"हिन्दू देवी-देवता": अवतरणों में अंतर
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== परिचय ==
वैदिक देवताओं का वर्गीकरण तीन कोटियों में किया गया है - पृथ्वीस्थानीय, अंतरिक्ष स्थानीय और द्युस्थानीय। अग्नि, वायु
वेदोत्तर काल में पौराणिक तांत्रिक साहित्य और धर्म तथा लोक धर्म का वैदिक देववाद पर इतना प्रभाव पड़ा कि वैदिक देवता परवर्ती काल में अपना स्वरूप और गुण छोड़कर लोकमानस मे सर्वथा भिन्न रूप में ही प्रतिष्ठापित हुए। परवर्ती काल में बहुत से वैदिक देवता गौण पद को प्राप्त हुए तथा नए देवस्वरूपों की कल्पनाएँ भी हुई। इस परिस्थिति से भारतीय देववाद का स्वरूप और महत्व अपेक्षाकृत अधिक व्यापक हो गया।
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हिंदू देवपरिवार का उद्भव ब्रह्मा से माना जाता है। त्रिदेव में ब्रह्मा प्रथम हैं। भारतीय धारणा के अनुसार ब्रह्मा ही स्त्रष्टा हैं और वे ही प्रजापति हैं।
वे एक हैं और उनकी इच्छा कि मैं बहुत हो जाऊँ (एकोऽहं बहु स्याम्) ही विश्व की समृद्धि का कारण है। मंडूक उपनिषद् में ब्रह्मा को देवताओं में प्रथम, विश्व का कर्ता और संरक्षक कहा गया है। कर्ता के रूप में वैदिक साहित्य में ब्रम्हा का परिचय विभिन्न नामों से दिया गया है, यथा विश्वकर्मन्, ब्रह्मस्वति, हिरणयगर्भ, प्रजापति, ब्रह्मा और ब्रह्मा। पुराणों में इन नामों के अतिरिक्त धाता, विधाता, पितामह आदि भी प्रचलित हुए। वैदिक साहित्य की अपेक्षा पौराणिक साहित्य में ब्रह्मा का महत्व गौण है। उपासना की दृष्टि से जो महत्ता विष्णु, शिव, यहाँ तक की गणपति और सूर्य को प्राप्त है, वह भी ब्रह्मा को नहीं मिला, किंतु वैदिक देवताओं में प्रजापति के रूप में ब्रह्मा सर्वमान्य हैं
पुराणों तथा शिल्पशास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा चतुर्मुख हैं। इनके चार हाथों में अक्षमाला, श्रुवा, पुस्तक और कमंडलु प्रदर्शित कराने का विधान है। ग्रंथभेद से ब्रह्मा के आयुधभेद भी हैं। युगभेद के अनुसार इन्हें कलि में कमलासन, द्वापर में विरंचि, त्रेता में पितामह और सतयुग में ब्रह्मा के नाम से कहा गया है। इनकी सावित्री और सरस्वती दो शक्तियाँ हैं। सावित्री का स्वरूप विधान ब्रह्मा के अनुरूप ही निश्चित किया गया है। ब्रह्मा के अष्ट प्रतिहारों को सत्य, धर्म, प्रियोद्भव, यज्ञ विजय, यज्ञभद्रक, भव और विभव के नाम से जाना जाता है।
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विष्णु के कुछ विशिष्ट स्वरूप भी हैं। जलशायी विष्णु का स्वरूप गुप्तयुग में भी विशेष मान्यता प्राप्त था। देवगढ़ के मंदिर में जलशायी विष्णु की बड़ी सुंदर प्रतिमा अंकित है। जलशायी बिष्णु को सुप्तदर्शित किया जाता है। वे दाएँ करवट लेटे दिखाए जाते हैं और बाएँ हाथ में पुष्प लिए रहते है। नाभि से एक कमल निकला होता है जिस पर ब्रह्मा आसीन होते हैं। पाँयताने उनकी शक्तियाँ श्री और ‘भूमि’ प्रदर्शित की जाती हैं तथा पार्श्व में मधुकैटभ भी प्रदर्शित किया जाता है।
चतुर्मुख प्रकार की कुछ विष्णुमूर्तियाँ, बैकुंठ, अनंत, त्रैलोक्य मोहन और विश्वमुख के नाम से जानी जाती हैं। वैकुंठ अष्ठभुज, अनंत द्वादशभुज, त्रैलोक्य मोहन,श् षोडशभुज और विश्वमुख विंशति भुज होते हैं। वैकुंठ, त्रैलोक्य मोहन
विष्णु का वाहन गरुड़ है और उनके अष्ट प्रतिहारों के नाम चंड, प्रचंड, जय, विजय, धाता, विधाता, भद्र और समुद्र हैं।
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सरस्वती का पूजन विद्या की अधिष्ठात्री देवी के रूप मेंश् होता है। इनकी प्रतिमा ब्रह्मा के साथ पत्नी रूप में भी बनती है और पृथक् रूप में भी। सरस्वती चतुर्भुजी हैं और उनके आयुध पुस्तक, अक्षमाला, वीणा या कमंडलु हैं। एक हाथ प्राय: वरद मुद्रा में रहता है। कमंडलु का विधान ब्रह्मा की पत्नी के रूप में है किंतु पृथक् प्रतिमा में सरस्वती के हाथ में वीणा ही रहती है और कभी कभी कमल रहता है। इनका वाहन हंस है। महाविद्या सरस्वती के रूप में देवी के आयुध अक्षा, अब्ज, वीणा और पुस्तक हैं। मध्यकालीन ध्यान और मूर्तिविधान में एक सरस्वती के आधार पर दश या द्वादश सरस्वतियों की कल्पना महाविद्या, महावाणी, भारती, सरस्वती, आर्या, ब्राह्मी, महाधेनु, वेदगर्भा, ईश्वरी, महलक्ष्मी, महकाली और महासरस्वती के नाम से भी की गई है।
