"हरिवंश महाप्रभु": अवतरणों में अंतर

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=== वृंदावन ===
महाप्रभु 31 वर्ष तक देववन में रहे। अपनी आयु के 32 वें वर्ष में उन्होंने श्री राधा रानी की प्रेरणा से वृंदावन के लिए प्रस्थान किया। मार्ग में उन्हें चिरथावलग्राम में रात्रि विश्राम करना पडा। वहां उन्होंने स्वप्न में प्राप्त श्री राधारानी के आदेशानुसार एक ब्राह्मण की दो पुत्रियों के साथ विधिवत विवाह किया। बाद में उन्होंने अपनी दोनों पत्नियों और कन्यादान में प्राप्त श्री राधावल्लभ लाल के श्री विग्रह को लेकर वृंदावन प्रस्थान किया। श्री हिताचार्य जब संवत् 1562 में वृंदावन आए, उस समय वृंदावन निर्जन वन था। वह सर्वप्रथम यहां के मदन टेर पर रहे और उसी जगह श्री राधावल्लभ लाल को लाड लडाया| बाद में उनके श्री वृंदावन मै प्रथम शिष्य बने दस्यु सम्राट श्री नरवाहन जी ने श्री हित महाप्रभु को धनुश और बाण दिया, और महाप्रभु से कहा जहां पर यह बाण जयेगा वहा तक की भुमि आप की| बाण तीर घाट [आज का चीर घाट] तक गया| श्री हित महाप्रभु जी श्री राधावल्लभ लाल के श्री विग्रह को संवत् 1562 की कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी को लेकर श्री वृंदावन आये उसी दिन श्री विग्रह को विधिवत् प्रतिष्ठित किया।
 
=== भक्ति मार्ग ===