"जन्मपत्री": अवतरणों में अंतर

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: ''म्लेच्छा हि यवनास्तेषु सम्यक् शास्त्रमिदं स्मृतम्।''
: ''ऋषिवत्तेऽपि पूज्यन्ते किं 'पुनर्दैवविद् द्विज:॥''
:: ( 'यवन म्लेच्छ' हैं, जातक शास्त्र उसमें समीचीन रूप से विद्यमान है जिससे उनकी पूजा ऋषियों के तुल्य होती है, फिर देवज्ञ ब्राह्मण के लिए कहना ही क्या है!)
 
इससे यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए कि हमारा सारा का सारा जातकशास्त्र उधार लिया गया है। भारतीय जन्मकुंडली की पद्धति जानकर यूनानियों ने उसका विस्तार अवश्य किया और नवीन रूप में उसे [[वराहमिहिर]] के समय में भारतीयों के सम्मुख प्रस्तुत किया। फलत: वराहमिहिर ने उनकी होरा, द्रेष्काण आदि नवीन पद्धतियों के साथ राशियों के नाम भी यूनानी ही रख लिए, जैसे आज हमारा [[बीजगणित]] अरबों द्वारा [[यूरोप]] में फैलाया जाकर अपने बहद् रूप में पुन: भारत लौटकर नवीन गणित (अलजब्रा) के नाम से विख्यात हुआ है।