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लगभग 13 वीं सदी के बाद से [[भारतीय उपमहाद्वीप]] के उत्तरी भाग में “संत मत” एक ढीले ढंग से जुड़ा [[गुरु]]ओं का एक सहयोगी समूह था जिसे बहुत प्रसिद्धि मिली. [[धर्म]] [[ब्रह्म]] विज्ञान के तौर पर उनकी शिक्षाओं की विशेषता यह है कि वे अंतर्मुखी और प्रेम [[भक्ति]] के एक दैवीय सिद्धांत से जुड़े हैं और सामाजिक रूप से वे एक समतावादी गुणों वाले सिद्धांत से जुड़े हैं जो हिंदु धर्म की [[जाति]] [[प्रथा]] के विरुद्ध है और [[हिंदू]] - [[मुस्लिम]] के अंतर के भी विरुद्ध
संत परंपरा को मुख्यत: दो समूहों में बांटा जा सकता है: [[पंजाब क्षेत्र|पंजाब]], ([[राजस्थान]] और [[उत्तर प्रदेश]]) क्षेत्र के संतों का उत्तरी समूह जिसने अपनी अभिव्यक्ति मुख्यत: बोलचाल वाली हिंदी में की और दक्षिणी समूह जिसकी भाषा पुरातन [[मराठी]] है और जिसका प्रतिनिधित्व [[नामदेव]] और [[महाराष्ट्र]] के अन्य संत करते
== व्युत्पत्ति ==
'संत मत' का अर्थ है - 'संतों का मार्ग', 'सत्य का मार्ग', 'सही और आशावादी पथ' या 'संतों की राय'. 'संत' शब्द संस्कृत की धातु 'सद्' से बना है और कई प्रकार से प्रयोग हआ है (सत्य, वास्तविक, ईमानदार, सही). इसका मूल अर्थ है 'सत्य जानने वाला' या 'जिसने अंतिम सत्य अनुभव कर लिया हो.' 'संत' शब्द से अर्थ आम तौर पर एक अच्छे व्यक्ति से लिया जाता है लेकिन इसका विशेष अर्थ मध्यकालीन भारत के संत कवियों से ही लिया जाता
== संत ==
संत मत आंदोलन एकरूप नहीं था और इसमें संतों का अपना सामाजिक-धार्मिक व्यवहार शामिल था जो कि हजार वर्ष पहले [[भगवद्गीता]] में वर्णित [[भक्ति]] पर आधारित
इस आंदोलन की सीमाएँ संभवत: संप्रदायवादी नहीं थीं और इसमें जाति और पूजा-पद्धति की [[ब्राह्मण]] अवधारणाएँ भी नहीं
उत्तर भारतीय संतों की पहली पीढ़ी जिसमें [[कबीर]] और [[रविदास]] शामिल हैं 15वीं शताब्दी के मध्य में बनारस में पैदा हुए. उनसे पूर्व 13वीं और 14वीं शताब्दी में दो मुख्य व्यक्तित्व [[नामदेव]] और [[रामानंद]] हुए. संत मत परंपरा के अनुसार रामानंद वैष्णव साधु थे जिन्होंने कबीर, रविदास और अन्य संतों को नाम दान दिया. रामानंदी भिक्षुओं की परंपरा, उसके बाद के अन्य संत और बाद के सिखों द्वारा रामानंद की कथा को अलग-अलग तरह से बताता
इन संतों ने एक संकृति का विकास किया जो समाज में हाशिए पर पड़े मनुष्यों के निकट थी जिसमें महिलाएँ, [[दलित]], [[अछूत]] और अतिशू्द्र शामिल
