"तर्कशास्त्र": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: अनावश्यक अल्पविराम (,) हटाया।
छो बॉट: कोष्टक () की स्थिति सुधारी।
पंक्ति 31:
ऊपर हमने इस बात पर बल दिया कि नई तर्कप्रणालियों के विकास के साथ साथ तर्कशास्त्रीय सिद्धांतों के स्वरूप में भी न्यूनाधिक परिवर्तन होता है। इस द्ष्टि से तर्कशास्त्र एक गतिशील विद्या है; वह स्थिर, शाश्वत नियमों का संकलन या उल्लेख मात्र नहीं हैं। वस्तुतः विभिन्न भौतिक, जैव एवं समाजशास्त्रीय विज्ञों के विकास ने तर्कशास्त्र को बहुत प्रभावित किया है। अनुमान और तर्कना की प्रणालियों तथा नियमों से अधिक आज विभिन्न विद्याओं की अन्वेष्ण प्रक्रिया अनुशीलन का विशिष्ट विषय बन गई है। उक्त प्रक्रिया की शास्त्रीय जाँच को रीतिमीमांसा (मेथडॉलॉजी) कहते हैं।
 
यहाँ एक ज्यादा महत्व का स्पष्टीकरण अपेक्षित है। अनुभव एवं चिंतन के विभिन्न क्षेत्रों में हमारी तर्कनाप्रक्रिया एक ही कोटि की नहीं होती। विज्ञान और गणित में तर्कना के तरीके एक प्रकार के हैं। साहित्यसमीक्षा अथवा नैतिक निर्णयों के क्षेत्र में भी ये तरीके काफी भिन्न हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि कला समीक्षा, साहित्य मीमांसा, नीतिशास्त्र आदि के क्षेत्रो में परीक्षकों के स्वमतस्थापन एवं परमतखंडन की प्रणलियाँ एक ही सी नहीं होतीं। वे काफी भिन्न भी हो सकती हैं और होती हैं। इस स्थिति को निम्नांकित शब्दों में भी प्रकट किया जाता हैः गुणत्मक दृष्टि से भिन्न प्रत्येक कोटि के विषय-विवेचन (डिस्कोर्स) के नियामक मानदंड अथवा नियम बहुत कुछ अलग होते है; अर्थात चिंतन और विवेचन के प्रत्येक क्षेत्र का तर्कनाशास्त्र एक निराली कोटि का होता है। इससे अनुगत होता है कि सब प्रकार के चिंतनविवेचन का नियामक कोई एक तर्कशास्त्र नहीं है।
 
=== प्रतीकाश्रित (प्रतीकमूलक) तर्कशास्त्र ===