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'''हर्षचरित''' [[संस्कृत]] में [[बाणभट्ट]] द्वारा रचित एक ग्रन्थ है। इसमें भारतीय सम्राट [[हर्षवर्धन]] का जीवनचरित वर्णित है। ऐतिहासिक कथानक से सम्बन्धित यह संस्कृत का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है।
 
== परिचय ==
इस समय उपलब्ध हर्षचरित आठ उच्छ्वासों में विभाजित है। जिसमें से पहले ढाई उच्छ्वास [[बाणभट्ट|बाण]] की [[आत्मकथा]] रूप में हैं। तदुपरान्त स्थाणीश्वर (आधुनिक [[थानेश्वर]]) के पुण्यभूति वंश, जिनमें [[हर्ष]] के पिता प्रभाकरवर्धन का जन्म हुआ था, का वर्णन है। बाण ने प्रभाकरवर्धन की पुत्री राज्यश्री और [[कन्नौज|कन्नौजाधिपति]] [[ग्रहवर्मा मौखरि]] के [[विवाह]] का वर्णन किया है। अपने ज्येष्ठ पुत्र राजवर्धन को [[हूण|हूणों]] का हनन करने के लिए भेजकर प्रभाकरवर्धन [[ज्वर]]ग्रस्त हो गए। बाण ने उसके रोग, मृत्यु, दाह-संस्कार एवं साम्रज्ञी यशोमती के आत्मदाह का वर्णन किया है। तभी गौड़ एवं [[मालवा|मालव]] सेनाओं के [[कन्नौज]] पर आक्रमण तथा ग्रहवर्मा की हत्या की सूचना मिलती है यह सुनकर राज्यवर्धन कन्नौज की ओर बढ़े। शत्रुओं ने हथियार डाल दिए। परन्तु चालाकी खेली। राज्यवर्धन को शत्रु शिविर में आमंत्रित किया गया और उनकी निर्मम हत्या कर दी गई। हर्ष ने अपने बहनोई एवं भाई की हत्या का बदला लेने की प्रतिज्ञा की तथा कन्नौज की ओर प्रस्थान किया। हर्ष की बढ़ती हुई सेना के सामने शत्रु भाग निकला। यह सुनकर हर्ष के विस्मय का अन्त न था कि राज्यश्री कैद से छूटकर विंध्याचल की ओर चली गई। बहुत परिश्रमयुक्त खोज के पश्चात् हर्ष ने आत्मदाह करने को तत्पर राज्यश्री को दिवाकर मित्र ऋषि के आश्रम के पास पाया और [[गंगा]] के तट पर अपने शिविर में ले आया। यहाँ ग्रंथ अकस्मात् समाप्त हो जाता है।
 
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अस्तु, बाण ने हर्ष की प्रस्थान करती हुई सेना का, राज्यसभा का, धार्मिक सम्प्रदायों का, ग्रामों का सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है जो कि इतिहास की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है
 
== इन्हें भी देखें==
*[[कादम्बरी]]
*[[वासवदत्ता]]