शिव की पत्नी गौरी मूर्तिशास्त्र में अनेक नाम और आयुधों से जानी जाती हैं। द्वादश गौरी की सूची में उमा, पार्वती, गौरी, ललिता, श्रियोत्तमा, कृष्णा, हेमवती, रंभा, सावित्री, श्रीखंडा, तोतला
देवियों में आदि शक्ति के रूप में कात्यायनी की बड़ी महिमा है। इन्हें चंडी, अंबिका, दुर्गा, महिषासुरमर्दिनी आदि नामों से जाना जाता है। सामान्यतया कात्यायनी देवी दशभुजी हैं अैर इनके दाहिने हाथों में त्रिशूल, खड्ग, चक्र, वाण
'''मातृकाएँ''' भारतीय मूर्तिविधान और उपासना परंपरा में विशेष मान्यता रखती हैं। इनकी संख्या ग्रंथभेद से सात, आठ
== बौद्ध देदी-देवता ==
बौद्धों ने अपने देवपरिवार का विभाजन वैज्ञानिक आधार पर किया है। उनके देववाद का विकास ध्यानी बुद्धों के आधार पर हुआ है। ध्यानी बुद्धों की संख्या पाँच है, जिनके नाम क्रमश: वैरोचन, अक्षोभ, रत्नसंभव, अमिताभ और अमोधसिद्धि हैं। कुछ ग्रंथों में एक छठे ध्यानी बुद्ध वज्रसत्व की भी गणना की गई है। ध्यानी बुद्धों का उद्गम आदिबुद्ध के पाँच स्कंध है। साधनमाला के अनुसार इन ध्यानी बुद्धों का स्वरूप समान है, इनमें परस्पर अंतर इनके विभिन्न वर्णो और मुद्राओं के आधार पर माना जाता है। पूजाविधान में वैरोचन को छोड़ शेष चारों स्तूप के चतुर्दिक् स्थित कर पूजे जाते हैं। वैरोचन की स्थिति मध्य में रहती है। कभी कभी इनकी उपासना पृथक् पृथक् रूप से होती थी।
इन ध्यानी बुद्धों की पाँच सहचरियाँ (बुद्ध शक्तियाँ) भी होती हैं, जिन्हें क्रमश: वज्रधात्वेश्वरी, लोचना, मामकी, पांड्रा और आर्य तारा कहते हैं। छठे ध्यानी बुद्ध की पत्नी वज्रसत्वात्मिका मानी गई हैं ये सभी बुद्धशक्तियाँ अपने अपने ध्यानी बुद्धों के रूप गुण, आयुध वाहनादि को धारण करती हैं। इनकी प्रतिमाएँ कमलासन में बनाने का विधान है और सामान्यतया ये चतुर्भुजी होती हैं
मानुषी बुद्ध -- मानुषी बुद्धशक्ति -- मानुषी बोधिसत्व
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उपर्युक्त मानुषी बुद्धों, शक्तियों और बोधिसत्वों में केवल शाक्यसिंह और उनकीं यशोधरा तथा उनके बोधिसत्व आनंद की ही ऐतिहासिकता सिद्ध है। बौद्धों ने भावी बुद्ध मैत्रेय की भी कल्पना की है। ये तुषित स्वर्ग में बुद्धत्व की प्राप्ति के हेतु प्रतत्नशीन हैं, ऐसी बौद्धों की मान्यता है।
बौद्ध देवपरिवार में मंजुश्री का विशेष महत्व है। इनका ध्यानी बुद्ध से ठीक ठीक संबंद्ध नहीं ज्ञात है। महायानियों की धारणा में ये सर्वश्रेष्ठ बोधिसत्व थे। स्वयंभू पुराण में मंजुश्री की विशेष विवेचना है। इनके 14 नाम और प्रकार साधनामालाओं से ज्ञात हुए है, जो क्रमश: वागीश्वर मंजुवर, मंजुघोष, अरपचन, सिद्धैकवीर, वाक, मंजुकुमार, वज्रांग, वादिराट्, नामसंगति, धर्मधातु, वागीश्वर, स्थिरचक्र, मंजुनाथ और मंजुवज्र हैं। मंजुश्री का विशेष प्रतीक खड्ग और पुस्तक है। बोद्धिसत्वों में अवलोकितेश्वर अथवा पदपाणि अवलोकितेश्वर का विशेष मान है। वर्तमान कल्प (भद कल्प) में बोधों की धारणा के अनुशार अवलोकितेश्वर हीं लोकसंचालन करते हैं। जब से मानुषीबुद्ध (शाक्यसिंह) का निर्वाण हुआ है
इनके अतिरिक्त अनेक अन्य भी ताराओं की पूजा बौद्धोपासना में प्रचलित थी जिनमें कुछ प्रसिद्ध नाम जंभला, महाकाला, वज्रतारा, प्रज्ञापारमिता आदि हैं। कुछ हिंदू देवी देवता भी बौद्धदेवपरिवार में शामिल कर लिए गए थे जिनमें गणेश, सरस्वती आदि उल्लेखनीय हैं। बौद्धों के ्व्राजयानी संप्रदाय में विध्नांतक, वज्रहुंकार, भूतडामर नामसंगीति, अपराजिता, वज्रयोगिनी, ग्रहमातृका, गणपतिहृदया, वज्रविदारिणी आदि देवी देवता भी बड़े लोकप्रिय थे।
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