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'''उस्मानी साम्राज्य''' (१२९९ - १९२३) (या '''ऑटोमन साम्राज्य''' या '''तुर्क साम्राज्य''', [[उर्दू]] में ''सल्तनत-ए-उस्मानिया'', [[उस्मानी तुर्क भाषा|उस्मानी तुर्क]]: دَوْلَتِ عَلِيّهٔ عُثمَانِیّه ) एक तुर्क राज्य था। यह सन् १२९९ से १९२३ तक अस्तित्व में रहा। २९ अक्तुबर सन् १९२३ में [[तुर्की|तुर्की गणराज्य]] की स्थापना से इसे समाप्त माना जाता है।
 
उस्मानी साम्राज्य सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में अपने चरम शक्ति पर था। यह तीन महाद्वीपों में पसरा हुआ था जिसमें दक्षिण-पूर्वी [[यूरोप]], [[मध्य-पूर्व]] [[एशिया]] और उत्तरी [[अफ्रीका]] शामिल थे। अपनी शक्ति के चरमोत्कर्ष के समय यह [[एशिया]], [[यूरोप]] तथा उत्तरी [[अफ्रीका]] के हिस्सों में फैला हुआ था। यह साम्राज्य पश्चिमी तथा पूर्वी सभ्यताओं के लिए विचारों के आदान प्रदान के लिए एक सेतु की तरह था।
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[[Image:Vienna Battle 1683.jpg|thumb|१६८३ में वियना की दूसरी घेराबंदी।]]
अपने दीर्घ शासनकाल में मुराद चतुर्थ (१६१२-१६४०) ने केंद्रीय सत्ता को फिर स्थापित किया और १६३५ में येरेवन और १६३९ में बगदाद को सफाविदों से जीत लिया। महिलायों की सल्तनत (१६४८-१६५६) एक ऐसा समय था जब युवा सुल्तानों की माओं ने अपने बेटों की और से हुकूमत की। इस समय की सबसे प्रसिद्ध महिला कोसिम सुल्तान और उसकी बहू तुर्हन हतिस थी। उनकी दुश्मनी का अंत १६५१ में कोसिम की हत्या से हुआ। कोप्रुलू के दौर के दौरान साम्राज्य का प्रभावी नियंत्रण कोप्रुलू परिवार से आने वाले प्रधान वजीरों के हाथ में रहा। कोप्रुलू परिवार के वजीरों ने नयी सैनिक सफलताएँ हासिल की जिसमे शामिल है ट्रान्सिल्व्हेनिया पर दुबारा अधिकार स्थापित करना, १६६९ में क्रीट पर विजय और पोलिश दक्षिणी यूक्रेन में विस्तार (जिसके साथ १६७६ में खोत्यं और कमियानेट्स-पोदिल्स्क्यी के गढ़ और पोदोलिया का क्षेत्र उस्मानी नियंत्रण में आ गया )।
 
पुनः अधिकार स्थापित करने के इस दौर का बड़ा विनाशकारी अंत हुआ जब महान तुर्की युद्ध (१६८३-१६९९) के दौरान मई १६८३ में प्रधान वजीर कारा मुस्तफा पाशा ने एक विशाल सेना लेकर वियना की घेराबंदी की। आखिरी हमले में देरी की वजह से वियना की लड़ाई में हैब्सबर्ग, जर्मनी और पोलैंड की सयुंक्त सेनायों ने उस्मानी सेना को रोंद डाला। इस सयुंक्त सेना की अगुवाई पोलैंड का राजा जॉन तृतीय कर रहा था। पवित्र संघ के गठबंधन ने वियना में मिली जीत का फायदा उठाया और इसका समापन कर्लोवित्ज़ की संधि (२६ जनवरी १६९९) के साथ हुआ जिसने महान तुर्की युद्ध का अंत कर दिया। उस्मानियों ने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रो का नियंत्रण खो दिया (कुछ का हमेशा के लिए )। मुस्तफा द्वितीय (१६९५-१७०३) ने १६९५-१६९६ में हंगरी में हैब्सबर्ग के विरुद्ध जवाबी हमला किया पर ११ सितम्बर १६९७ को वो जेंता की लड़ाई में विनाशकारी रूप से हार गया।
 
=== ठहराव और दोषनिवृत्ति (1683-1827) ===