"गढ़वाल": अवतरणों में अंतर

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गढ़वाल [[भारत]] के [[उत्तरांचल]] प्रान्त का एक प्रमुख क्षेत्र है। यहाँ की मुख्य भाषा [[गढ़वाली]] तथा [[हिन्दी]] है। गढ़वाल का साहित्य तथा संस्कृति बहुत समृद्ध हैं। लोक संस्कृत भी अत्यंत प्राचीन और विकसित है।
गढ़वाली लोकनृत्यों के २५ से अधिक प्रकार पाए जाते हैं इनमें प्रमुख हैं- १. मांगल या मांगलिक गीत, २. जागर गीत, ३. पंवाडा, ४. तंत्र-मंत्रात्मक गीत, ५. थड्या गीत, ६. चौंफुला गीत, ७. झुमैलौ, ८. खुदैड़, ९. वासंती गीत, १०. होरी गीत, ११. कुलाचार, १२. बाजूबंद गीत, १३. लामण, १४. छोपती, १५. लौरी, १६. पटखाई में छूड़ा, १७. न्यौनाली, १८. दूड़ा, १९. चैती पसारा गीत, २०. बारहमासा गीत, २१. चौमासा गीत, २२. फौफती, २३. चांचरी, २४. झौड़ा, २५. केदरा नृत्य-गीत, २६. सामयिक गीत, २७. अन्य नृत्य-गीतों में - हंसौड़ा, हंसौडणा, जात्रा, बनजारा, बौछड़ों, बौंसरेला, सिपैया, इत्यादि। इन अनेक प्रकार के नृत्य-गीतों में गढ़वाल की लोक-विश्रुत संस्कृति की झलक स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।<ref>{{cite book |last=बलौदी |first= मंजु|title= कादंबिनी|year= फरवरी 1995 |publisher= हिंदुस्तान टाइम्स लिमिटेड, 18-20 कस्तूरबा गांधी मार्ग|location= दिल्ली, भारत|id= |page= 62|editor: राजेंद्र अवस्थी|accessday= 7|accessmonth=फरवरी|accessyear=2008}}</ref>
 
 
== धर्म ==
 
{{मुख्य|गढ़वाल में धर्म}}
[[गढ़वाल]] में निवास करने वाले व्यक्तियों में से अधिकांश [[हिन्दू]] हैं। यहाँ निवास करने वाले अन्य व्यक्तियों में [[मुस्लिम]], [[सिख]], [[ईसाई]] एवं [[बौद्ध धर्म]] के लोग सम्मिलित हैं। [[गढ़वाल]] का अधिकांश भाग पवित्र भू-दृश्यों एवं प्रतिवेशों से परिपूर्ण है। उनकी पवित्रता देवताओं/पौराणिक व्यक्ति तत्वों, साधुओं एवं पौराणिक एतिहासिक घटनाओं से सम्बद्ध है।
[[गढ़वाल]] के वातावरण एवं प्राकृतिक परिवेश का धर्म पर अत्याधिक प्रभाव पडा है। विष्णु एवं शिव के विभिन्न स्वरुपों की पूजा सम्पूर्ण क्षेत्र में किये जाने के साथ-2 इस पर्वतीय क्षेत्र में स्थानीय देवी एवं देवताओं की भी बहुत अधिक पूजा-अर्चना की जाती है। कठिन भू-भाग एवं जलवायु स्थितयों के कारण पहाडों पर जीवन कठिनाइयों एवं आपदाओं से परिपूर्ण है। भय को दूर करने के लिए यहाँ स्थानीय देवी देवताओं की पूजा लोकप्रिय है।
 
यहां सभी हिन्दू मत हैं: वैष्णव, शैव एवं शाक्त।
 
[[गढ़वाल]] में निवास करने वाले व्यक्तियों में से अधिकांश [[हिन्दू]] हैं। यहाँ निवास करने वाले अन्य व्यक्तियों में [[मुस्लिम]], [[सिख]], [[ईसाई]] एवं [[बौद्ध धर्म]] के लोग सम्मिलित हैं। धर्म के आधार पर [[गढ़वाल]] के निवासियों की जनसंख्या विभाजन निम्न है।
* हिन्दू 92.0%
* सिख 2.5%
* मुस्लिम 2.0%
* ईसाई 2.0%
* अन्य 1.5%
 
