"आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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== उत्तर-छायावाद युग-(१९३६-१९४३) ==
यह काल भारतीय राजनीति में भारी उथल-पुथल का काल रहा है।राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय,कई विचारधाराओं और आन्दोलनों का प्रभाव इस काल की कविता पर पडा .डॉ॰ द्वितीय विश्वयुद्ध के भयावह परिणामों के प्रभाव से भी इस काल की कविता बहुत हद तक प्रभावित है। निष्कर्षत:राष्ट्रवादी, गांधीवादी,विप्लववादी,प्रगतिवादी, यथार्थवादी, हालावादी आदि विविध प्रकार की कवितायें इस काल में लिखी गई. इस काल के प्रमुख कवि हैं--
 
* माखनलाल चतुर्वेदी
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== प्रगतिवादी युग की कविता (१९३६) ==
छायावादी काव्य बुद्धिजीवियों के मध्य ही रहा। जन-जन की वाणी यह नहीं बन सका। सामाजिक एवं राजनैतिक आंदोलनों का सीधा प्रभाव इस युग की कविता पर सामान्यतः नहीं पड़ा। संसार में समाजवादी विचारधारा तेज़ी से फैल रही थी। सर्वहारा वर्ग के शोषण के विरुध्द जनमत तैयार होने लगा। इसकी प्रतिच्छाया हिंदी कविता पर भी पड़ी और हिंदी साहित्य के [[प्रगतिवादी युग]] का जन्म हुआ। १९३० क़े बाद की हिंदी कविता ऐसी प्रगतिशील विचारधारा से प्रभावित है। १९३६ में "प्रगतिशील लेखक संघ" के गठन के साथ हिन्दी साहित्य में मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित प्रगतिवादी आन्दोलन की शुरुआत हुई .इसका सबसे अधिक दूरगामी प्रभाव हिन्दी आलोचना पर पडा. मार्क्सवादी आलोचकों ने हिन्दी साहित्य के समूचे इतिहास को वर्ग-संघर्ष के दॄष्टिकोण से पुनर्मूल्यांकन करने का प्रयास आरंभ कियाकिया। .प्रगतिवादी कवियों मे नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल और त्रिलोचन के साथ नयी कविता के कवि मुक्तिबोध और शमशेर को भी रक्खा जाता है।