"केशवदास": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Content deleted Content added
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट: अंगराग परिवर्तन |
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट: छोटे कोष्ठक () की लेख में स्थिति ठीक की। |
||
पंक्ति 77:
:केशवमति भूतनया लोचनं चंचरीकायते।।
केशव की भाषा में बुंदेलखंडी भाषा का भी काफ़ी मिश्रण मिलता है। खारक (छोहारा), थोरिला (खूंटी), दुगई (दालान), गौरमदाइन (इंद्रधनुष) आदि जैसे बुंदेली शब्दों का प्रयोग बराबर उनके काव्य में हुआ। अवधि भाषा के शब्दों का भी प्रयोग मिलता है। जैसे - इहां, उहां, दिखाउ, रिझाउ आदि।
केशव ने कहीं-कहीं तो शब्दों को गढ लिया है। जैसे - चाप से चापकीय। अप्रचलित शब्दों के प्रयोग में भी उन्होंने पूरी तरह स्वच्छंदता से काम लिया। जैसे - आलोक (कलंक), लांच (रिश्वत), नारी (समूह) आदि। जल के अर्थ में विष शब्द का प्रयोग केशव की भाषा में ही मिलता है -
:विषमय यह गोदावरी, अमृतन को फल देति।
|