संतों की पंरपरा गैर-संप्रदायवादी रही यद्यपि माना जाता है कि कई संत कवियों ने अपने संप्रदाय स्थापित किए. इनमें से कइयों के नाम के साथ संत जुड़ा है लेकिन उनके शिष्यों ने आगे चल कर [[कबीर पंथ]], दादू पंथ, दरिया पंथ, अद्वैत मत, आध्यात्मिकता का विज्ञान(www.sos.org) और राधास्वामी जैसे पंथ चलाए.<ref name=वाउडेविले>वाउडेविले, चार्लट. ''संत मत: संतिज़्म इज़ द यूनिवर्सल पाथ टू सैंक्टिटी'' in ''संत मत:स्टडीज़ इन डिवोशनल ट्रेडीशन ऑफ इंडिया'' in शोमर के. और मैक्ल्योड डब्ल्यू.एच. (Eds.) ISBN 0-9612208-0-5 </ref>
धार्मिक हिंदुओं के एक अल्प समुदाय ने ही औपचारिक रूप से संत मत का अनुगमन किया
संत मत परंपरा में जिंदा गुरु को महत्व दिया जाता है जिसे [[सत्गुरु]] या 'पूर्ण गुरु' जैसे सम्मान सूचक शब्दों के साथ संबोधित किया जाता
== अन्य संबंधित आंदोलन ==
माना जाता है कि मध्यकालीन सूफी कवियों यथा जलाल अल-दीन मोहम्मद रूमी और [[सिंधी]] कवियों और संत मत कवियों के बीच बहुत समानता
उत्तर भारत का राधास्वामी आंदोलन अपने आप को संतमत पंरपरा और धार्मिक प्रयास का मुख्य निधान मानता है और स्वयं को संत परंपरा के जीवित अवतार की भांति प्रस्तुत करता
गुरु महाराज जी (प्रेम रावत) और डिवाइन लाइट मिशन (एलेन विटाल) को जे. गोर्डन मेल्टन, लूसी डू पर्टीज़ और विशाल मंगलवाड़ी संत मत परंपरा का मानते हैं परंतु रॉन ग्रीव्ज़ इस लक्षण-वर्णन के विरोधी हैं .<ref> जे. गोर्डन मेल्टन., एनसाइक्लोपीडिया ऑफ अमेरीकन रिलीजियंस </ref><ref>लूसी डू पर्टीज़. "हाओ पीपल रिकॉगनाइज़ करिश्मा: ''राधास्वामी'' और डिवाइन लाइट मिशन" के मामले में ''दर्शन'' in ''सोशिऑलाजिकल एनालाइसिस: अ जर्नल इन द सोशियोलोजी ऑफ रिलीजियन '' Vol. 47 No. 2 by एसोसिएशन फॉर द सोशियोलॉजी ऑफ रिलीजियन. शिकागो, समर 1986, ISSN 0038-0210, pp. 111-124.</ref><ref>{{Citation|last=मंगलवाडी|first=विशाल|author-link=विशाल मंगलवाडी|title=वर्ल्ड आफ गुरुज़|publisher=विकास पब्लिशिंग हाऊस प्रा.लि.|location=नई दिल्ली|year=1977|page=218|isbn=0-7069-0523-7}}</ref><ref>रोन ग्रीव्ज़. "फ्राम डिवाइन लाइट मिशन टू एलन विटाल एंड बियोंड:एन एक्सप्लोरेशन ऑफ चेंज एंड एडेप्टेशन" in ''नोवा रिलीजियो:द जरनल ऑफ आल्टरनेटिव एंड इमेर्जेंट रिलीजियंस'' वाल्यूम. 7 No. 3. मार्च 2004, पृ. 45–62. मूल रूप से अल्प मत धर्म, सामाजिक परिवर्तन और आत्मा की स्वतंत्रता पर (यूनीवर्सिटी ऑफ ऊटाह एट साल्ट लेक सिटी) में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रस्तुत किया
वर्तमान मे सन्तमत परम्परा अपने शुद्द स्वरुप मे सन्तमत अनुयायी आश्रम वारानसी मे प्रवाहित है|<ref name= सन्तमत अनुयायी आश्रम > A BRIEF INTRODUCTION [http://www.gurusantmat.org/index.php?option=com_content&view=article&id=102&Itemid=91&lang=hi At "सन्तमत अनुयायी आश्रम"] </ref>
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