 
==पवित्र भू-दृश्य एवं प्रतिवेश==
[[गढ़वाल]] का अधिकांश भाग पवित्र भू-दृश्यों एवं प्रतिवेशों से परिपूर्ण है। उनकी पवित्रता देवताओं/पौराणिक व्यक्ति तत्वों, साधुओं एवं पौराणिक एतिहासिक घटनाओं से सम्बद्ध है। इन भू-दृश्यों के कुछ उदाहरण निम्न प्रलेख में दर्शाये गये हैं।
* [[गंगोत्री]] उस पौराणिक स्थल से सम्बद्ध है जहाँ से पवित्र [[गंगा]] पृथ्वी पर अवतरित हई।
* जौनसार बाबर क्षेत्र में लखमण्डल नामक स्थान के बारे में यह विश्वास है कि यही वह स्थल है जहाँ [[दुर्योधन]] ने पान्डवों को लाख से बने मकान में जला कर मारने का प्रयास किया था।
* [[अगस्त्य]], कपिल, पाराशर, दत्तात्रेय एवं विश्वामित्र नामक साधू अगस्त मुनि, श्रीनगर, पार-कान्डी, देवलगढ एवं रुद्रप्रयाग नगरों से सम्बद्ध हैं।
* सिखों के गुरू गोविन्द सिंह ने ऊपरी हिमालय में हेमकुण्ड नामक स्थल पर तपस्या की थी।
* [[गढ़वाल]] के अनेकों स्थल जैसे [देवप्रयाग, [[लक्ष्मण झूला]], [[ऋषिकेश]],[[ तपोवन]], मुनि की रेती, [[कर्ण प्रयाग]] एवं पाण्डुकेश्वर पाण्डवों से सम्बद्ध हैं।
* सम्पूर्ण विश्व में निवास करने वाले हिन्दुओं के लिए पूजनीय अनेकों मन्दिर [[गढ़वाल]] में स्थित हैं। इन मन्दिरों में [[बद्रीनाथ]], [[केदारनाथ]], [[गंगोत्री]], [[यमुनोत्री]], [[रुद्रप्रयाग]], [[कर्णप्रयाग]] एवं वाकेश्वर इत्यादि प्रमुख हैं।
* विभिन्न देवी देवताओं के सैकडों मन्दिर पर्वतीय क्षेत्रों के समस्त भागों में स्थित पहाडियों के शिखरों पर स्थापित है। उदाहरणतः सरकण्डा देवी, तुंगनाथ रुद्रनाथ, किनकेउलेश्वर एवं अनसूय्या माता इत्यादि
* पवित्र [[गंगा]] नदी [[गढ़वाल]] से उदगमित होती है तथा मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश करने से पूर्व [[गढ़वाल]] में प्रवाहित होती है। [[गंगा]] एवं इसकी सहायक नदियों के तट पर अनेकों पवित्र नगर जैसे [[ऋषिकेश]], [[देवप्रयाग]], [[गौमुख]], [[उत्तरकाशी]], [[रुद्रप्रयाग]] एवं [[बद्रीनाथ]] स्थापित है।
==धर्म पर वातावरण का प्रभाव==
[[गढ़वाल]] के वातावरण एवं प्राकृतिक परिवेश का धर्म पर अत्याधिक प्रभाव पडा है। विष्णु एवं शिव के विभिन्न स्वरुपों की पूजा सम्पूर्ण क्षेत्र में किये जाने के साथ-2 इस पर्वतीय क्षेत्र में स्थानीय देवी एवं देवताओं की भी बहुत अधिक पूजा-अर्चना की जाती है। कठिन भू-भाग एवं जलवायु स्थितयों के कारण पहाडों पर जीवन कठिनाइयों एवं आपदाओं से परिपूर्ण है। भय को दूर करने के लिए यहाँ स्थानीय देवी देवताओं की पूजा लोकप्रिय है।
यहाँ के लोगों में यह विश्वास है कि देवता लोगों की विभिन्न खतरों (जैसे खडी पहाडी से गिरना, या तीव्र बाढ में बह जाना) से रक्षा कर सकते हैं। [[गढ़वाल]] में स्थापित शिक्षित एवं अशिक्षित दोनो प्रकार के अधिकांश व्यक्ति शिव, विष्णु एवं शक्ति के साथ-2 स्थानीय देवताओं की पूजा करते हैं। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एवं यमुनोत्री के मन्दिरों के लिए पवित्र मार्गों के अन्वेषण एवं विकास करने वाले हमारे पूर्वजों ने [[गढ़वाल]] के पर्वतीय वातावरण के प्रति लोगों में सम्मान, भय एवं श्रद्धा को विकसित किया।
 
''' विश्वास है कि स्थानीय देवी देवता निम्न सांस्कृतिक प्रतिवेश में निवास करते हैं। '''
 
* उच्च पर्वतीय दर्रों पर्वत श्रेणियों के शिखरों पर
* गर्जन करते जल प्रपातों पर
* हिमाच्छित पर्वत शिखरों पर जिनके शिखर आसमान को छूते प्रतीत होते हैं।
* नदियाँ, झरने एवं धाराएं नदियों एवं धाराओं के उदगम
* नदियों एवं धाराओं के उदगम स्थल
* स्थल, जहाँ पूर्व में साधू महात्माओं ने तपस्या की थी।
 
== प्रवसन एवं धर्म==
मानव जातियों के विभिन्न समूहों के प्रवसन ने [[गढ़वाल]] की धार्मिक श्रद्धा एवं क्रिया कलापों को प्रभावित किया है। इस प्रभाव को निम्न बिन्दुओं में विस्तृत रुप में समझाया गया है।
* अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों एवं दुष्कर घाटियों में निवास करने वाले लोग आज भी धर्म के अपने विशिष्ट एवं मूल स्वरुप का निर्वाह कर रहे हैं।
* [[गढ़वाल]] के ऊपरी भागों में बुद्ध धर्म का गहरा प्रभाव पडा है क्योंकि इन क्षेत्रों के निवासियों का प्रवसन तिब्बत से हुआ है। इन व्यक्तियों का तिब्बत से सम्बन्ध है जहाँ पर बौद्ध धर्म के एक विशिष्ट स्वरुप प्रचलित है।
* सर्प पूजा में विश्वास रखने वाले लोग [[गढ़वाल]] की अनेकों आन्तरिक घाटियों में बस गये हैं। वर्तमान में अनेकों लोग इस धर्म से जुड गये हैं।
* महासू देवता की पूजा करने वाले पश्चिम के अनेकों प्रवासी लोग [[गढ़वाल]] में यमुना एवं टौन्स नदियों की घाटियों में बस गये हैं। इन लोगों ने अपनी एक स्वतन्त्र पहचान स्थापित कर ली है।
* शैव मत एवं शक्तिस्म [[गढ़वाल]] में धर्म के प्राचीन आधार है। इस पर्वतीय क्षेत्र के/से प्रवासी लोगों को इन धर्मों ने अत्यधिक प्रभावित किया है।
 
