कोलार (मैसूर) की सोने की खानों में पूर्णत: आधुनिक एवं वैज्ञानिक विधियों से कार्य होता है। यहाँ की चार खानें 'मैसूर', 'नंदीद्रुग', 'उरगाम', और 'चैपियनरीफ' संसार की सर्वाधिक गहरी खानों में से है। इन खानों में से दो तो सतह से लगभग 10,000 फुट की गहराई तक पहुँच चुकी हैं। इन खानों में ताप 148° फारेनहाइड तक चला जाता है अत: शीतोत्पादक यंत्रों की सहायता से ताप 118° फारेनहाइट तक कम करने की व्यवस्था की गई है। सन् 1953 में उरगाम खान बंद कर दी गई है। औसत रूप से कोलार में प्रति टन खनिज में लगभग पौने तीन माशे सोना पाया जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध से पूर्व विपुल मात्रा में सोने का निर्यात किया जाता था। सन् 1939 में 3,14,515 आउंस सोने का उत्पादन हुआ जिसका मूल्य 3,24,34,364 रुपये हुआ किंतु इसके पश्चात् स्वर्ण उत्पादन में अनियमित रूप से कमी होती चली गई है तथा सन् 1947 में उत्पादन घटकर 1,71,795 आउंस रह गया जिसका मूल्य 5,10,69,000 रुपए तक पहुँचा। कोलार स्वर्णक्षेत्र की खानों का राष्ट्रीयकरण हो गया है तथा मैसूर की राज्य सरकार द्वारा संपूर्ण कार्य संचालित होता है। कोलार विश्व का एक अद्वितीय एवं आदर्श खनन नगर है। यहाँ स्वर्ण खानों के कर्मचारियों को लगभग सभी संभव सुविधाएँ प्रदान की गई हैं। खानों में भी आपातकालीन स्थिति का सामना करने के लिए विशेष सुरक्षा दल (Rescue Teams) रहते हैं।
हैदराबाद में हट्टी में भी सोना प्राप्त हुआ है। इसी प्रकार केरल में वायनाड नामक स्थान पर सोना मिला था किंतु ये निक्षेप कार्य योग्य नहीं थे।