"सहज वृत्ति (इंस्टिंक्ट)": अवतरणों में अंतर
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'''सहज वृत्ति''', किसी [[व्यवहार प्रक्रिया|व्यवहार]] विशेष की तरफ [[सजीव|[[जीवों]]]] के स्वाभाविक झुकाव को कहते हैं. गतिविधियों के स्थायी पैटर्न भुलाये जाते हैं और वंशानुगत होते हैं. किसी संवेदनशील समय में पड़ी छाप के कारण इसके उत्प्रेरक काफी विविध प्रकार के हो सकते हैं, या आनुवंशिक रूप से निर्धारित भी हो सकते हैं. सहज वृत्ति वाली गतिविधियों के स्थायी पैटर्न को पशुओं के व्यवहार में देखा जा सकता है, जो ऐसी कई गतिविधियों (अक्सर काफी जटिल) में संलग्न रहते हैं जो पूर्व अनुभवों पर आधारित नहीं होती हैं, जैसे कि [[कीट|कीड़ों]] के बीच [[प्रजनन]] तथा भोजन संबंधी गतिविधियां. समुद्र तट पर प्रजनित समुद्री कछुए स्वतः ही समुद्र की ओर चलने लगते हैं
इसी अवधारणा के लिए एक और शब्द है 'सहज व्यवहार'.
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== बाल्डविन प्रभाव ==
बाल्डविन प्रभाव दो चरणों में कार्य करता है. सबसे पहले, फीनोटाईपिक प्लास्टीसिटी एक व्यक्ति को एक आंशिक रूप से सफल उत्परिवर्तन के साथ समन्वय बिठाने में सक्षम बनाता है, जो अन्यथा उस व्यक्ति के लिए बिलकुल ही बेकार होता है. यदि यह उत्परिवर्तन समग्र फिटनेस को बढ़ाता है तो यह सफल होगा और पूरी आबादी में इसका विस्तार होगा. फीनोटाईपिक प्लास्टीसिटी सामान्यतः किसी व्यक्ति के लिए काफी महंगी साबित होती है; शिक्षण के लिए समय और ऊर्जा की आवश्यकता होती है
== परिभाषाएं ==
=== वैज्ञानिक परिभाषा ===
"सहज वृत्ति" शब्द का मनोविज्ञान में एक लंबा और विविध प्रयोग रहा है. 1870 के दशक में, विल्हेम वुन्ड्ट ने प्रथम मनोविज्ञान प्रयोगशाला की स्थापना की. उस समय, मनोविज्ञान मूलतः दर्शन की एक शाखा थी, परन्तु व्यवहार का वैज्ञानिक पद्धति के ढांचे के भीतर अधिकाधिक परीक्षण किया जाने लगा. हालांकि वैज्ञानिक पद्धति के उपयोग के कारण शब्दों को काफी विशुद्ध तरीके से परिभाषित किया जाने लगा था, 19 वीं शताब्दी के अंत तक अधिकांश दोहराए जाने वाले व्यवहार को सहज वृत्ति माना जाने लगा. उस समय साहित्य के एक सर्वेक्षण में एक शोधकर्ता ने 4000 मानव सहज वृत्तियों को सूचीबद्ध किया, अर्थात ऐसा प्रत्येक दोहराया जाने वाला व्यवहार जिसका किसी न किसी ने नामकरण किया हो.{{Citation needed|date=January 2009}} जैसे-जैसे शोध बढ़ती गयी और शब्दों को बेहतर तरीके से परिभाषित किया जाने लगा, मानव व्यवहार के वर्णन रूप में सहज वृत्ति का इस्तेमाल कम मात्रा में किया जाने लगा. 1960 में तुलनात्मक मनोविज्ञान की शुरुआत करने वाले फ्रैंक बीच की अध्यक्षता वाले एक सम्मेलन (जिसमे इस क्षेत्र की अन्य अग्रणी हस्तियां भी शामिल हुई थीं) में, इस शब्द के प्रयोग को काफी सीमित कर दिया गया.{{Citation needed|date=January 2009}} 60 और 70 के दशक के दौरान, पाठ्यपुस्तकों में मानव व्यवहार के संदर्भ में सहज वृत्ति की कुछ चर्चाओं को अभी भी शामिल किया जाता था. वर्ष 2000 तक, परिचयात्मक मनोविज्ञान की 12 सर्वाधिक बिक्री वाली पाठ्यपुस्तकों के एक सर्वेक्षण में सहज वृत्ति के केवल एक संदर्भ की चर्चा की गयी थी
किसी भी दोहराए जाने वाले व्यवहार को "सहज वृत्ति" कहा जा सकता है, इसी शब्द को किसी भी अन्य ऐसे व्यवहार के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है जिसके लिए कोई सशक्त निहित कारण मौजूद हो.