"हत्ती": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
[[तुर्की]] (एशियाई) साम्राज्य के एक बड़े भाग के स्वामी खत्ती थे, जिनका अपना साम्राज्य था। वह साम्राज्य मध्यपूर्व के साम्राज्यों में (ई. पू. 17वीं-12वीं सदियों में) तीसरा स्थान रखता था। उससे बड़े साम्राज्य अपने अपने राज्य में केवल मिस्रियों और असूरीबाबुलियों के ही रहे थे। खत्तियों का लोहा, उनके उत्कर्षकाल में, बाबुलियों और मिस्रियों दोनों में माना। फिलिस्तीन, लघुएशिया, सीरिया और दजला फरात के द्वाबे पर दीर्घकाल तक उनका दबदबा बना रहा। उनका पहला साम्राज्यकाल 17वीं से 15वीं सदी ई. पू. तक रहा, और दूसरा 14वीं से 12वीं सदी ई. पू. तक। मिस्री फ़राऊन रामसेज़ से उनका दीर्घकाल तक युद्ध होता रहा था और अंत में दोनों में संधि हुई। उनके भेजे शिष्टमंडल का स्वागत करते समय रामसेज़ ने तोरस पर्वत के पार हिमपात के परिवेश में बसनेवाले खत्तियों पर बड़ा आश्चर्य प्रकट किया था।
 
जर्मन पुराविद् ह्य गो विंक्लर ने प्राचीन खत्ती राजधानी बोगाज़कोइ (प्राचीन का आधुनिक प्रतिनिधि) से खोदकर बीस हजार ईंटें और पट्टिकाएँ निकाल दीं। इनपर कीलाक्षरों में प्राचीनतर अन्यों का और स्वयं खत्तियों का साहित्य खुदा था। भारत के लिए इन ईंटों का बड़ा महत्व था क्योंकि वहीं मिली 14वीं सदी ई. पू. की एक पट्टिका पर ऋग्वेद के इंद्र, वरुण, मित्र, नासत्यों के नाम पादपाठ में खुदे मिले थे। यह पट्टिका खत्ती मितन्नी दो राष्ट्रों के युद्धांतर का संधिपत्र थी जिसपर पुनीत साक्ष्य के लिए इन देवताओं के नाम दिए गए थे। इस अभिलेख में आर्यों के संक्रमण ज्ञान पर प्रभूत प्रकाश पड़ा है।
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