"महात्मा रामचन्द्र वीर": अवतरणों में अंतर

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== जीवन संघर्ष और कठोर तपश्चर्या ==
महात्मा रामचन्द्र वीर ने ज्ञान की खोज में घर का त्याग तब किया, जब वे न महात्मा थे न वीर. १४ वर्ष का बालक रामचन्द्र आत्मा की शांति को ढूंढता हुआ अमर हुतात्मा [[स्वामी श्रद्धानंद ]] के पास जा पहुंचा.पहुंचा। वहां उसे ठांव मिलता, उसके पूर्व ही ममतामय पिता उसे मना कर वापस ले आये, किन्तु तभी हत्यारे अब्दुल रशीद की गोलियों से बींधे गए स्वामी श्रद्धानंद के उत्सर्ग के समाचार ने रामचन्द्र के रोम-रोम में स्वधर्म के आहत स्वाभिमान की ज्वालाएं सुलगा दी और रामचन्द्र फिर घर से निकल पड़ा, मानो अमर हुतात्मा स्वामी गोपालदास की अतृप्त बलिदानी आत्मा उनके अंत:करण में आ विराजी थी। १८ वर्ष की अल्पायु में भारत भूमि स्वतंत्रता, अखंडता और गोहत्या के पाप मूलोच्छेद के उद्देश्य से महात्मा वीर जी ने अन्न और लवण का सर्वथा त्याग कर दिया. महात्मा वीर का भोजन अस्वाद व्रत का अद्वितीय उदाहरण है। अपने जीवन के अखंड फलाहार व्रत के बीच देश, जाति और धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने १०० से अधिक अनशन किये उनमे सबसे छोटा ३ दिन और सबसे बड़ा १६६ दिन का अनशन भी सम्मिलित है।[[चित्र:Mahatma Ramchandra Veer.jpg|thumb|रामचंद्र वीर ]]
 
१३ वर्ष की अल्पायु में ही इनके पिता ने वीर जी का विवाह कर दिया था, किन्तु अपनी शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक और स्वभावगत अनमेलता के कारण यह विवाह, विवाह नहीं बन पाया, वर की आयु से दो वर्ष बड़ी और नितांत विपरीत मन-मस्तिष्क स्वभाव और आचरण वाली पत्नी के साथ दांपत्य प्रारंभ होने के पूर्व ही टूट गया और तुरंत किशोर रामचन्द्र की जीवनधारा, हिन्दू संगठन, स्वतंत्रता संग्राम, अहिंसा, गोरक्षा और मानवता के कल्याण की कठोर कर्मभूमि पर बह चली और पुन: विवाह की कल्पना बहुत पीछे रह गयी.गयी। भूरामल जी अपने पुत्र की कीर्ति से प्रसन्न तो थे परन्तु वंश-परम्परा के विछिन्न होने का संताप उन्हें सालता रहता था। अपने पिताश्री और अनुयायियों घेरे जाने पर वीर जी ने ३२ वर्ष की आयु में पुन विवाह किया। जब विवाह की बात चली तो वीर जी छपरा जेल में थे। विवाह हुआ तो पिता भूरामल जी भी जेल में थे और स्वयं वीर जी पर [[जयपुर]] राज्य की पुलिस का गिरफ़्तारी वारंट था। विवाह शिष्यों के द्वारा जन्मभूमि [[विराट नगर]] से सैंकड़ो मील दूर संपन्न हुआ। पत्नी अल्पकालीन सामीप्य के पश्चात् पिता के घर लौटी एवं वहीँ उन्होंने अमर हुतात्मा गोपालदास जी के १२ वे वंशधर तथा परम तेजस्वी संत, महात्मा रामचन्द्र वीर के एकमात्र आत्मज [[आचार्य धर्मेन्द्र]] को जन्म दिया.
 
सामाजिक क्रांति के पुरोधा स्वामी रामचन्द्र वीर द्वारा स्थापित पावनधाम स्थित वज्रांग मंदिर आज भी पूरे [[राजस्थान]] और [[विराट नगर]] कस्बे की शोभा बढ़ा रहा है। वीर जी ने अपना सारा जीवन [[पावन धाम]] में रह कर पूरा किया। विराटनगर वह स्थान है जहाँ [[महाभारत]]काल में [[पांडवों ]] ने अपना अज्ञातवास पूरा किया था वे [[हनुमान]] जी के परम भक्त थे पर उनके [[हनुमान]] पूंछ वाले नहीं, वरन [[वानर]] वंश के वेदों के विद्वान, बलशाली, चतुर, परम रामभक्त महापुरुष थे।
 
उन्होंने जगह-जगह जा कर मंदिर और देवालयों में दी जाने वाली अमानवीय पशुबलि को बंद कराया. बल्कि अपने अनशनों और जन-जागरण के माध्यम से लोगों को जाग्रत किया। इस महान गोभक्त के के जनजागरण द्वारा भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों में गोहत्या प्रतिबंधित करने के कानून बनाये गए.गए। सन १९६६ - '६७ के विराट गोरक्षा आन्दोलन के दौरान वीर महाराज ने गोरक्षा कानून बनाये जाने की मांग को लेकर १६६ दिन का अनशन करके संसार भर का ध्यान आकर्षित करने मैं सफलता प्राप्त की थी।
 
हिन्दुओं के अधिकारों के अधिकारों की रक्षा के लिए यह [[अखिल भारतीय हिन्दू महासभा]] से जुड़े और [[वीर सावरकर]] के साथ हमेशा [[हिन्दू]] हितों के लिए संघर्षशील रहे. जब [[कांग्रेस]] जैसे दल ने आज़ादी से पहले मुसलमानों के लिए आरक्षित वोटिंग व्यवस्था की, तो हिन्दू महासभा ने इसका डट कर विरोध किया। मुस्लिम तुष्टिकरण और वोट बैंक की नीति को पहले से ही भांपते हुए वीर जी ने मुस्लिमों को वोटिंग के अधिकार से वंचित रखने की सलाह दी थी। हिन्दू समाज के मान बिन्दुओ की रक्षा और हिन्दू संगठन के लिए उनका सतत संघर्ष हिन्दू जागरण के इतिहास मैं एक प्रचंड प्रकाश स्तम्भ के रूप में संसार भर के हिन्दुओं को प्रेरणा देता रहेगा.
 
== स्वाधीनता संग्राम में जेल ==
युवावस्था में महाराज जी पंडित रामचन्द्र शर्मा, वीर जी के नाम से पूरे देश में विख्यात थे। इन्होंने [[कोलकाता]] और [[लाहौर]] के कांग्रेस अधिवेशनों में भाग लेकर स्वाधीनता के संग्राम में सक्रिय रहने का संकल्प लिया.लिया। सन 1932 में इन्होंने [[अजमेर]] के चीफ़ कमिश्नर की उपस्थिति में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध ओजस्वी भाषण देकर अपनी निर्भीकता का परिचय दिया. परिणामस्वरुप इन्हें ६ माह के लिए जेल भेज दिया गया। रतलाम और महू में इनके ओजपूर्ण भाषणों के कारण ब्रिटिश प्रशासन कांप उठा था।
 
== गोभक्ति की प्रेरणा ==
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तुम्हें प्रणाम !'''
 
महात्मा वीर जी ने सन १९३२ से ही '''गोहत्या के विरुद्ध जनजागरण''' छेड़ दिया था। इन्होंने अनेक राज्यों में गोहत्या बंदी से सम्बन्धी कानून बनाये जाने को लेकर अनेक अनशन किये. सन १९६६ में '''सर्वदलीय गोरक्षा अभियान समिति''' ने दिल्ली में व्यापक जन-आन्दोलन चलाया.चलाया। संसद के सामने लाखों गोभक्तो की भीड़ पर तत्कालीन कोंग्रेस सरकार ने गोलियां चलवा कर प्रदर्शनकारियों का खून बहाया.
 
== गोरक्षा अभियान में विश्वविख्यात अनशन ==
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== हिन्दू हितों के लिए "आदर्श हिन्दू संघ" की स्थापना ==
पशुबली और गोहत्या की बंदी के लिए महात्मा जी ने "पशुबलि निरोध समिति" नामक संगठन का निर्माण किया किन्तु शीघ्र ही उन्होंने अनुभव किया कि हिन्दू समाज का अन्धविश्वास केवल पशुबलि तक ही सीमिति नहीं है। हिन्दू समाज के सम्पूर्ण कायाकल्प की आवश्यकता है और उन्होंने "पशुबलि निरोध समिति" को "अ.भा. आदर्श हिन्दू संघ" में संगठित किया। इस संगठन को विश्व कवि [[रवीन्द्रनाथ ठाकुर]], विज्ञानाचार्य सर प्रफुल्ल चन्द्र राय, पं॰ रामानंद चटटोपाध्याय और महामना [[पंडित मदनमोहन मालवीय]] और [[डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार]] जैसे महापुरुषों का आशीर्वाद प्राप्त था। पुरे देश में [[आदर्श हिन्दू संघ]] को संगठित किया गया। जिलेवार शाखाएं खोली गयी.गयी। आदर्श हिन्दू संघ निश्चय ही हिन्दू जाति के लिए संजीवनी शक्ति का काम कर सकता था किन्तु देश की परिस्थितियां गुरुदेव के प्रयत्नों को दूसरी दिशा में ले गईं.
 
स्वराज्य के पूर्व भी वे पशुबलि और सामाजिक कुरूतियों के उन्मूलन के साथ-साथ हिन्दू हितों की रक्षा और गोहत्या निषेध के लिए अपनी शक्ति लगाते रहे थे। उनके अनशन और सत्याग्रहों से गोवंश और हिन्दू हितों की दिशा में उल्लेखनीय सफलता भी प्राप्त हुई, किन्तु स्वराज्य और देश विभाजन के पश्चात् उनकी सारी शक्ति गोहत्या निषेध और हिन्दू हितों के संघर्ष की और उन्मुख हो गयी.गयी। परिणामस्वरूप आदर्श हिन्दू संघ के संगठन को जो ध्यान और समय मिलना चाहिए था वो नहीं मिला.
 
उनके एकमात्र उत्तराधिकारी के रूप में [[आचार्य धर्मेन्द्र]] भी उनके हर आन्दोलन में साथ रहे और आदर्श हिन्दू संघ का रचनात्मक कायाकल्प भी दोनों संतो के मन-मस्तिष्क में समाया रहा. इसलिए जब १९७८ ई० में आचार्य धर्मेन्द्र ने गुरुदेव का आसन ग्रहण किया तो अपने पीठाभिषेक के साथ ही उन्होंने गुरुदेव के हिन्दू समाज के पुनुरुथान और परिष्कार के पवित्र संकल्प की पूर्ति के लिए आदर्श हिन्दू संघ को "धर्म समाज" के नाम में प्रवर्तित कर दिया. पीठाभिषेक के समारोह में [[विराटनगर]] में देश के कोने - कोने से आये साधु संतों और सद्गृहस्थ अनुयायियों के बीच "धर्म समाज" की प्रथम बार ध्वज पताका फहरायी गयी और आचार्य श्री धर्मेन्द्र ने धर्मसमाज का घोषणा पत्र जारी किया। [[विराटनगर]] के प्रथम सम्मलेन के पश्चात् मध्यप्रदेश के [[नागदा]] और [[उज्जयिनी]] में धर्म समाज के द्वितीय और तृतीय सम्मेलन हुए. तत्पश्चात विराटनगर में चतुर्थ सम्मेलन भी आयोजित किया गया। सभी सम्मेलनों में सारे देश से प्रतिनिधि उत्साहपूर्वक सम्मिलित हुए. परन्तु कुछ लोगों ने धर्म समाज नाम पर अपना अधिकार जताया और इस नाम से पहले से एक संगठन के अस्तित्व का दावा प्रस्तुत किया। उस समय आचार्य श्री ने अपना पूरा समय विश्व हिन्दू परिषद् के "श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन" को समर्पित कर रखा था। परिणामस्वरूप धर्म समाज आन्दोलन की प्रगति पूरी तरह अवरुद्ध हो गयी.गयी। अपनी आयु के ६५ वर्ष पूर्ण होने पर [[पुणे]] में १० जनवरी को सहयाद्री पर्वत की उपत्यका में श्रीसमर्थ रामदास महाराज की पवित्र पादुकाओ का पूजन करके आचार्य धर्मेन्द्र महाराज ने "पावन-परिवार" के शुभारम्भ का संकल्प किया और विधिवत इस संगठन की स्थापना की. पवन पुत्र परमपवन श्रीवज्रांगदेव [[हनुमान]] भगवान की करुणा, सेवा, संकल्प और शील का अनुसरण करने वाले भक्तों का संगठन ही अब "पावन-परिवार" है।
 
== सतत संघर्ष ==