"कोणार्क": अवतरणों में अंतर

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कहा जाता है कि काला पहाड़ नामक प्रसिद्ध आक्रमणकारी मुसलमान ने इस मंदिर को ध्वस्त किया किंतु कुछ अन्य लोग इसके ध्वंस का कारण भूकंप मानते हैं।
 
इस स्थान के एक पवित्र तीर्थ होने का उल्लेख [[कपिलसंहिता]], [[ब्रह्मपुराण]], [[भविष्यपुराण]], [[सांबपुराण]], [[वराहपुराण]] आदि में मिलता है। उनमें इस प्रकार एक कथा दी हुई है। कृष्ण के जांबवती से जन्मे पुत्र सांब अत्यन्त सुंदर थे। कृष्ण की स्त्रियाँ जहाँ स्नान किया करती थीं, वहाँ से नारद जी निकले। उन्होंने देखा कि वहाँ स्त्रियाँ सांब के साथ प्रेमचेष्टा कर रही है। यह देखकर नारद श्रीकृष्ण को वहाँ लिवा लाए। कृष्ण ने जब यह देखा तब उन्होंन उसे कोढ़ी हो जाने का शाप दे दिया। जब सांब ने अपने को इस संबंध में निर्दोष बताया तब कृष्ण ने उन्हें मैत्रये बन (अर्थात् जहाँ कोणार्क है ) जाकर सूर्य की आराधना करने को कहा। सांब की आराधना से प्रसन्न होकर सूर्य ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिया। दूसरे दिन जब वे चंद्रभागा नदी में स्नान करने गए तो उन्हें नदी में कमल पत्र पर सूर्य की एक मूर्ति दिखाई पड़ी। उस मूर्ति को लाकर सांब ने यथाविधि स्थापना की और उसकी पूजा के लिये अठारह शाकद्वीपी ब्राह्मणों को बुलाकर वहाँ बसाया। पुराणों में इस सूर्य मूर्ति का उल्लेख कोणार्क अथवा कोणादित्य के नाम से किया गया है।
 
कहते है कि रथ सप्तमी को सांब ने चंद्रभागा नदी में स्नानकर उक्त मूर्ति प्राप्त की थी। आज भी उस तिथि को वहाँ लोग स्नान और सूर्य की पूजा करने आते हैं।