"श्वसनीशोथ": अवतरणों में अंतर

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जब श्वसनी की श्लेष्माकला का प्रदाह अधिक समय तक बना रहता है तथा श्वसनी में अन्य दोष उत्पन्न कर देता है तो वह दीर्घकालिक श्वसनीशोथ कहलाता है।
 
ऐसा व्यवसाय, जिनमें धूल, गई तथा धुएँ का अधिक संपर्क होता है, और कुछ जीवाणु इस रोग के कारण होते हैं।
 
इस रोग में श्वसनी की श्लेष्माकला को अत्यधिक क्षति पहुंचती है। कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं, पक्ष्माभिका समाप्त हो जाते हैं। श्वसनी टेढ़ी मेढ़ी हो जाती है तथा स्राव अधिक होता है। अन्य रोग, जैसे वातस्फीति, सूत्रण रोग, दमा आदि, हो सकते हैं।