"स्टालिनवाद": अवतरणों में अंतर

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1952 में तेरह साल के अंतराल के बाद उन्नीसवीं पार्टी कांग्रेस हुई जिसमें स्तालिन ने पार्टी-राज्य प्रणाली में कई तरह के सुधारों की भूमिका बाँधी।  इस कांग्रेस में पार्टी की गतिविधियों पर स्वंय रिपोर्ट पेश न करके स्तालिन ने ज्यार्जी मैलेंकोव से रपट रखवाई थी। कुछ लोगों का ख़याल था कि यह पर्जिंग के नये दौर की तैयारी है। दरअसल, यह परवर्तीर् स्तालिनवाद की तैयारी थी जिसे सोवियत संघ की उत्तर- विश्वयुद्धीन भूमिका की रोशनी में की जाने वाली नयी तैयारियों का आगाज़ करना था। लेकिन मार्च, 1953 में स्तालिन की मृत्यु के बाद पार्टी के भीतर सत्ता-संघर्ष शुरू हो गया जिसमें निकिता ख्रुश्चेव स्तालिन के उत्तराधिकारी के रूप में उभरे। ख्रुश्चेव ने देखा कि स्तालिनवाद के तहत अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण तो हो गया है, पर कृषि की बुरी हालत है और उपभोक्ताओं को बुनियादी चीज़ें भी नसीब नहीं हैं। उन्होंने सोवियत व्यवस्था को स्तालिनवाद के प्रभाव से मुक्त करने का अभियान चलाया ताकि उसे आर्थिक रूप से अधिक कामयाब बनाया जा सके। उन्होंने स्तालिन द्वारा की गयी पर्जिंग को [[मार्क्सवाद-लेनिनवाद]] विरोधी करार दिया। हालाँकि कई प्रेक्षकों की उस समय भी मान्यता थी कि सोवियत प्रणाली ने जो रूप ले लिया है, उसमें किसी तरह का सुधार करना तकरीबन नामुमकिन है।
 
== संदर्भ ==
1. मिलोवान ज़िलास (1957), द न्यू क्लास : ऐन एनालिसिस ऑफ़ कम्युनिस्ट सिस्टम, प्रेजर, न्यूयॉर्क.