"कार्डिनल रिचलू": अवतरणों में अंतर

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अरमान्ड डी रिचलू का जन्म एक सामन्तवर्गीय परिवार में हुआ था। इसने धार्मिक शिक्षा ग्रहण की थी तथा इक्कीस वर्ष की अवस्था में इसकी नियुक्ति [[बिशप]] पद पर हुई। स्टेट जनरल ने इससे प्रभावित होकर मेरी डी मैडिसी के दरबार में इसे बुलाया था तथा इसे कार्डिनल के पद पर नियुक्त किया था। इस व्यक्ति में अद्भुत गुण था जिसके सहारे यह दिन पर दिन उन्नति करता गया।
 
पहले वह राजमाता मैडिसी का मुख्य सलाहकार बना, तत्पश्चात यह लुई तेरहवें का मुख्य सलाहकार एवं पथ-प्रदर्शक बन गया तथा अपने आने वाले 18 वर्ष तक इसने वास्तविक रूप से फ्रांस पर शासन किया। 1624 में रिचलू ने लुई अठारहवें से वादा किया था - ”मैं वादा करता हूं कि आपकी खुशी के लिए मैं अपनी पूरी क्षमता एवं शक्ति ह्यूगनोट्स को तबाह करने में, बड़े सामन्तों का सम्मान समाप्त करने में, जनता में कर्तव्य-परायणता जाग्रत करने में लगा दूंगा।“ अपने वायदे को पूरा करने के लिए रिचलू ने असीम भक्ति से राजा एवं फ्रांस की सेवा की। बाद में राजमाता मैडिसी ने रिचलू का विरोध आरम्भ किया एवं रिचलू ने राजमाता को राजसत्ता से हटाकर लगभग बनवास दिला दिया था। जहाँ तक वास्तविकता है लुई तेरहवां कभी भी रिचलू को दिल से नहीं चाहता था, किन्तु रिचलू का देश प्रेम एवं राजभक्ति दो ऐसे गुण थे जिनके समक्ष राजा भी उसक उसके पद से अलग नहीं कर पाया था। वास्तव में उसने फ्रांस का चहुंमुखी विकास किया था। लुई तेरहवां विलासप्रिय व्यक्ति था एवं वह शासन के प्रति अधिक श्रद्धा भाव से नहीं झुक पाया था। फ्रांस को इस समय जितना भी गौरव प्राप्त था उस सबका श्रेय इसी राजनीतिज्ञ को जाता है। प्रशासन के हर क्षेत्र में इसी व्यक्ति का एकाधिकार था एवं राज्य की समस्त नीतियों का निर्धारण इसी व्यक्ति द्वारा किया जाता था। उसकी क्षमता एवं कर्तव्यपरायणता से प्रभावित होकर लुई ने समस्त राजकीय सत्ता इसी व्यक्ति को सौंप दी थी। इसका अर्थ यह नहीं है कि राजा कमजोर था, यरि राजा कमजोर होता तो वह समस्त दरबार एवं राजपरिवार के विरोध में कार्डिनल का समर्थन नहीं कर पाता। न तो रिचलू ही प्रसिद्ध था और न ही राजा उसे पसन्द करता था फिर भी उसकी योग्यता के बल पर राजा उसकी समस्त नीतियों का अपंख बन्द करके समर्थन करता था। अपने समस्त काल में रिचलू ने दो बातों पर अत्यधिक ध्यान दिया। प्रथम, समस्त देश पर राजा की सत्ता को पूर्णतसया निरंकुश बनाया जाये। दूसरा, वैदेशिक क्षेत्र में फ्रांस का मान सम्मान एवं वैभव उच्चतम किया जाये। रिचलू का विचार था कि वैदेशिक क्षेत्र में देश को उच्चतता प्रदान करने के लिए जनता के हितों का बलिदान किया जा सकता है। फ्रांसीसी राजनय को अपने उच्चतम शिखर पर ले जाने वाले व्यक्तियों में से एक प्रमुख व्यक्ति कार्डिनल रिचलू था। समय और काल से प्रभावित वह अपने समय का सबसे बड़ा यथार्थवादी राजनयिज्ञ था। वह पहला राजनीतिज्ञ था, जिसने राष्ट्रों के मध्य स्थाई वार्ताओं और सम्बन्धों के लिए राजनय का विधिवत् उपयोग किया। उसने अपने जीवनकाल में राजनय सम्बन्धी अनेक सुधार किये जिनका प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। यही वह व्यक्ति था जिसने विश्व को [[शक्ति सन्तुलन]] (Balance of Power) का सिद्धान्त दिया, जिसकी सहायता से न केवल यूरोप में शान्ति बनी रही वरन् फ्रांस को यूरोपीय महाद्वीप में सर्वोच्च स्थान भी मिला।
 
रिचलू ने अपनी पुस्तक ‘पोलिटीकल टेस्टामेंट’ तथा लेख ‘मेमोरस’ में स्थायी मूल्य के राजनयिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। रिचलू की निम्नलिखित उल्लेखनीय देन है :-
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*(5) रिचलू का विचार था कि एक सही राजनय में निश्चितता रहनी चाहिये। यदि किसी सन्धिवार्ता के बाद समझौता न हो सके तो चिन्ता की बात नहीं है। किन्तु यदि समझौता अस्पष्ट तथा अनिश्चित भाषा में हुआ तो चितनीय हो जायेगा। इससे समझौता भंग करने तथा उसे गलत समझने के अवसर बढ़ जाते हैं। निश्चिन्तता के प्रभाव में सन्धि के पक्षों के बीच आदान-प्रदान के सम्बन्ध स्थापित नहीं हो सकते तथा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन केवल मनोरंजन और प्रचार के साधन मात्र रह जायेंगे।
 
*(6) रिचलू का कहना था कि विदेश नीति का निर्देशन तथा राजदूत का नियंत्रण एक ही मंत्रालय में केन्द्रित रहना चाहिये। अन्यथा समझौता वार्तायें प्रभावहीन साबित होगी। यदि उत्तरदायित्व को बिखेर दिया गया तो राजदूत एवं उससे सन्धिवार्ता करने वाला दूसरा पक्ष भी भ्रम में पड़ जायेगा। वह आदेश की एकता“ (Unity of Comkonal) में विश्वास करता था।
 
रिचलू ने राजनय में दयालु भाषणों की आवश्यकता को पहचानां उनके अनुसार जुबार से किए गए घावों की तुलना में तलवार के किए गए घाव अधिक आसानी से भर जाते हैं (Wounds inflicted by the swords are more easily healed than those inflicted by the tongue) रिचलू ने राज्य तथा राजनय के बारे में जो सिद्धान्त दिए वे आदर्श एक संक्षिप्त रूप में निम्नलिखित हैं :-
 
* राज्य के मामलों में गुप्तता प्रथम अनिवार्य तत्व है। (Secrecy is the first essential in affairs of state.)
 
* राज्य के विरुद्ध अपराधों का निर्णय करते समय यह आवश्यक है कि दयाभाव को निकाल दें। (In judging crimes against the state, it is essential to banish pity.)