"शेखावाटी": अवतरणों में अंतर
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वीर भूमि शेखावाटी प्रदेश की स्थापना [[महाराव शेखा जी]] एवं उनके वंशजों के बल,विक्रम,शोर्य और राज्याधिकार प्राप्त करने की अद्वितीय प्रतिभा का प्रतिफल है। यहाँ के दानी-मानी लक्ष्मी पुत्रों,सरस्वती के अमर साधकों तथा शक्ति के त्यागी-बलिदानी सिंह सपूतों की अनोखी गौरवमयी गाथाओं ने इसकी अलग पहचान बनाई और स्थाई रूप देने में अपनी त्याग व तपस्या की भावना को गतिशील बनाये रखा। यहाँ के प्रबल पराक्रमी,सबल साहसी,आन-बान और मर्यादा के सजग प्रहरी शूरवीरों के रक्त-बीज से शेखावाटी के रूप में यह वट वृक्ष अपनी अनेक शाखाओं प्रशाखाओं में लहराता,झूमता और प्रस्फुटित होता आज भी अपनी अमर गाथाओं को कह रहा है। शेखावाटी नाम लेने मात्र से ही आज भी शोर्य का संचार होता है,दान की दुन्दुभी कानों में गूंजती है और शिक्षा,साहित्य,संस्कृति तथा कला का भाव उर्मियाँ उद्वेलित होने लगती है। यहाँ भित्तिचित्रों ने तो शेखावाटी के नाम को सारे संसार में दूर-दूर तक उजागर किया है। यह धरा धन्य है। ऋषियों की तपोभूमि रही है तो कृषकों की कर्मभूमि। यह धर्मधरा राजस्थान की एक पुण्य स्थली है।
ऐतिहासिक द्रष्टि से इसमें अमरसरवाटी,झुंझुनू वाटी,उदयपुर वाटी, खंडेला वाटी, नरहड़ वाटी,सिंघाना वाटी,सीकर वाटी,फतेहपुर वाटी, आदि कई भाग परिणित होते रहे है। इनका सामूहिक नाम ही शेखावाटी प्रसिद्ध हुआ। जब शेखावाटी का अपना अलग राजनैतिक अस्तित्व था तब उसकी सीमाए इस प्रकार थी - उत्तर पश्चिम में भूतपूर्व बीकानेर राज्य,उत्तरपूर्व में लोहारू और झज्जर,दक्षिण पूर्व में तंवरावाटी और भूतपूर्व [[जयपुर]] राज्य तथा दक्षिण पश्चिम में भूतपूर्व जोधपुर राज्य। परन्तु इसकी भौगोलिक सीमाएं [[सीकर]] और झुंझुनू दो जिलों तक ही सिमित मानी जाती रही है। वर्तमान शासन व्यवस्था में भी इन दो जिलो को ही शेखावाटी माना गया है। देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर-शाहपुरा,खंडेला,सीकर,खेतडी,बिसाऊ,सुरजगढ,नवलगढ़,मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता, खुड, खाचरियाबास,अलसीसर,मलसीसर,[[लक्ष्मणगढ]] आदि बड़े-बड़े प्रभावशाली संस्थान शेखा जी के वंशधरों के अधिकार में थे।
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[[शेखावत]] संघ ने,जो [[आमेर]] राजवंश से उदभूत है, काल और परिस्थितियों के प्रभाव से अपने पैत्रिक राज्य [[आमेर]] के बराबर सम्मान और शक्ति संचय कर ली है।
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