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सजीव प्राणियों के सभी प्रकार के आकार, आकृति, रासायनिक संरचना, रोग आदि गुणों (characters) का उत्परिवर्तन हो सकता है। इसी आधार पर उत्परिवर्तनों की कई कोटियाँ बना ली गई हैं, जैसे जीन उत्परिवर्तन, गुणसूत्र उत्परिवर्तन आदि। उत्परिवर्तन को तात्कालिक अथवा आकस्मिक आनुवंशिक परिवर्तन कहा गया है। यह परिवर्तन दोषयुक्त ही हो, यह कोई आवश्यक नहीं है। सभी उत्परिवर्तन दूषित या हानिकारक नहीं होते। इनसे लाभ भी होता है और इस प्राकृतिक दोष का लाभ उठाया भी जाता रहा है। इस पर हम यथास्थान पुन: विचार करेंगे।
 
उत्परिवर्तन की घटनाएँ विरल अथवा यदा-कदा होती हैं। ड्रोसोफिला (drosophila) नामक कदली मक्खी (fruit fly) के अध्ययनों द्वारा ज्ञात हुआ है कि इस प्रकार का उत्परिवर्तन कई लाख सामान्य स्पीशीज़ में से किसी एक में बहुत ही नगण्य रूप में परिलक्षित होता है। आल्टेनवर्ग ने रेस के घोड़ों की आधुनिक तीव्र गति का कारण क्रमिक आरोपित उत्परिवर्तन बतलाया है। यह या ऐसा परिवर्तन सदा लाभप्रद ही हो (आल्टेन वर्ग के मतानुसार), ऐसा नहीं कह सकते। बहुत से उदाहरणों में, इस उत्परिवर्तन के कारण घोड़ों की गति में न्यूनता भी आ सकती है। अत: निष्कर्ष यही निकलता है कि उत्परिवर्तन "मनमाना परिवर्तन" (random change) होता है। यहाँ डार्विन का "प्राकृतिक वरण का सिद्धांत" (theory of natural selection) अथवा "योग्यतम का जीवन" (survival of the fittest) लागू होता है, जिसके अनुसार इस आकस्मिक परिवर्तन को सह सकनेवाले जीव जीवित रह पाते हैं, अन्यथा निर्बलों की मृत्यु हो जाती है। मैंडेल ने मटर की फलियों पर जो प्रयोग किए थे, उनके परिणामों का कारण यही उत्परिवर्तन बतलाया जाता है।
 
उत्परिवर्तन कब होगा, यह कोई निश्चित रूप से नहीं कह सकता। कोशिकाविभाजन के उपरांत वर्धन (development) की किसी भी अवस्था या चरण (stage) में उत्परिवर्तन की घटना घट सकती है। यदि उत्परिवर्तन किसी एक ही बीजाणु (gamete) या युग्मक में होता है तो भावी संतति में से केवल एक में यह परिलक्षित होगा। उत्परिवर्तित पीढ़ी में से आधी संतति में उत्परिवर्तन के लक्षण वर्तमान होंगे और शेष आधा इनसे अप्रभावित रहेगा। उत्परिवर्तन के लक्षणों से युक्त संततियों की भावी पीढ़ियों में भी वे ही लक्षण दिखलाई देते रहेंगे। काय कोशिकाओं (somatic or body cells) में उत्परिवर्तन हो जाने पर उसे पहचान पाना दुष्कर कार्य होता है। कई बार तो ऐसा भी होता है कि वह सर्वथा अदृश्य हो जाता है और उसपर किसी भी दृष्टि भी नहीं जा पाती। किंतु जनन कोशिकाओं (germ or reproduction cells) में हुए उत्परिवर्तन जनांकिकीय (genetically) दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं।