"मुंडा विद्रोह": अवतरणों में अंतर

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== विद्रोह की पृष्‍ठभूमि ==
[[बिरसा मुंडा]] ने [[मुंडा]] आदिवासियों के बीच अंग्रेजी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लोगों को जागरूक करना शुरू किया। जब सरकार द्वारा उन्‍हें रोका गया और गिरफ्तार कर लिया तो उसने धार्मिक उपदेशों के बहाने आदिवासियों में राजनीतिक चेतना फैलाना शुरू किया। वह स्‍वयं को भगवान कहने लग गया। उसने [[मुंडा]] समुदाया में धर्म व समाज सुधार के कार्यक्रम शुरू किये और तमाम कुरीतियों से मुक्ति कर प्रण लिया.लिया।
 
== विद्रोह और उसके बाद ==
1898 में डोम्‍बरी पहाडियों पर मुं‍डाओं की विशाल सभा हुई, जिसमें आंदोलन की पृष्‍ठभूमि तैयार हुई. आदिवासियों के बीच राजनीतिक चेतना फैलाने का काम चलता रहा. अंत में 24 दिसंबर, 1899 को बिरसापंथियों ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड दिया. 5 जनवरी 1900 तक पूरे मंडा अंचल में विद्रोह की चिंगारियां फैल गई.गई। ब्रिटिश फौज ने आंदोलन का दमन शुरू कर दिया. 9 [[जनवरी]] [[1900]] का दिन [[मुंडा]] इतिहास में अमर हो गया जब डोम्बार पहा‍डी पर अंग्रेजों से लडते हुए सैंकडों मुंडाओं ने शहादत दी. आंदोलन लगभग समाप्त हो गया। गिरफ्तार किये गए मुंडाओं पर मुकदमे चलाए गए जिसमें दो को फांसी, 40 को आजीवन कारावास, 6 को चौदह वर्ष की सजा, 3 को चार से छह बरस की जेल और 15 को तीन बरस की जेल हुई.
 
== बिरसा की गिरफ्तारी और अंत ==
[[बिरसा मुंडा]] काफी समय तक तो पुलिस की पकड में नहीं आया लेकिन एक स्थानीय गद्दार की वजह से 3 मार्च 1900 को गिरफ्तार हो गया। लगातार जंगलों में भूखे-प्यासे भटकने की वजह से वह कमजोर हो चुका था। जेल में उसे हैजा हो गया और 9 जून 1900 को [[रांची]] जेल में उसकी मृत्यु. हो गई.गई। लेकिन जैसा कि बिरसा कहता था, आदमी को मारा जा सकता है, उसके विचारों को नहीं, बिरसा के विचार मुंडाओं और पूरी आदिवासी कौम को संघर्ष की राह दिखाते रहे. आज भी आदिवासियों के लिए बिरसा का सबसे बडा स्था्न है।
 
== यह भी देखें ==