"पारिभाषिक शब्दावली": अवतरणों में अंतर
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(४) साहित्येतर शब्दों का संकलन.
भारतीयों द्वारा बनाये गये कोशों में जिन दो कोशों का सर्वाधिक प्रचार-प्रसार हुआ, वे हैं - "श्रीधर भाषा कोश' (सन् १८९४), श्रीधर त्रिपाठी, लखनऊ, पृष्ठ सं. ७४४ तथा 'हिन्दी शब्दार्थ पारिजात' (सन् १९१४), द्वारका प्रसाद चतुर्वेदी, इलाहाबाद। पहले कोश में लगभग २५,००० शब्द संख्या है जबकि दूसरे में ब्रजभाषा-अवधी आदि विभाषाओं के शब्दों की पर्याप्त संख्या रहने के कारण शब्द संख्या अधिक है। अनुमान किया जा सकता है कि २०वी शताब्दी के प्रारंभ तक शब्द संकलन ५०,००० तक पहुँच
आधुनिक काल में [[श्यामसुन्दर दास|बाबू श्याम सुन्दर दास]], [[रामचन्द्र शुक्ल]], [[रामचन्द्र वर्मा]] के सत्प्रयासों से [[नागरी प्रचारिणी सभा]], वाराणसी से '[[हिन्दी शब्दसागर]]' (१९२२-२९) प्रकाशित हुआ जिसकी योजना २३-८-१९०७ की सभा के परम हितैषी और उत्साही सदस्य श्रीयुत रेवरेंड ई. ग्रीब्ज़ के उस प्रस्ताव के अनुसार बनी जिसमें प्रार्थना की गई थी कि "हिन्दी के एक बृहत् और सर्वांगपूर्ण कोश का भार सभा अपने ऊपर ले."
सन् १९१० के आरंभ में शब्द संग्रह का कार्य समाप्त
== पारिभाषिक शब्दावली का विकास ==
[[प्राचीन भारत]] में ही दर्शन, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि कुछ विषयों में प्रचुर भारतीय शब्दावली उपलब्ध थी। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ही वैज्ञानिक उपलब्धियों से संबंधित शब्दावली हिन्दी भाषा में आने लगी थी। [[नागरीप्रचारिणी सभा|काशी नागरी प्रचारिणी सभा]], वाराणसी ने वैज्ञानिक शब्दावलियों के रूप में सर्वप्रथम पुस्तकाकार प्रकाशन किये। इस दिशा में [[डॉ॰ सत्यप्रकाश]] ([[विज्ञान (हिन्दी पत्रिका)|विज्ञान परिषद]], इलाहाबाद) तथा [[रघु वीर|डॉ॰ रघुवीर]] के कार्य विशेष उल्लेखनीय हैं।
[[रघु वीर|डॉ॰ रघुवीर]] के कोश कार्य की एक ओर अत्यधिक प्रशंसा हुई, दूसरी ओर अत्यधिक आलोचना. वस्तुत: यह प्रशंसनीय कार्य था, जिसको अत्यधिक श्रम से वैज्ञानिक आधार पर प्रस्तुत किया
:'''उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते। प्रहार-आहार-संहार-विहार-परिहार वत्।।'''
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मुख्य लेख '''[[वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग]]'''
स्वतंत्रता के बाद वैज्ञानिक-तकनीकी शब्दावली के लिए शिक्षा मंत्रालय ने सन् १९५० में बोर्ड की स्थापना की. सन् १९५२ में बोर्ड के तत्त्वावधान में शब्दावली निर्माण का कार्य प्रारंभ
== संक्षिप्त रूपों द्वारा नई शब्दावली ==
आज इस भागदौड़ के युग में हर आदमी की यह आदत बनती जा रही है कि कम से कम समय में कम से कम शब्दों में अपने मन के भावों को अभिव्यक्त करे. इस स्वाभाविक प्रवृत्ति के फलस्वरूप ही संस्थाओं तथा संगठनों के लम्बे-लम्बे नाम संक्षिप्त होते जा रहे हैं। नई प्रकार की यह शब्दावली अंग्रेज़ी में 'एक्रोनिम' से अभिहित की जाती है। प्रत्येक काल में ऐसे शब्द बनते रहे हैं। कालान्तर में जब ये शब्द बहुप्रयुक्त होकर कोश के अन्तर्गत अपना समुचित स्थान बना लेते हैं, तो प्राय: भूल जाते हैं कि इनका निर्माण इस विधि से हुआ होगा, जैसे अंग्रेज़ी 'न्यूज़'. हिन्दी में प्रचलित 'बदी' तथा 'सुदी' शब्द भी इसी प्रक्रिया के फलस्वरूप हैं, 'स' सुदि: [शु.(शुक्लपक्ष) तथा 'ब' बहुल(कृष्णपक्ष)] हिन्दी में अंकटाड, सैम, मीडो, सीटो, इंटक, नाटो, यूनेस्को आदि पर्याप्त शब्द इसी कोटि के हैं। पिछली बार [[चीन]] के आक्रमण के समय नेफ़ा, मिग तथा रडार तीन शब्द काफ़ी प्रचलित हो
== हिन्दी की विभाषा तथा बोलियों का महत्त्व ==
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