"राजा मान सिंह": अवतरणों में अंतर

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== मानसिंह और रक्तरंजित हल्दी घाटी ==
 
उस विशाल मुगल सेना का कड़ा मुकाबला राणा प्रताप ने अपने मुट्ठी भर (सिर्फ बीस-बाईस हजार) सैनिकों के साथ किया। हल्दी घाटी की पीली भूमि रक्तरंजित हो उठी। सन् 1576 ई. के 21 जून को गोगून्दा के पास [[हल्दी घाटी]] में प्रताप और मुग़ल सेना के बीच एक दिन के इस भयंकर संग्राम में सत्रह हज़ार सैनिक मारे गए.गए। यहीं राणा प्रताप और मानसिंह का आमना-सामना होने पर दोनों के बीच विकट युद्ध हुआ (जैसा इस पृष्ठ में अंकित भारतीय पुरातत्व विभाग के शिलालेख से प्रकट है)- [[चेतक]] की पीठ पर सवार प्रताप ने अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के मस्तक पर काले-नीले रंग के, अरबी नस्ल के अश्व [[चेतक]] के पाँव जमा दिए और अपने भाले से सीधा राजा मानसिंह पर एक प्रलयंकारी वार किया, पर तत्काल अपने हाथी के मज़बूत हौदे में चिपक कर नीचे बैठ जाने से इस युद्ध में उनकी जान बच गयी- हौदा प्रताप के दुर्घर्ष वार से बुरी तरह मुड़ गया। बाद में जब गंभीर घायल होने पर राणा प्रताप जब हल्दीघाटी की युद्धभूमि से दूर चले गए, तब राजा मानसिंह ने उनके महलों में पहुँच कर प्रताप के प्रसिद्ध हाथियों में से एक हाथी रामप्रसाद को दूसरी लूट के सामान के साथ आगरा-दरबार भेजा। ''परन्तु मानसिंह ने चित्तौडगढ के नगर को लूटने की आज्ञा नहीं दी थी, यह जान कर बादशाह अकबर इन पर काफी कुपित हुआ और कुछ वक़्त के लिए दरबार में इनके आने पर प्रतिबन्ध तक लगा दिया.''<ref>3. '''राजस्थान का इतिहास''' : कर्नल [[जेम्स टॉड]], साहित्यागार प्रकाशन, जयपुर</ref>
 
'''जेम्स टॉड''' के शब्दों में- "जिन दिनों में अकबर भयानक रूप से बीमार हो कर अपने मरने की आशंका कर रहा था, मानसिंह ने अपने भांजे खुसरो को मुग़ल सिंहासन पर बिठाने के लिए षड्यंत्रों का जाल बिछा दिया था।..उसकी यह चेष्टा दरबार में सब को ज्ञात हो गयी और वह बंगाल का शासक बना कर भेज दिया गया। उसके चले जाने के बाद खुसरो को कैद करके कारागार में रखा गया। मानसिंह चतुर और दूरदर्शी था। वह छिपे तौर पर अपने भांजे का समर्थन करता रहा. मानसिंह के अधिकार में बीस हज़ार राजपूतों की सेना थी। इसलिए बादशाह प्रकट रूप में उसके साथ शत्रुता नहीं की. कुछ इतिहासकारों ने लिखा है- "अकबर ने दस करोड़ रुपये दे कर मानसिंह को अपने अनुकूल बना लिया था।"<ref>4.'''राजस्थान का इतिहास''' : कर्नल [[जेम्स टॉड]], साहित्यागार प्रकाशन, जयपुर</ref>
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== भारमल, भगवान दास / भगवंत दास, जोधा बाई, सलीम और आमेर के राजपूतों का मुग़लों से विवाह ==
कर्नल [[जेम्स टॉड]] के इतिहास में लिखा है- "''अकबर ने राजपूतों को अपना शुभचिंतक बनाने के लिए 'तलवार' का नहीं 'तरकीब' (राजनीति) का आसरा लिया.लिया। सम्मान दे कर कोई भी किसी के ह्रदय पर अधिकार कर सकता है। मालूम होता है-अकबर ने भगवान दास के साथ इसी नैतिक बल का प्रयोग किया था और उस से राजा भगवान दास इतना प्रभावित हुआ था कि उसने शहजादा सलीम के साथ, जो जहाँगीर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, अपनी लड़की का विवाह कर दिया. उस लड़की से जहाँगीर के लड़के खुसरो का जन्म हुआ।..''"
मुस्लिम इतिहासकार भी कहते हैं, ''हिजरी सन ९९३ (सन १५८६ ईस्वी) में भगवान दास की लड़की जोधा बाई का विवाह सलीम के साथ हुआ था।''