"माया": अवतरणों में अंतर
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== संदर्भ ==
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माया –माया का शाब्दिक अर्थ भ्रम
अज्ञान (माया) को न सत् कह सकते हैं न असत क्योंकि अज्ञान भाव रूप है उसका अस्तित्व
यह अज्ञान (माया) ब्रह्म की शक्ति
महान उपाधि होने के कारण इसे महत् कहा गया
उपनिषद् से माया के उद्धरण -
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त्रिचक्रमय-सत्व,रज,तम से युक्त. सोलह सर-
अहँकार,बुद्धि,मन,आकाश,वायु,अग्नि,जल. पृथ्वी,प्रत्येक के दो स्वरूप सूक्ष्म और स्थूल. बीस सहायक-पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पांच कर्मेन्द्रियाँ,पांच प्राण,पांच विषय. छह अष्टक (आठ प्रकार की प्रकृति, आठ धातुएं, आठ ऐश्वर्य, आठ भाव. आठ गुण, आठ अशरीरी योनियाँ, तीन मार्ग-ज्ञानमय (शुक्ल)अज्ञानमय (कृष्ण)और परकायाप्रवेश. दो निमित्त-सकाम कर्मऔर स्वाभविक कर्म.कुलयोग –पचास. इन्हें पचास अर कहा
जिन्हें अविद्या व्याप्त है
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अंध अंध दे ज्ञान.५-२-कठ उपनिषद्.
यह अद्भुत तीन गुणों से युक्त अविद्या परमात्मा की शक्ति है जिससे यह सारा जगत उत्पन्न हुआ
माया (अज्ञान) की दो शक्तियां
१.आवरण
२. विक्षेप
आवरण का अर्थ है पर्दा, जो दृष्टि में अवरोधक बन जाय. जिसके कारण वास्तविकता नहीं दिखायी दे. जैसे बादल का एक टुकड़ा पृथ्वी से कई गुने बड़े सूर्य को ढक लेता है उसी प्रकार माया की आवरण शक्ति सीमित होते हुए भी परम आत्मा के ज्ञान हेतु अवरोधक बन जाती
विक्षेप शक्ति - माया की यह शक्ति भ्रम पैदा करती
सन्दर्भ - सरल वेदांत -बसंत प्रभात जोशी
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