"भारत भूषण": अवतरणों में अंतर

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बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की गोल्डन जुबली कामयाबी ने न सिर्फ विजय भट्ट के प्रकाश स्टूडियो को ही डूबने से बचाया, बल्कि भारत भूषण और फिल्म की नायिका मीना कुमारी को स्टार के रूप में स्थापित कर दिया। आज भी इस फिल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। ओ दुनिया के रखवाले.., मन तड़पत हरि दर्शन को आज.., तू गंगा की मौज में जमुना का धारा.., बचपन की मुहब्बत को.., इंसान बनो कर लो भलाई का कोई काम.., झूले में पवन के आई बहार.. और दूर कोई गाए.. धुन ये सुनाए जैसे फिल्म के इन मधुर गीतों की तासीर आज भी बरकरार है। इस फिल्म से जुडे़ कई रोचक पहलू हैं। निर्माता विजय भट्ट फिल्म के लिए दिलीप कुमार और नर्गिस के नाम पर विचार कर रहे थे, लेकिन संगीतकार नौशाद ने उन्हें अपेक्षाकृत नए अभिनेता-अभिनेत्री को फिल्म में लेने पर जोर दिया। इसी फिल्म के लिए नौशाद ने तानसेन और बैजू के बीच प्रतियोगिता का गाना शास्त्रीय गायन के धुरंधर उस्ताद आमिर खान और पंडि़त डी.वी. पलुस्कर से गवाया। फिल्म की एक और दिलचस्प बात यह थी कि इसके संगीतकार, गीतकार, शकील बदायूंनी और गायक मोहम्मद रफी तीनों ही मुसलमान थे और उन्होंने मिलकर भक्ति गीत मन तपड़त हरिदर्शन को आज..जैसी उत्कृष्ट रचना का सृजन किया था। बैजू बावरा की सफलता से उत्साहित यही टीम एक बार फिर श्री चैतन्य महाप्रभु फिल्म के लिए जुड़ी और इसमें सशक्त अभिनय के लिए भारत भूषण को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। कलाकारों, साहित्यकारों, संगीतकारों, भक्तों और ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को अपने सहज स्वाभाविक अभिनय के रंगों से परदे पर जीवंत करने का भारत भूषण का यह सिलसिला आगे भी जारी रहा। ठनमें प्रमुख हैं भक्त कबीर (1942), श्री चैतन्य महाप्रभु (1954), मिर्जा गालिब (1954), रानी रूपमती (1957), सोहनी महीवाल (1958), सम्राट्चंद्रगुप्त (1958), कवि कालिदास (1959), संगीत सम्राट तानसेन (1962), नवाब सिराजुद्दौला (1967) आदि।
 
भारत भूषण के फिल्मी करियर में निर्माता-निर्देशक सोहराब मोदी की फिल्म मिर्जा गालिब का अहम स्थान है। इस फिल्म में भारत भूषण ने शायर मिर्जा गालिब के किरदार को इतने सहज और असरदार ढंग से निभाया कि यह गुमां होने लगता है कि गालिब ही परदे पर उतर आए हों। बेहतरीन गीत-संगीत, संवाद और अभिनय से सजी यह फिल्म बेहद कामयाब रही और इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ संगीत के राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। इस फिल्म के लिए गजलों के बादशाह तलत महमूद की मखमली और गायिका, अभिनेत्री सुरैया की मिठास भरी आवाजों में गाई गई गजलें और गीत बेहद मकबूल हुए .., आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक.., फिर मुझे दीदए तर याद आया.आया।., दिले नादां तुझे हुआ क्या है।., मेरे बांके बलम कोतवाल.., कहते हैं कि गालिब का है अंदाज-ए-बयां कुछ और भारत भूषण ने लगभग 143 फिल्मों में अपने अभिनय की विविधरंगी छटा बिखेरी और अशोक कुमार, दिलीप कुमार, राजकपूर तथा देवानंद जैसे कलाकारों की मौजूदगी में अपना एक अलग मुकाम बनाया। बाद में उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रखा, लेकिन उनकी कोई भी फिल्म बॉक्स आफिस पर सफल नहीं रही। उन्होंने 1964 में अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म दूज का चांद का निर्माण किया, लेकिन इस फिल्म के भी बॉक्स आफिस पर बुरी तरह पिट जाने के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण से तौबा कर ली। वर्ष 1967 में प्रदर्शित फिल्म तकदीर नायक के रूप में भारत भूषण की अंतिम फिल्म थी। इसके बाद वह माहौल और फिल्मों के विषय की दिशा बदल जाने पर चरित्र अभिनेता के रूप में काम करने लगे, लेकिन नौबत यहां तक आ गई कि जो निर्माता-निर्देशक पहले उनको लेकर फिल्म बनाने के लिए लालायित रहते थे। उन्होंने भी उनसे मुंह मोड़ लिया। इस स्थिति में उन्होंने अपना गुजारा चलाने के लिए फिल्मों में छोटी-छोटी मामूली भूमिकाएं करनी शुरू कर दीं। बाद में हालात ऐसे हो गए कि भारत भूषण को फिल्मों में काम मिलना लगभग बंद हो गया। तब मजबूरी में उन्होंने छोटे परदे की तरफ रुख किया और दिशा तथा बेचारे गुप्ताजी जैसे धारावाहिकों में अभिनय किया। हालात की मार और वक्त के सितम से बुरी तरह टूट चुके हिंदी फिल्मों के स्वर्णिम युग के इस अभिनेता ने आखिरकार 27 जनवरी 1992 को 72 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया<ref>http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_8197.html</ref>।
 
== भारत भूषण मार्ग का लोकार्पण ==