== [[गढ़वाल]] का धार्मिक विश्वास==
[[गढ़वाल]] में निवास करने वाले प्रमुख हिन्दू जनमानस के मूल धार्मिक विश्वास की चर्चा निम्न प्रलेखों में की गई है।
===शैव मत===
भगवान [[शिव]] की पूजा को [[गढ़वाल]] के लोगों के मूल धार्मिक विश्वास में से एक माना जाता है। [[गढ़वाल]] के विभिन्न भागों में लगभग 350 शिव मन्दिर स्थापित हैं।
 
[[गढ़वाल]] की उत्तरी पर्वतीय दीवार में सींग के आकार के शिखरों के स्वरुप के आधार पर शिवलिंग के प्रतीक चिन्ह स्थापित किये गये हैं। नित्यानन्द एवं कुमार (1989) ने वर्णित किया है कि अत्याधिक जटिल हिन्दू धर्म में इन समस्त स्थानीय धर्मों के स्वांगीकरण में सुधार एवं विस्तार द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों के समस्त लोकप्रिय देवताओं को शैव मत की विशाल छाया के अन्तर्गत लाया गया जिसके परिणामस्वरुप पूर्व वैदिक, वैदिक एवं बुद्धिस्ट वर्ग के लोगों का असाधारण सम्मिश्रण हुआ। भगवान शिव समस्त बेतालों, दैत्यों, पिशाचों एवं आत्माओं से सम्बद्ध होने के साथ-2 इन समस्त व्यक्तियों से भी सम्बद्ध है जो आदिवासी धर्मों से जुडे हैं। भगवान शिव से सम्बद्ध देवताओं को धर्म के संरक्षक के रुप में भी जाना जाता है। ये देवता भगवान शिव के मन्दिरों के द्वारपाल हैं। भैरो भगवान शिव के अधिकांश मन्दिरों के रक्षक हैं। इसके अतिरिक्त तुंगनाथ मन्दिर बद्रीनाथ एवं केदारनाथ नामक प्रमुख मन्दिरों के रक्षक क्रमशः काल भैरव, धन-तकारना एवं भैरव हैं।
''' [[गढ़वाल]] में स्थापित प्रमुख शिव मन्दिर केदारनाथ, भद-महेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कालपेश्वर, उत्तरकाशी, गोपेश्वर, यमुनोत्री, श्रीनगर, पौडी, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, सोनप्रयाग एवं देवप्रयाग नामक स्थलों पर स्थित है। '''
 
 
===शाक्त मत ===
देवी दुर्गा एवं उसके विभिन्न स्वरुपों की पूजा शक्तिस्म के रुप में की जाती है। देवी को [[गढ़वाल]] की पहाडियों के विभिन्न भागों में विस्तृत रुप में पूजा जाता है। नित्यानन्द एवं प्रसाद (1989) के अनुसार दुर्गा एवं इसके विभिन्न स्वरुपों के लगभग 150 मन्दिर [[गढ़वाल]] में स्थित है।
;[[गढ़वाल]] के विभिन्न स्थानों पर स्थापित दुर्गा एवं उसके विभिन्न स्वरुपों के महत्वपूर्ण मन्दिर निम्न हैं।
* मन्दाकिनी घाटी में कालीमठ नामक स्थल पर स्थित महाकाली, महासरस्वती, महालक्ष्मी एवं हरगौरी मन्दिर
* धनौल्टी (मसूरी) के निकट स्थित सरकन्डा देवी मन्दिर
* हिन्डोलाखाल-टिहरी मार्ग पर स्थित चन्द्रवदनी देवी मन्दिर
* कालीफट में फांगू का दुर्गा मन्दिर
* बिचाला नागौर में स्थित दुर्गा मन्दिर
* तल्ला उदयपुर में स्थित भवानी मन्दिर
* कल्बंगवारा दुर्गा मन्दिर जहाँ देवी ने रक्तबीज का वध किया था
* बिरौन, बिचला नागपुर एवं उदयपुर पट्टी (खेरा) में स्थित चामुन्डा देवी मन्दिर
* श्रीनगर में स्थित ज्वालपा देवी मन्दिर
* तपोवन में स्थित गौरी मन्दिर
* जोशीमठ में स्थापित नवदुर्गा मन्दिर
* श्रीनगर एवं अजबपुर (देहरादून) में स्थित शीतला देवी मन्दिर
* बसन्त ऋतु में एवं दशहरे से ठीक पहले शरद ऋतु में नौ दिनो तक देवी दुर्गा की पूजा पूर्ण श्रृद्धा के साथ की जाती है। इन नौ दिनो को नवदुर्गा के नाम से जाना जाता है एवं इन दिनो को विवाह एवं अन्य मांगलिक कार्यों के लिए अत्याधिक शुभ माना जाता है।
===वैष्णव मत===
भगवान [[विष्णु]] को वैष्णव मत के रुप में जाना जाता है। [[बद्रीनाथ]] को भगवान [[विष्णु]] का मुख्य धाम माना जाता है। यह विश्वास है। कि ईसा सम्वत के प्रारम्भ से पूर्व से ही [[बद्रीनाथ]] पवित्र तीर्थयात्रा का एक प्रमुख स्थल था। अनेकों पवित्र ग्रन्थों जैसे महाभारत में भी बद्रीनाथ का वर्णन किया गया है। [[पाणिनी]] ने [[बद्रीनाथ]] एवं [[केदारनाथ]] दोनो तीर्थ स्थलों को पूर्ण विकसित तीर्थ स्थलों के रुप में सन्दर्भित किया है।
 
