"अब्दुर रहमान ख़ान": अवतरणों में अंतर

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९ जून १८६३ को तब के अफ़ग़ानिस्तान के अमीर, दोस्त मुहम्मद ख़ान, की [[हेरात]] शहर में मृत्यु हो गयी. मरने से पहले, उन्होंने अपने दो बड़े बेटों - अफ़ज़ल ख़ान और आज़म ख़ान - को न चुनते हुए अपने तीसरे बेटे [[शेर अली ख़ान]] को अमीर बना दिया. अब्दुर रहमान ख़ान इन्हीं सब से बड़े बेटे अफज़ल ख़ान के बेटे थे। दोस्त मुहम्मद ख़ान के देहांत पर पहले तो लगा के सभी शेर अली ख़ान को गद्दी मिल जाने पर राज़ी हो गए हैं। लेकिन कुछ ही देर में अफज़ल ख़ान ने अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी भाग में शेर अली ख़ान के विरुद्ध बग़ावत शुरू कर दी. इन झडपों में देखा गया के अफज़ल ख़ान में युद्ध में पराक्रम दिखाने वाली कोई भी बात नहीं थी, लेकिन उसके बेटे अब्दुर रहमान ख़ान ने लड़ाई में बहुत साहस दिखाया.
 
कुछ देर में दोनों भाई, अफज़ल ख़ान और शेर अली ख़ान, में समझौता हो गया.गया। लेकिन तब तक अमीर शेर अली ख़ान को अब्दुर रहमान ख़ान की जुर्रत का खटका हो चूका था और वह उसे एक ख़तरे के रूप में देखने लगा. शेर अली ख़ान ने अब्दुर रहमान ख़ान को अपने दरबार में तुरंत हाज़िर होने का फ़रमान दिया, लेकिन अब्दुर रहमान ख़ान ने अमीर के इरादे भांप लिए. वह [[आमू दरिया]] को पार कर के काबुल से [[बुख़ारा]] भाग खड़ा हुआ.हुआ। शेर अली ख़ान ने क्रोधित होकर अफ़ज़ल ख़ान को फ़ौरन कारावास में बंद कर दिया, जिस से दक्षिण अफ़ग़ानिस्तान के कुछ हिस्से भड़ककर विद्रोह कर पड़े. जैसे-तैसे शेर अली ख़ान ने अपनी फौजें लगाकर इस विद्रोह पर क़ाबू पाया ही था के अब्दुर रहमान ख़ान आमू दरिया वापिस पार कर के फिर से उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में आ गया.गया। वहाँ उसने अमीर की फ़ौजों में बग़ावत फैला दी और उन्हें अपने साथ ले लिया. कुछ देर तक तो झडपें चलती रहीं लेकिन मार्च १८६६ में अब्दुर रहमान ख़ान और उनके चाचा (आज़म ख़ान) काबुल पहुँच गए और क़ब्ज़ा कर लिया. शेर अली ख़ान ने उनके विरुद्ध [[कन्दहार]] से कूच किया और मई १० को दोनों फ़ौजें शेख़ाबाद के पास भिड़ गयी. इस लड़ाई में शेर अली ख़ान के बहुत से सैनिक भगौड़े हो गए और अब्दुर रहमान ख़ान की जीत हुई. उसने तुरंत अपने पिता अफ़ज़ल ख़ान को [[ग़ज़नी]] में क़ैद से रिहा किया और उन्हें काबुल में अफ़ग़ानिस्तान का अमीर बना दिया. नए अमीर की सेनाएं शेर अली ख़ान की सेनाओं को हराती गयी और १८६७ में उन्होंने कन्दहार पार भी क़ब्ज़ा जमा लिया.
 
१८६७ के अंतिम दिनों में अमीर अफ़ज़ल ख़ान की मृत्यु हो गयी और उनके छोटे भाई आज़म ख़ान नए अमीर बन गए. उन्होंने अब्दुर रहमान ख़ान को फिर से उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में अपना क्षेत्रपाल बना दिया. एक वर्ष के अन्दर-अन्दर ही अमीर के ख़िलाफ़ एक नया विद्रोह शुरू हो गया और शेर अली ख़ान फिर से लड़ने आ गया.गया। ३ जनवरी १८६९ को तीनाहख़ान के क़स्बे के पास हुई लड़ाई में शेर अली ख़ान ने आज़म ख़ान और अब्दुर रहमान ख़ान को हरा दिया. दोनों चाचा-भतीजा [[समरक़न्द]] भाग गए जहाँ उन्होंने [[रूस]] की शरण ली. आज़म ख़ान ने उसी साल, अक्तूबर १८६९, में दम तोड़ दिया.
 
== देश निकाले का जीवन ==