"नासदीय सूक्त": अवतरणों में अंतर

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'''नासदीय सूक्त''' [[ऋग्वेद]] के 10 वें मंडल कर 129 वां सूक्त है.है। इसका सम्बन्ध ब्रह्माण्ड विज्ञान और [[ब्रह्मांड]] की उत्पत्ति के साथ है। माना जाता है की यह सूक्त ब्रह्माण्ड के निर्माण के बारे में काफी सटीक तथ्य बताता है.है। इसी कारण दुनिया में काफी प्रसिद्ध हुआ है.है।
 
== संदर्भ ==
नासदीय सूक्त के रचयिता ऋषि '''प्रजापति परमेष्ठी''' हैं। इस सूक्त के देवता '''भाववृत्त''' है.है। यह सूक्त मुख्य रूप से इस तथ्य पर आधारित है कि ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई होगी.<br />
 
''सृष्टि-उत्पत्ति सूक्त''<br />
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'''किमावरीवः कुहकस्य शर्मन्नंभः किमासीद् गहनंगभीरम् ॥१॥'''<br />
'''अन्वय'''- तदानीम् असत् न आसीत् सत् नो आसीत्; रजः न आसीत्; व्योम नोयत् परः अवरीवः, कुह कस्य शर्मन् गहनं गभीरम्।<br />
'''अर्थ'''- उस समय अर्थात् सृष्टि की उत्पत्ति से पहले प्रलय दशा में असत् अर्थात् अभावात्मक तत्त्व नहीं था.था। सत्= भाव तत्त्व भी नहीं था, रजः=स्वर्गलोक मृत्युलोक और पाताल लोक नहीं थे, अन्तरिक्ष नहीं था और उससे परे जो कुछ है वह भी नहीं था, वह आवरण करने वाला तत्त्व कहाँ था और किसके संरक्षण में था। उस समय गहन= कठिनाई से प्रवेश करने योग्य गहरा क्या था, अर्थात् वे सब नहीं थे।<br /><br />
'''न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या अह्न आसीत्प्रकेतः।'''<br />
'''अनीद वातं स्वधया तदेकं तस्मादधान्यन्न पर किं च नास ॥२॥'''<br />
पंक्ति 16:
'''तुच्छ्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिना जायतैकं॥३॥''' <br />
'''अन्वय''' -अग्रे तमसा गूढम् तमः आसीत्,अप्रकेतम् इदम् सर्वम् सलिलम्,आःयत्आभु तुच्छेन अपिहितम आसीत् तत् एकम् तपस महिना अजायत। <br />
'''अर्थ''' –सृष्टिके उत्पन्नहोनेसे पहले अर्थात् प्रलय अवस्था में यह जगत् अन्धकार से आच्छादित था और यह जगत् तमस रूप मूल कारण में विद्यमान था, आज्ञायमान यह सम्पूर्ण जगत् सलिल=जल रूप में था.था। अर्थात् उस समय कार्य और कारण दोंनों मिले हुए थे यह जगत् है वह व्यापक एवं निम्न स्तरीय अभाव रूप अज्ञान से आच्छादित था इसीलिए कारण के साथ कार्य एकरूप होकर यह जगत् ईश्वर के संकल्प और तप की महिमा से उत्पन्न हुआ।<br /><br />
'''कामस्तदग्रे समवर्तताधि मनसो रेतः प्रथमं यदासीत्।'''<br />
'''सतो बन्धुमसति निरविन्दन्हृदि प्रतीष्या कवयो मनीषा ॥४॥'''<br />