब्रेरी ऑव कांग्रेस वर्गीकरण, पद्धति, विषय वर्गीकरण पद्धति एवं वांङ्‌ मय वर्गीकरण पद्धतियाँ विश्व में प्रचलित हैं। संसार के अनेक पुस्तकालयों में दशमलव वर्गीकरण पद्धति ही प्राय: प्रचलित है। इस पद्धति का आविष्कार अमरीका निवासी मैल्विल डीवी ने सन्‌ 1876 ई. में किया था। दूसरी मुख्य पद्धति भारतीय विद्वान्‌ डा.डॉ॰ एस. आर. रंगनाथन द्वारा 1925 ई. में आविष्कृत द्विबिंदु वर्गीकरण पद्धति है। सर्वप्रथम मद्रास पुस्तकालय संघ ने इसका प्रकाशन 1933 ई. में किया।
 
जिस पद्धति को पुस्तकालय स्वीकार करता है उसके अनुसार ही वर्गसंख्या पुस्तक के प्रमुख भागों पर अंकित कर दी जाती है।
 
== सूचीकरण ==
वर्गीकरण के पश्चात्‌ पुस्तकों का सूचीकरण किया जाता है। कार्डों पर तैयार की जानेवाली सूची मुख्यत: दो प्रकार की होती है; अनुवर्णसूची एवं अनुवर्गसूची। लेखक कार्ड पर क्रमिक संख्या, लेखन नाम, टीकाकार या अनुवादक, प्रकाशक, प्रकाशनस्थान एवं प्रकाशन वर्ष, पृष्ठसंख्या, माला आदि का उल्लेख, टिप्पणी आदि द्वारा दिया जाता है। पुस्तकों के वर्गीकरण के लिए ए. एल. ए. कैटालागिंग नियम नामक पुस्तक का प्रयोग किया जाता है। डा.डॉ॰ रंगनाथ के अनुवर्ग-सूची-कल्प का भी प्रयोग किया जाता है। पुस्तक के लिए जितने आवश्यक कार्ड होते हैं, तैयार करके कैटालाग कैबेनिट में लगा दिए जाते हैं, जिनसे आवश्यक जानकारी प्राप्त करके पाठकगण लाभ उठाते हैं।
 
पुस्तकालयों में पुस्तकों के देने-लेने की अनेक विधियाँ प्रचलित हैं। कही सदस्यों को कार्ड दिए जाते हैं तो कहीं रजिस्टर में ही पुस्तकों का हिसाब रखा जाता है। इस दिशा में अनेक विधियों का आविष्कार हो चुका है।