"हिन्दी वर्तनी मानकीकरण": अवतरणों में अंतर

छो सन्दर्भ की स्थिति ठीक की।
छो बॉट: अनावश्यक अल्पविराम (,) हटाया।
पंक्ति 15:
इन्होंने अक्षरी शब्द का प्रयोग किया, जो प्रचलन में नहीं आ सका; क्योंकि उसी समय लेखक ने ''सिलेबिल'' के लिए अक्षर का प्रयोग अपने डॉक्टरेट के ग्रंथ '''हिंदी भाषा''' में ‘अक्षर’ तथा शब्द की सीमा’ में स्थिर कर दिया। उस समय तक बिहार में ‘विवरण’ बंगाल में ‘बनान’ शब्द हिज्जे स्पेलिंग के लिए चल रहे थे। इसके अलावा प्रचलन में कुछ अन्य शब्द थे -अक्षरन्यास, अक्षर विन्यास, वर्णन्यास, वर्ण विन्यास, आदि। शिक्षा के प्रोफेसर कृष्ण गोपाल रस्तोगी ने '''अक्षर विन्यास''' शब्द का प्रयोग बहुत समय तक किया। यही वर्ण विन्यास है। अमरकोश में लिपि के लिए अक्षर विन्यासः तथा लिखितम् का प्रयोग भी पर्याय के रूप में मिलता है।
 
उपर्युक्त सभी शब्दों के होते हुए भी अब इस अर्थ में ‘वर्तनी’ ही मान्य हो गया और भारत सरकार के [[केंद्रीय हिंदी निदेशालय]], [[नई दिल्ली]] ने न केवल इस शब्द को मान्यता दी, वरन् एकरूपता की दृष्टि से कुछ नियम भी स्थिर किए हैं। वर्तनी शब्द भी [[संस्कृत]] भाषा का है, जिसकी व्युत्पत्तियाँ देते हुए आचार्य निशांतकेतु ने ‘वर्तनी’ शब्द के कोशगत अर्थ बताए हैं:- मार्ग, पथ, जीना, जीवन, और दूसरा अर्थ है: पीसना, चूर्ण बनाना, तकुआ<ref>(आप्टे का कोश)</ref>। ज्ञानमंडल, वाराणसी द्वारा प्रकाशित ‘बृहद् हिंदी कोश’ में पहली बार वर्तनी का अर्थ हिज्जे दिया गया। काफी विवेचन के बाद वर्तनी की बड़ी व्यापक परिभाषा स्थिर की गई:
 
<blockquote>
पंक्ति 24:
 
== मानकीकरण संस्थाएं एवं प्रयास ==
मानक हिंदी वर्तनी का कार्यक्षेत्र [[केंदीय हिंदी निदेशालय]] का है। इस दिशा में कई दिग्गजों ने अपना योगदान दिया, जिनमें से आचार्य किशोरीदास वाजपेयी तथा [[आचार्य रामचंद्र वर्मा]] के नाम उल्लेखनीय हैं। [[हिन्दी]] भाषा के संघ और कुछ राज्यों की [[राजभाषा]] स्वीकृत हो जाने के फलस्वरूप देश के भीतर और बाहर हिन्दी सीखने वालों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हो जाने से हिन्दी वर्तनी की मानक पद्धति निर्धारित करना आवश्यक और कालोचित लगा, ताकि हिन्दी शब्दों की वर्तनियों में अधिकाधिक एकरूपता लाई जा सके। तदनुसार, [[शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार]] ने [[१९६१]] में हिन्दी वर्तनी की मानक पद्धति निर्धारित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त की। इस समिति ने [[अप्रैल]] [[१९६२]] में अंतिम रिपोर्ट दी। इस समिति के सदस्यों की सूची संदर्भित [[परिशिष्ट]] में दी गई है।<ref>{{cite book |last= |first= |title=विधि शब्दावली |year=१९८३|publisher=|location=|id= |page= |accessday= ९|accessmonth= मई|accessyear= २००९}}</ref> समिति की चार बैठकें हुईं जिनमें गंभीर विचार-विमर्श के बाद वर्तनी के संबंध में एक नियमावली निर्धारित की गई। समिति ने तदनुसार, १९६२ में अपनी अंतिम सिफारिशें प्रस्तुत कीं जो सरकार द्वारा अनुमोदित की गईं, और अंततः हिन्दी भाषा के मानकीकरण की सरकारी प्रक्रिया का श्रीगणेश हुआ। यह प्रक्रिया तो सतत है, किंतु मुख्य निर्देश तय हो चुके हैं। ये [[केन्द्रीय हिन्दी संस्थान]] से एवं भारत के सभी सरकारी कार्यालयों में प्रसारित किए गए हैं। इनका अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु भी संस्थान कार्यरत है।
 
== संदर्भ ==