"गाथा (अवेस्ता)": अवतरणों में अंतर

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: तेम् ने यस्ताईस आर्म तो ईस् मिमघ्जो
: ये आन्मेनी यज्दाओ स्रावि अहूरो (गाथा 45।10)
 
अर्थात् हम केवल उसी को पूजते हैं जो अपने धर्म के कार्यों से और अहुरमज्द के नाम से विख्यात है। जरथुस्त्र ने स्पष्ट शब्दों में ईश्वर के ऊपर अपनी दृढ़ आस्था इस गाथा में प्रकट की है :
 
: नो इत् मोइ वास्ता क्षमत् अन्या (गाथा 29।1)
 
इसका स्पष्ट अर्थ है कि भगवान् के अतिरिक्त मेरा अन्य कोई रक्षक नहीं है। इतना ही नहीं, इसी गाथा में आगे चलकर वे कहते हैं-मज़दाओ सखारे मइरी श्तो (गाथा 29।4) अर्थात् केवल मज़्दा ही एकमात्र उपास्य हैं। इनके अतिरिक्त कोई भी अन्य देवता उपासना के योग्य नहीं है। अहुरमज़्द के साथ उनके छह अन्य रूपों की भी कल्पना इन गाथाओं में की गई है। ये वस्तुत: आरंभ में गुण ही हैं जिन षड्गुणों से युक्त अहुरमज़्द की कल्पना ‘षाड्गुण्य विग्रह’ भगवान् विष्णु से विशेष मिलती है। अवेस्ता के अन्य अंशों में वे देवता अथवा फरिश्ता बना दिए गए हैं और आमेषा स्पेन्ता (पवित्र अमर शक्तियाँ) के नाम से प्रसिद्ध हैं। उनके नाम तथा रूप का परिचय इस प्रकार है: