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== संगीत के प्रति रुचि ==
माता के संगीत शिक्षक को अपनी प्रतिभा से प्रभावित कर बालक लालमणि की संगीत यात्रा आरम्भ हुई. पण्डित शँकर भट्ट और मुँशी भृगुनाथ लाल से ध्रुपद और धमार की परम्परागत शिक्षा हुई. रामपुर सेनी घराना के उस्ताद वज़ीर खाँ के शागिर्द उस्ताद मेँहदी हुसैन खान से उन्होने खयाल गायन सीखा। ध्रुवपद, भजन और तबला की शिक्षा स्वामी प्रमोदानन्द जी से प्राप्त हुई. उस्ताद अमीर अली खाँ के देख रेख मे अनेक संगीत वाद्योँ जैसे [[सितार]], सुरबहार, [[सरोद]], [[संतूर]], [[जलतरंग]], [[वायलिन]], [[तबला]] आदि में महारत हासिल की।
जब वह केवल बारह वर्ष के थे, उन्हें कलकत्ता की शहंशाही रिकार्डिंग कम्पनी में सहायक संगीत निर्देशक के पद पर नियुक्ति मिली। अगले दो वर्षों में उन्होने कई फिल्मोँ में संगीत दिया। उस्ताद अमीर अली खाँ का सान्निध्य और संगीत निर्देशन—इन्हीँ दोनोँ के सँयोग से ऑर्केस्ट्रेशन के प्रति उनमें रुझान पैदा हुआ.हुआ।
 
== संगीतः जीवन सहचर ==
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वैदिक संगीत पर शोध करते हुए उन्होंने सामिक स्वर व्यवस्था का रहस्य सुलझाया। सामवेद के इन प्राप्त स्वरों को संरक्षित करने के लिए उन्होंने राग सामेश्वरी का निर्माण किया। भरत मुनि द्वारा विधान की गयी बाईस श्रुतिओं को मानव इतिहास में पहली बार डॉ मिश्र द्वारा निर्मित वाद्य यंत्र श्रुति-वीणा पर एक साथ सुनना सम्भव हुआ। इसके निर्माण तथा उपयोग की विधि [http://www.omenad.net/articles/shrutiveena.htm “श्रुति वीणा”] में दी गयी है जिसे नरेन्द्र प्रिंटिंग वर्क, वाराणासी द्वारा 11 फरवरी 1964 को प्रकाशित किया गया।
सामेश्वरी के अतिरिक्त उन्होंने कई रागोँ की रचना की जैसे श्याम बिहाग, जोग तोड़ी, मधुकली, मधु-भैरव, बालेश्वरी आदि। डॉ मिश्र ने पूर्ण रूप से तंत्री वाद्यों के लिए निहित वादन शैली की रचना की जिसे मिश्रबानी के नाम से जाना जाता है। इस हेतु उन्होंने सैकड़ों रागों में हज़ारों बन्दिशों की रचना की जिनका सँकलन उनकी पुस्तकों के अतिरिक्त उनके शिष्यों की पुस्तकों, संगीत पत्रिकाओं में मिलता है।
सन 1996 में युनेस्को द्वारा ''[http://portal.unesco.org/culture/en/ev.php-URL_ID=20829&URL_DO=DO_TOPIC&URL_SECTION=201.html म्यूज़िक ऑव लालमणि मिश्र]'' के शीर्षक से उनके विचित्र वीणा वादन का कॉम्पैक्ट डिस्क जारी किया गया.गया।
== स्रोत और लिंक ==