जब [[आदिगुरु शंकराचार्य]] [[बद्रीनाथ]] आये थे तब वहाँ भगवान [[विष्णु]] (बद्री विशाल) की प्रतिमा अविद्यमान पाई गई। उत्तर में तिब्बतियों के पुनः आक्रमण की निरन्तर धमकियों के कारण मन्दिर के पुजारियों ने प्रतिमा को नारद कुण्ड में फेंक दिया था। प्रतिमा को पुनः प्राप्त करके शंकराचार्य के द्वारा मन्दिर में स्थापित कर दिया गया। भगवान विष्णु के बायी एवं दायी ओर [[नर एवं नारायण]] की प्रतिमाएं विराजमान हैं। बद्रीनाथ मन्दिर के सामने गरुण की प्रतिमा स्थापित है।
;[[गढ़वाल]] के विभिन्न भागों में लगभग 61 मुख्य विष्णु मन्दिर स्थापित हैं। इनमें से कुछ को नीचे सूचीबद्ध किया गया है।
* [[बद्रीनाथ]] का बद्रीविशाल मन्दिर
* [[विष्णु प्रयाग]] में विष्णु मन्दिर
* [[मन्द प्रयाग]] का नारायण मन्दिर
* चन्द्रपुरी ([[मन्दाकिनी]] घाटी) का मुरलीमनोहर मन्दिर
* [[तपोवन]] के निकट सुभेन नामक स्थल पर स्थित भविष्य बद्री मन्दिर
* पान्डुकेश्वर का ध्यान बद्री या योग बद्री मन्दिर
* [[जोशीमठ]] का नरसिंह मन्दिर
==पूजा के अन्य स्वरुप==
[[गढ़वाल]] में पूजित देवी देवताओं के अन्य स्वरुप निम्न हैं।
===सर्प पूजा ===
प्राचीन समय में [[गढ़वाल]] में रहने वाले नागाओं के वंशज आज भी सर्प का पूजा करते हैं। इस क्षेत्र में अनेकों सर्प मन्दिर स्थापित हैं। उदाहरणार्थ कुछ सर्प मन्दिर निम्न हैं।
* पान्डुकेश्वर का शेष नाग मन्दिर
* रतगाँव का भेकल नाग मन्दिर
* तालोर का सांगल नाग मन्दिर
* भरगाँव का बम्पा नाग मन्दिर
* निति घाटी में जेलम का लोहन देव नाग मन्दिर
* [[देहरादून]] घाटी नाग सिद्ध का बामन नाग मन्दिर
===कर्ण पूजा ===
पश्चिमी [[गढ़वाल]] के जौनसार बाबर क्षेत्र में कर्ण पूजा की जाती है।
===सामेश्वर या दुर्योधन पूजा===
[[टौन्स]], [[यमुना]], [[भागीरथी]], बलंगाना एवं भीलंगान की ऊपरी घाटियों में दुर्योधन की पूजा की जाती है।
===महासू पूजा ===
पश्चिमी [[गढ़वाल]] की यमुना एवं भागीरथी घाटियों में यह पूजा प्रचलित है।
==बौद्ध धर्म==
ऊपरी [[गढ़वाल]] में रहने वाली अनेकों जनजातियाँ जैसे भूटिया इत्यादि बोद्ध धर्म के अनुयायी हैं। क्योंकि उनका सम्बन्ध पूर्व में तिब्बती लोगों के साथ बहुत अधिक रहा है।
 
==गढ़वाल के मेले==
{{main|गढ़वाल के मेले}}
गढ़वाल में अनेकों त्यौहार मनाए जाते हैं। इन में से बहुत से त्यौहारों पर प्रसिद्ध मेले भी लगते हैं। ये मेले सांप्रदायिक सौहार्द का वातावरण बनाए रखने में भरपूर सहयोग देते हैं। इसके साथ ही यहां की संस्कृति को फलने फूलने एवं आदान प्रदान का भरपूर अवसर देते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मेले इस प्रकार से हैं:
 
* [[बसंत पंचमी मेला, कोटद्वार]]
* [[पूर्णागिरी मेला, टनकपुर]]
* [[देवीधूरा मेला]]
* [[कुंभ एवं अर्धकुंभ मेला, हरिद्वार]]
* [[नैनीताल महोत्सव]]
* [[गढ़वाल एंव कुमायूँ महोत्सव ]]
* [[पिरान कलियर उर्स]]
कला एवं चित्रकारी
{{मुख्य|गढ़वाल की कला एवं चित्रकारी}}
[[चाँदी]] के समान श्वेत पर्वत शिखर कल-2 करती चमकदार सरिताएं, हरी भरी घाटियाँ एवं यहाँ की शीत जलवायु ने शान्ति एवं स्वास्थय लाभ हेतु एक विशाल संख्या में पर्यटकों को [[गढ़वाल]] के पर्वतों की ओर आकर्षित किया है। यह एक सौन्दर्यपूर्ण भूमि है जिसने महर्षि [[बाल्मिकी]] एवं [[कालीदास]] जैसे महान लेखकों को प्रेरणा प्रदान की है। इन सभी ने पेन्टिंग एवं कला के साथ-2 [[गढ़वाल]] की शैक्षिक सम्पदा को अन्तिम नीव प्रदान की है।
 