{{Citation needed|date=January 2009}} हालांकि, किसी जीव के नियंत्रण से बाहर के व्यवहार तथा दोहराए जाने वाले व्यवहर के बीच भेद करने के लिए हम 1960 के सम्मलेन से निकल कर आने वाली पुस्तक "इंस्टिंक्ट" (1961) का रुख कर सकते हैं. सहज वृत्ति तथा अन्य प्रकार के व्यवहारों के बीच भेद करने के लिए कई मानदंडों को स्थापित किया गया था. सहज वृत्ति माने जाने के लिए किसी व्यवहार के लिए निम्न का होना आवश्यक है - 1) स्वचालित, 2) प्रबल, 3) विकास के किसी बिंदु पर प्रकट होना, 4) वातावरण की किसी घटना द्वारा उत्प्रेरित, 5) प्रजाति के प्रत्येक सदस्य में दिखाई देना, 6) असंशोधनीय, 7) ऐसे व्यवहार को नियंत्रित करना जिसके लिए जीव को किसी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है (हालांकि जीव को अनुभव का फायदा अवश्य हो सकता है और उस हद तक यह व्यवहार संशोधनीय है). इनमें से एक या अधिक मापदंड का अभाव इस बात का संकेत है कि व्यवहार पूरी तरह से सहज वृत्ति नहीं है. सहज वृत्तियां कीड़ों और जानवरों में मौजूद होती हैं, जैसा कि उनके उन व्यवहारों में देखा जा सकता है जिन्हें शिक्षण द्वारा परिवर्तित नहीं किया जा सकता. मनोवैज्ञानिक इस बात को मानते हैं कि मनुष्यों में कई ऐसी जैविक प्रवृत्तियां और व्यवहार मौजूद होते हैं जिन्हें उनकी जैविक संरचना के कारण सीखना आसान होता है, उदाहरण के लिए चलना या बात करना.{{Citation needed|date=January 2009}}
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कई वैज्ञानिकों का मानना है कि बालकों द्वारा सभी चीजों को अपने मुंह में डालना एक सहज वृत्ति है क्योंकि इसी के द्वारा वे अपनी [[प्रतिरक्षा प्रणाली]] को अपने वातावरण तथा परिवेश के बारे में यह बताते हैं कि उसे किस चीज को अपनाना है.<ref>[http://infoniac.com/health-fitness/dirt-is-good-for-our-health.html गंदगी हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा है]</ref>
अन्य समाजशास्त्रियों का तर्क है कि मनुष्य में कोई सहज वृत्ति नहीं होती है; वे उसे इस रूप में परिभाषित करते हैं, "एक प्रजाति विशेष के प्रत्येक सदस्य में मौजूद रहने वाले जटिल व्यवहार, जो सहज होते हैं और जिनपर काबू नहीं पाया जा सकता है." ऐसे समाजशास्त्रियों का तर्क है कि सेक्स और भूख जैसी प्रवृत्तियों को सहज वृत्ति नहीं माना जा सकता क्योंकि उनपर काबू पाया जा सकता है. यह पारिभाषिक तर्क जीव विज्ञान और समाजशास्त्र की कई परिचयात्मक पाठ्यपुस्तकों में मौजूद है,<ref>''समाजशास्त्र: एक परिचय'' - रॉबर्टसन, इयान; वॉर्थ प्रकाशक, 1989</ref> लेकिन अभी भी इसपर गरमा-गरम बहस जारी है.<br />मनोविज्ञानी इब्राहीम मास्लो का तर्क है कि मनुष्यों में अब कोई भी ''सहज वृत्ति'' मौजूद नहीं रह गयी है क्योंकि हमारे पास कुछ परिस्थितियों में उनपर काबू पाने की क्षमता मौजूद है. उनका मानना है कि जिसे हम सहज वृत्ति कहते हैं उसे अक्सर सटीक तरीके से परिभाषित नहीं किया जाता
अपनी पुस्तक 'एन इंस्टिंक्ट फॉर ड्रेगंस<ref>डेविड ई. जोन्स, ''[http://books.google.com/books?id=P1uBUZupE9gC&printsec=frontcover&hl=sv&source=gbs_v2_summary_r&cad=0#v=onepage&q=&f=false एन इंस्टिंक्ट फॉर ड्रैगन]'', न्यूयॉर्क: रूटलेज 2000, ISBN 0-415-92721-8</ref>' में मानव विज्ञानी डेविड ई. जोन्स यह परिकल्पना पेश करते हैं कि वानरों के समान ही मनुष्यों ने भी सांपों, बड़ी बिल्लियों तथा शिकारी पक्षियों के प्रति सहज प्रतिक्रियाओं को अपने पूर्वजों से प्राप्त किया है. लोकगीतों में पाए जाने वाले ड्रैगन में इन तीनों के गुण होते हैं, जो इस बात का उत्तर पेश करता है कि समान गुणों वाले ड्रैगन सभी महाद्वीपों की स्वतंत्र संस्कृतियों की कहानियों में क्यों दिखाई देते हैं. अन्य लेखकों का सुझाव है कि नशीली दवाओं के प्रभाव या स्वप्न में यह सहज वृत्ति ड्रैगन, सांपों, मकड़ियों से संबंधित कल्पनाओं को उत्पन्न कर सकती है; इसी कारणवश ये प्रतीक नशीली दवाओं की संस्कृति में काफी प्रचलित हैं. हालांकि, लोकगीतों में ड्रैगन की मौजूदगी की पारंपरिक मुख्यधारा व्याख्या मानव सहज वृत्ति की बजाय इस धारणा पर निर्भर करती है कि डायनासोर के जीवाश्म अवशेषों ने पूरी दुनिया में समान अटकलों को जन्म दिया था.
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