"स्तरिकी": अवतरणों में अंतर
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== ध्येय ==
स्तरित शैलविज्ञानी का मुख्य ध्येय है किसी स्थान पर पाए जानेवाले शैलसमूहों का विश्लेषण, नामकरण, वर्गीकरण
पृथ्वी के आँचल में एक विस्तृत प्रदेश निहित है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि उसके प्रत्येक भाग में एक सी दशाएँ नहीं पाई जाएँगी। बीते हुए युग में बहुत से भौमिकीय और वायुमंडलीय परिवर्तन हुए हैं। इन्हीं कारणों से किसी भी प्रदेश में पृथ्वी का संपूर्ण इतिहास संग्रहीत नहीं है। प्रत्येक महाद्वीप के इतिहास में बहुत सी न्यूनताएँ हैं। इसीलिए प्रत्येक महाद्वीप से मिलनेवाले प्रमाणों को एकत्र करके उनके आधार पर पृथ्वी का संपूर्ण इतिहास निर्मित किया जाता है। किंतु यह ऐसा ढंग है जिसके ऊपर पूर्ण विश्वास नहीं किया जा सकता और इसीलिए पृथ्वी के विभिन्न भागों में पाए जानेवाले शैलसमूहों के बीच बिल्कुल सही समतुल्यता स्थापित करना संभव नहीं है। इन्हीं कठिनाइयों को दूर करने के लिए स्तरित शैलविज्ञानी समतुल्यता के बदले समस्थानिक (homotaxial) शब्द प्रयोग में लाते हैं जिसका अर्थ है व्यवस्था की सदृशता।
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