पत्थर पर नक्काशी की यहाँ की मूल कला धीरे-2 समाप्त हो गई है। परन्तु लकडी पर नक्काशी आज भी यहाँ उपलब्ध है। यहाँ पर केवल अर्द्धशताब्दी पूर्व तक के गृहों के प्रत्येक दरवाजे पर लकडी की नक्काशी का कार्य देखा जा सकता है इसके अतिरिक्त लकडी की नक्काशी का कार्य सम्पूर्ण [[गढ़वाल]] में स्थित सकडों मन्दिरों में देखा जा सकता है। वास्तुशिल्प कार्य के अवशेष [[गढ़वाल]] में निम्न स्थलों पर पाये जा सकते हैं।
चान्दपुर किला, श्रीनगर-मन्दिर, बद्रीनाथ के निकट पाडुकेश्वर, जोशीमठ के निकट देवी मादिन एवं देवलगढ मन्दिर उपरोक्त सभी संरचनाएं [[गढ़वाल]] में एवं चन्डी जिले में स्थित है।
 
==[[गढ़वाल]] पेन्टिंग स्कूल==
[[गढ़वाल]] को पर्यटकों, साहसिक व्यक्तियों, राजनीतिक निर्वासितों, दर्शनशास्त्रियों एवं प्रकृति प्रेमियों के लिए सदैव ही एक सुरक्षित स्वर्ग के रूप में जाना जाता रहा है। 17 वी सदी के मध्य में एक [[मुगल]] राजकुमार सुलेमान शिकोह ने [[गढ़वाल]] में शरण ली। राजकुमार अपने साथ एक कलाकार एवं उसके पुत्र को लाया जो कि उसके दरबारी पेन्टर थे एवं मुगल स्टाइल की पेन्टिंग में कुशल थे। उन्नीस माह बाद राजकुमार ने [[गढ़वाल]] को छोड दिया परन्तु उसके दरबारी पेन्टर जो यहाँ के मनोहर वातावरण से मन्त्रमुग्ध हो गये थे वे यहीं पर रुक गये।
ये पेन्टर श्रीनगर ([[गढ़वाल]]) में स्थापित हो गया जो पंवार राज्य की तत्कालीन राजधानी थी एवं [[गढ़वाल]] में मुगल स्टाइल की पेन्टिंग को प्रस्तुत किया। धीरे-2 समय के साथ इन मूल पेन्टरों के उत्तराधिकारी विशिष्ट पेन्टर बन गये तथा उन्होने अपने प्रकार की नवीन मुल पद्धति को विकसित किया। यह स्टाइल बाद में [[गढ़वाल]] पेन्टिंग स्कूल के रुप में प्रसिद्ध हुआ।
लगभग एक शताब्दी बाद एक प्रसिद्ध पेन्टर भोला राम ने पेन्टिंग की कुछ अन्य पध्दतियों द्वारा रोभानी आकर्षण के समतुल्य पेन्टिंग की एक नई पद्धति विकसित की। वे [[गढ़वाल]] स्कूल के एक महान मास्टर होने के साथ-2 अपने समय के एक महानतम कवि भी थे। भोला राम की पेन्टिंगों में हमे कुछ सुन्दर कविताएं प्राप्त होती हैं। यद्यपि इन पेन्टिंगों में अन्य पहाडी स्कूलों का प्रभाव निश्चित रुप में दिखाई पडता है तथापि इन पेन्टिंगों में [[गढ़वाल]] स्कूल की सम्पूर्ण मूलता को बनाए रखा गया है। [[गढ़वाल]] स्कूल की प्रमुख विशिष्टताओं में पूर्ण विकसित वक्षस्थलों, बारीक कटि-विस्तार, अण्डाकार मासूम चेहरा, संवेदनशील भी है एवं पतली सुन्दर नासिका से परिपूर्ण एक सौन्दर्यपूर्ण महिला की पेन्टिंग सम्मिलित है। अपनी लिखी कविताओं प्राकृतिक इतिहास पर लिखे विचारों, एकत्रित आंकडों एवं विविध विषयों पर विशाल मात्रा में बनाई गई पेन्टिंगों के आधार पर भोलाराम को निर्विवाद रुप में अपने समय के एक महान कलाकार एवं कवि के अपवाद व्यक्तित्व के रुप में जाना जा सकता है।
 
राजा प्रदुमन शाह (1797-1804AD) द्वारा कांगडा की एक गुलर राज कुमारी के साथ किये गये विवाह ने अनेकों गुलर कलाकारों को [[गढ़वाल]] में आकर बसने पर प्रेरित किया। इस तकनीक ने [[गढ़वाल]] की पेन्टिंग सटाइल को अत्यधिक प्रभावित किया। आदर्श सौन्दर्य की वैचारिकता, धर्म एवं रोमांस में विलयकरण, कला एवं मनोभाव के सम्मिश्रण सहित [[गढ़वाल]] की पेन्टिंग प्रेम के प्रति भारतीय मनोवृत्ति के साकार स्वरुप को दर्शाती है। विशिष्ट शोधकर्ताओं एवं एतिहासिक कलाकारों द्वारा किये गये कुछ कठिन शोध कार्यों के कारण इस अवधि के कुछ पेन्टरों के नाम प्रसिद्ध हैं। पेन्टरों के पारिवारिक वृक्ष में श्याम दास हर दास के नाम सर्वप्रथम लिये जाते हैं जो राजकुमार सुलेमान के साथ [[गढ़वाल]] आने वाले प्रथम व्यक्ति थे। इस कला विद्यालय के कुछ महान शिक्षकों में हीरालाल, मंगतराम, भोलाराम, ज्वालाराम, तेजराम, ब्रजनाथ प्रमुख हैं।
 
