"तापमापी": अवतरणों में अंतर

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: R1 = R0 { 1+ At+ Bt<sup>2</sup>+ C (t - 100) t<sup>3</sup>}
 
इसमें ( ) सें. और 0.00° सें. ताप पर विद्युत प्रतिरोध क्रमश: R1 और R0 है। (A,B,C) स्थिरांक हैं, जो भाप, गंधक और ऑक्सीजन बिंदुओं के प्रतिरोधों द्वारा निकाले जाते हैं।
 
(2) '''0° से 660° सें तक''':
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== विद्युतप्रतिरोधी तापमापी ==
जिस प्रकार तापवृद्धि से पदार्थों की लंबाई बढ़ती है उसी प्रकार धातु के तारों के विद्युत्प्रतिरोध (resistance) में भी ताप द्वारा वृद्धि होती है। तापीय प्रसरण की तरह इस वद्धि का भी तापमापन में उपयोग हो सकता है। इस कार्य के लिये अनेक धातुओं के तारों का उपयोग होता है। फिर भी [[प्लैटिनम]] तार के बने तापमापी का महत्व इसलिये अधिक होता है क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय पैमाने के अंतर्वेशन के लिये प्रयुक्त होता है। तार शुद्ध घातु का और विकृतिमुक्त (unstrained) होना आवश्यक है। तार को बल्ब में पतले अभ्रक, या स्फटिक के ढाँचे पर लपेट कर रखते हैं और उसका विद्युतप्रतिरोध मापकर आवश्यकतानुसार उचित समीकरण ( जैसे : Rt = R0 (1+ At+ Bt<sup>2</sup> ) द्वारा ताप की गणना कर लेते हैं। प्रतिरोधमापन के लिये कई प्रकार के विद्युत्सेतुओं (bridges) का उपयोग किया जाता है। इनमें [[कैलेंडर-ग्रिफिथ का सेतु]] पुराना और सर्वविदित है। यह [[व्हीट्स्टोन सेतु]] के सिद्धांतपर आधारित है।
 
प्रतिरोधमापन के प्लैटिनम तार को जिन वाहक तारों से संयुक्त किया जाता है वे भी ऊष्मा से गर्म हो जाते हैं, जिससे उनके प्रतिरोध में भी परिवर्तन हो जाता है। यह परिवर्तन भी सेतु द्वारामापित होकर ताप की गणना में अशुद्धि का कारण बन जाता है। कैलेंडर ग्रिफिथ सेतु से इस त्रुटि को दूर करने के लिये ठीक इसी प्रकार के वाहक तार सेतु की संयुग्मी (conjugate) भुजा में भी डाल दिए जाते हैं। दोनों जोड़े तापमापी में पास पास रहते हैं और इनपर ऊष्मा का एक सा प्रभाव पड़ता है। इस कारण सेतु के संतुलन और मापित प्रतिरोध पर इनका कोई असर नहीं होता।
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: E = s T <sup>4</sup>
 
( s ) एक स्थिरांक है। तापमापन के लिये उच्चतापीय वस्तु का विकिरण किसी लेंस अथवा दर्पण से तापांतर युग्म के एक सिरे पर फोकस कर देते है उससे ऊर्जा ऊज्ञात हो जाती है। अगर स्थिरांक मालूम हो तो उपरोक्त समीकरण द्वारा ताप की गणना हो सकती है। वास्तव में अनेक त्रुटियों के कारण ताप का घात 4 से थोड़ा भिन्न होता है। इसलिए व्यवहार में नीचे दिए गए समीकरण का प्रयोग करते हैं:
 
: E = a ( T<sup>b</sup> - T<sup>b</sup><sub>0</sub>)
 
इसमें (a) और (b) स्थिरांक हैं। b स्टीफन के नियमानुसार 4 होना चाहिए, किंतु यहाँ इसको अज्ञात मान लेते हैं। (T) उच्चतापीय कृष्णिका का ताप और (T0) तापांतर युग्म को ताप है। उत्तापमापक को निश्चित तापों की कृष्णिकाओं के समक्ष रखकर a और b का मान निकाल लिया जाता है। यंत्र में विकिरण के फोकसीकरण का ऐसा प्रबंध रहता है कि उससे मापित ताप उच्चतापीय वस्तु की दूरी पर निर्भर नहीं करता। यदि वस्तु पूर्णतया कृष्ण न हो तो इस अशुद्धि के लिये संशोधन कर लिया जाता है।
 
=== प्रकाशीय उत्तापमापी ===
इनमें कृष्णिका से प्राप्त विकिरण के वर्णक्रम (spectrum) का सूक्ष्म अंश, जिसका तरंगदैर्ध्य लगभग एक होता है, छाँट लिया जाता है और इसकी तीव्रता (intensity) की तुलना एक मानक लैंप की विकिरण तीव्रता से की जाती है। यदि ( l ) तरंगदैर्ध्य के लिये (T1) परमताप पर कृष्णिका की विकिरण तीव्रता (T1) पर उसकी तीव्रता (E2) हो, तो प्लांक के नियमानुसार
 
: log (E1 / E2) = ( C2 / l ) ( 1/ T2 - 1 / T1 )
 
(C2) एक स्थिरांक होता है जिसका मान प्लांक सिद्धांत द्वारा निश्चित है। यदि E1, E2 और T1 ज्ञात हों, तो T2 ज्ञात हो जाता है।