"खारवेल": अवतरणों में अंतर
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== परिचय ==
[[मौर्य साम्राज्य]] की अवनति के पश्चात् कलिंग में [[चेदि राजवंश]] का उदय हुआ। अनुमान किया जाता है कि चेदि वंश [[बुंदेलखंड]] के चेदि वंश की ही कोई उपशाखा थी जो कलिंग में स्थापित हो गई थी। खारवेल इस वंश का तीसरा नरेश था और इसे 'कलिंग चक्रवर्ती' कहा जाता है। उदयगिरि में हाथीगुफा के ऊपर एक अभिलेख है जिसमें इसकी प्रशस्ति अंकित है। उस प्रशस्ति के अनुसार यह [[जैन धर्म]] का अनुयायी था।
[[चित्र:Hathigumpha inscription.JPG|right|thumb|300px|हाथीगुफा के अभिलेख]]
उसे १० वर्ष की आयु में युवराज पद प्राप्त हुआ था तथा २४ वर्ष की अवस्था में वह महाराज पद पर आसीन हुआ। राज्यभार ग्रहण करने के दूसरे ही वर्ष [[सातकर्णि]] की उपेक्षा कर अपनी सेना दक्षिण विजय के लिए भेजी और [[मूषिक राज्य]] को जीत लिया। चौथे वर्ष पश्चिम दिशा की ओर उसकी सेना गई और भोजको ने उसकी अधीनता स्वीकर की, सातवें वर्ष उसने [[राजसूय यज्ञ]] किया। उसने [[मगध]] पर भी चढ़ाई की। उस समय मगध नरेश वृहस्पति मित्र था। इस अभियान में वह उस जिनमूर्ति को उठाकर वापस ले गया जिसे नंदराज अपने कलिंग विजय के समय ले आया था।
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