;[[गढ़वाल]] पेन्टिंग स्कूल की कुछ उत्कृष्ट कलाकृतियाँ निम्न हैं।
रामायण (1780AD)का चित्रण, ब्रहमा जी के जन्म दिवस (1780AD)का आयोजन, शिव एवं पार्वती रागिनी, उत्कट नायिका, अभिसारिका नायिका, कृष्ण पेन्टिंग, राधा के चरण, दर्पण देखती हुई राधा, कालिया दमन, गीता गोविन्दा चित्रण पुरातत्वीय अन्वेषणों से प्राप्त अनेकों प्रतिमाओं सहित वृहत्त मात्रा में इन पेन्टिंगों को श्रीनगर ([[गढ़वाल]]) में विश्वविद्यालय संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है।
===डेकारा===
[[गढ़वाल]] के निवासियों के जीवन में मूर्ति पूजा का विशिष्ट महत्व होने के कारण देवी एवं देवताओं की विसशिष्ट प्रतिमाओं को बनाया गया है। डेकारा देवी देवताओं की चिकनी मिट्टी में निर्मित प्रतिमाएं हैं। जिन्हे रिलीफ या त्रिविमिय स्वरुप में तैयार किया गया है तथा मुख्य रुप में पूजा-अर्चना हेतु स्थापित किये गये।
इन प्रतिमाओं को बारीक चिकनी मिट्टी में रंग मिलाकर तैयार किया गया है। इसके बाद उन्हे आकर्षित बनाने के लिए उनमे विभिन्न रंग भरे गये मकर सक्रान्ति के अवसर पर गेहूँ के मीठे आटे में जंगली सुअर या घुगटा (जिसकी प्रतिमाएं कुमाऊ के रोमान्टिक लोक संगीतों में स्थापित है) को चित्रित करती माला बनाई जाती है। बच्चे इन घुगटा प्रतिमाओं को कौओ को खिलाते हैं। कर्क सक्रान्ति के अवसर पर डेकारा के नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव की प्रतिमाएं बनाई जाती है जो शिव एवं हिमालय पुत्री पार्वती के विवाह का चित्रण करती है।
===आभूषण===
[[गढ़वाल]] एवं कुमाऊ के प्रत्येक भाग में पारम्परिक स्वर्णकार हजारों वर्ष पुराने डिजाइनों एवं पद्धतियों का प्रयोग करके पारम्परिक आभूषण निर्मित करते हैं। ये आभूषण सोने, चाँदी एवं अक्सर ताँबे के बने होते हैं।
लोक संगीत
 
{{मुख्य|गढ़वाल का लोक संगीत}}
गढ़वाल भी समस्त भारत की तरह संगीत से अछूता नहीं है। यहां की अपनी संगीत परंपराएं हैं, व अपने लोकगीत हैं। इनमें से खास हैं:
* छोपाटी
* चौन फूला एवं झुमेला
* बसंती
* मंगल
* पूजा लोकगीत
* जग्गार
* बाजुबंद
* खुदेद
* छुरा
 
==छोपाटी==
 
ये लोक संगीत टिहरी [[गढ़वाल]] के रावेन- जौनपुर क्षेत्र में लोकप्रिय है। छोपाटी वे प्रेम गीत हैं, जिन्हे प्रश्न एवं उत्तर के सरुप में पुरुष एवं महिलाओं द्वारा गाया जाता है।
==चौन फूला एवं झुमेलाः==
 
चौनफूला एवं झुमेला मौसमी रुप है जिन्हे बसंन्त पंचमी से संक्रान्ती या बैसाखी के मध्य निष्पादित किया जाता है। झुमेला को सामान्यतः महिलाओं द्वारा निष्पादित किया जाता है। परन्तु कभी-2 यह मिश्रित रुप में भी निष्पादित किया जाता है। चौनफूला नृत्य को स्त्री एवं पुरुषों द्वारा रात्रि में समाज के सभी वर्गों द्वारा समूहों में किया जाता है। चौनफूला लोक गीतों का सृजन विभिन्न अवसरों पर प्रकृति के गुणगान के लिए किया जाता है। चौनफूला, झुमेला एवं दारयोला लोकगीतों का नामकरण समान नाम वाले लोकनृत्यों के नाम पर हुआ है।
 
==बसन्तीः==
बसन्त ऋतु के आगमन के अवसर पर जब [[गढ़वाल]] पर्वतों की घाटियों में नवीन पुष्प खिलते हैं बसन्ती लोकनृत्यों को गाया जाता है। इन लोकनृत्यों का गायन अकेले या समूहों में किया जाता है।
 
==मंगलः==
मंगल गीतों को विवाह समारोहों के अवसर पर गाया जाता है। ये गीत अवसर पर गाया जाता है। ये गीत मूलतः पूजा गीत (Hymns) हैं। विवाह समारोह के अवसर पर शास्त्रों के अनुसार पुरोहित के साथ-2 इन गीतों को संस्कृत के श्लोकों में गाया जाता है।
==पूजा लोक गीतः==
ये लोकगीत परिवारिक देवताओं की पूजा से सम्बद्ध है। इस क्षेत्र में तंत्र-मंत्र से सम्बद्ध अन्य पूजा लोकगीत भी गाये जाते हैं जिनका उद्देश्य अपदूतों से मानव समुदाय की रक्षा करना है।
 
==जग्गारः==
जग्गार का सम्बन्ध भूत एवं प्रेतात्माओं की पूजा में है तथा कभी-2 ये लोकगीत लोक नृत्यों के साथ मिश्रित रुप में गाये जाते हैं। कभी-2 जग्गार विभिन्न देवी देवताओं के सम्मान में पूजा लोक गीतों के स्वरुप में भी गाये जाते हैं।
==बाजू बन्दः==
ये लोकगीत चरवाहों के मध्य प्रेम एवं बलिदान के प्रतीक हैं। ये गीत पुरुष एवं स्त्री या बालक एवं बालिका के मध्य प्रेम को प्रदर्शित करने के रुप में गाये जाते हैं।
==खुदेदः==
ये लोकगीत अपने पति से प्रथक हुई महिला की पीडा को वर्णित करते हैं। पीडित महिला अपशब्दों के साथ उन परिस्थितयों को वर्णित करती है जिसके कारण वह अपने पति से प्रथक हुई है सामान्यतः प्रथक्करण का मुख्य कारण पति का रोजगार की खोज में घर से दूर जाना है। लमन नामक अन्य लोक नृत्य विशिष्ट अवसरों पर गाया जाता है जो पुरुष द्वारा अपनी प्रेमिका के लिए बलिदान की इच्छा को व्यक्त करता है। लोकगीतों के इस वर्ग में पवादा एक अन्य लोक गीत है जो दुःख के इस अवसर पर गाया जाता है जब पति युद्ध के मैदान में चला गया होता है।
 
==छुराः==
छुरा लोक गीतों को चरवाहों द्वारा गाया जाता है। इन लोकगीतों में वृद्ध व्यक्ति भेडों एवं बकरियों को चराने के अपने अनुभव का ज्ञान अपने बच्चों को देते हैं।
लोक नृत्य
{{मुख्य|गढ़वाल का लोक नृत्य}}
जहां का संगीत इतना समृद्ध है, वहां का लोकनृत्य भी उसी श्रेणी का है। इनमें पुरुष व स्त्री, दोनों ही के नृत्य हैं, एवं सम्मिलित नृत्य भी आते हैं। इन लोक नृत्यों में प्रमुख हैं:
* लांगविर नुल्याः
* बरादा नटि
* पान्डव नृत्य
* धुरंग एवं धुरिंग
 
==लांगविर नुल्याः==
यह एक कलाबाजी नृत्य है जो पुरुषों द्वारा निष्पादित किया जाता है। कलाबाज नर्तक खम्भे के शीर्षक पर चढ जाता है तथा शीर्ष पर अपने पेट को स्वयं संतुलित करता है। खम्भे के नीचे वाधकारों का एक समूह ढोल एवं दमाना बजाता है जबकि खम्भे के शीर्ष पर नर्तक अपने हाथ पैरों से अनेकों करतब दिखाता हुआ घूमता है। यह लोकनृत्य टिहरी [[गढ़वाल]] क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है।
==बरादा नटिः==
यह नृत्य देहरादून जिले में चकराता तहसील के जौनसार बाबर क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है। यह लोकनृत्य कुछ धार्मिक त्यौहारों या कुछ सामाजिक कार्यकुलों के अवसर पर प्रस्तुत किया जाता है। बालक एवं बालिकाएं दोनों रंग बिरंगी पारम्परिक वेशभूषा में नृत्य में भाग लेते हैं।
==पान्डव नृत्यः==
महाभारत की कथा से सम्बद्ध पान्डव नृत्य विशिष्ट रुप से [[गढ़वाल]] क्षेत्र में अत्यधिक लोकप्रिय है। पान्डव नृत्य कुछ अन्य नही है वरन नृत्य एवं संगीत के रुप में महाभारत की कहानी का सरल रुप में वर्णन है। इसका प्रदर्शन अधिकांशतः दशहरे एवं दीपावली के अवसर पर किया जाता है। पान्डव नृत्य चमोली जिले में एवं पौडी [[गढ़वाल]] में लोकप्रिय है।
==धुरंग एवं धुरिंगः==
भूटिया जनजाति के लोगों के मुख्य नृत्य धुरंग एवं धुरिंग है जिसका प्रदर्शन मृत्यु के अवसर पर किया जाता है। इस नृत्य का उद्देश्य मृत व्यक्ति की आत्मा को विमुक्त करना जिसके बारे में यह विश्वास है कि आत्मा एक बकरी या अन्य पशु के शरीर में निवास करती है। यह नृत्य हिमाचल प्रदेश के पशुनृत्य या नागालैन्ड के आखेट नृत्य के समान है।
पहनावा
{{मुख्य|गढ़वाल का पहनावा}}
 
[[गढ़वाल]] के निवासी विभिन्न प्रकार के वस्त्र पहनते हैं। निम्न परिवर्ती इनके वस्त्रों के चयन को प्रभावित करते हैं।
# परम्पराएं
# स्थानीय उपलब्ध सामग्री
# लोगों के कार्य करने की आदतें
# जलवायु स्थितियाँ (मुख्यतः तापमान)
जाति एवं धर्म के आधार पर यहाँ के लोगों के पहनावे में विशेष परिवर्तन नही पाया जाता है। उनके पहनावे में परिवर्तन के विभिन्न कारणों को ऊपर सूचीबद्ध किया गया है। यहाँ की महिलाओं के वस्त्र इन्हे खेतों में कार्य करने के लिए उपयुक्त होते हैं। महिलाओं के वस्त्रों की विशिष्टता यह है कि वे वनमार्गों से गुजरते समय झाडियों में नही उलझते हैं। तथापि यहाँ के लोगों के वस्त्रों पर उनकी आर्थिक स्थिति का प्रभाव स्पष्टतः दिखाई पडता है। देहरादून, ऋषिकेश एवं श्रीनगर जैसे शहरों एवं नगरों के निवासियों का पहनावा पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के कारण परिवर्तित हो गया है। मैदानी क्षेत्रों में कार्यरत यहाँ के स्थानीय निवासी यहाँ वापिस आते समय अच्छी गुणवत्ता वाले सिले हुये वस्त्रों को यहाँ लाते हैं यहाँ के लोगों के पहनावे के आधार पर [[गढ़वाल]] को निम्न क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है।
==ऊपरी [[गढ़वाल]]==
इस भूभाग में समुद्र तल से लगभग 2300 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले वे सभी क्षेत्र सम्मिलित हैं। जहाँ तक क्षेत्र के निवासी निवास करते हैं। [[गढ़वाल]] के ऊपरी भूभाग में भूटिया एवं गूजर जैसी जनजातियाँ निवास करती हैं। शरद ऋतु में यहाँ तीव्रतम ठंड पडती है। तथा इस भूभाग पर भारी हिमपात प्राप्त होता है। भूटिया लोग बकरी या भेडों की ऊन में स्वयं बुने ऊनी वस्त्र पहनते हैं।
 
यहाँ के स्थानीय पुरुष ढीली पैन्ट एवं ढीला गाउन पहनते हैं। यहाँ की महिलाएं कमर के चारों ओर एक ऊनी वस्त्र (पट्टा) तथा सिर पर ऊनी टोपी पहनती हैं। महिलाओं द्वारा पैन्ट के स्थान पर ऊन का एक ढीला अन्तः वस्त्र पहना जाता है। ऊपरी वस्त्र पुरुषों के समान ही होते हैं। यहाँ की स्थानीय महिलाएं ऊन की सफेद बास्केट के साथ ऊनी स्कर्ट भी पहनती हैं। ऊनी वस्त्रों को बिरले ही धोया जाता है तथा वस्त्रों को उनकी उपयोगी अवधि के अन्त तक पहना जाता है। यहाँ पर सूती वस्त्रों को नही पहना जाता है। आजकल बडे गाँवों में कुछ लोगों ने संश्लेषित (Synthetic) पैन्ट, शर्ट एवं कोट भी पहनना प्रारम्भ कर दिया है।
==मध्य [[गढ़वाल]]==
इस भूभाग में समुद्र तल से 1000 मीटर में 2300 मीटर के मध्य का पर्वतीय क्षेत्र सम्मिलित है। अलकनन्दा, भागीरथी एवं यमुना नदियों की मध्य घाटियों में रहने वाले व्यक्ति ऊनी जूटी एवं सूती वस्त्रों को पहनते हैं। पुरुष टाइट पैन्ट एवं बटन वाला लम्बा कोट या अचकन पहनते हैं। सिर पर वे गाँधी टोपी पहनते हैं। यहाँ की स्थानीय महिलाएं लम्बी स्कर्ट या घघरी, ब्लाउज पहनती है तथा सिर पर स्कार्फ के प्रकार का वस्त्र बाँधती है।
 
मध्यच [[गढ़वाल]] में निवास करने वाले ग्रेजर समुदाय के लोग बाजूरहित बिना सिला गाउन पहनते हैं। जो घुटने से नीचे तक लम्बा होता है। यह गाउन बकरी की ऊन से निर्मित किया जाता है। निकटतम पूर्व की अवधि में पुरुष शर्ट, पैन्ट एवं कोट भी पहनने लगे हैं। [[गढ़वाल]] के शहरी एवं अर्द्धशहरी क्षेत्रों की महिलाएं साडी ब्लाउज या पायजामा कुर्ता भी पहनने लगी है।
 
==निम्न [[गढ़वाल]]==
इस भूभाग में लगभग समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊँचाई वाले क्षेत्र सम्मिलित हैं। निम्न [[गढ़वाल]] क्षेत्र [[गढ़वाल]] के अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक विकसित हो गया है तथा यहाँ के लोगों ने मैदानी क्षेत्रों एवं पश्चिमी देशों में पहने वाले पहनावे को स्वीकार कर लिया है। यहाँ के लोग शर्ट, पैन्ट, कोट, बुशशर्ट एवं सफारी सूट पहनते हैं। यहाँ की महिलाएं साडी ब्लाउज एवं पाजामा-कुर्ता पहनती हैं। पश्चिमी पहनावे का प्रभाव क्षेत्र पर अधिक दिखाई पडता है। यहाँ की नौजवान पीढी ने जीन्स एवं अन्य पश्चिमी वस्त्रों का प्रयोग बहुत अधिक मात्रा में करना प्रारम्भ कर दिया है। शासकीय सेवाओं (जैसे सेना) से सेवानिवृत्त होने वाले व्यक्ति श्रेष्ठ सिले वस्त्र पहनते हैं।
 
 
 
 
==संदर्भ==