"द्विपक्षीय राजनय": अवतरणों में अंतर
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[[प्रथम महायुद्ध]] से पूर्व राज्यों के बीच चतुर, योग्य तथा कुशल राजदूत ही सम्बन्धों को बनाते थे। राज्यों के मध्य मतभेदों अथवा समस्याओं को दूर करने के लिए कई बार दो राज्यों के राज्याध्यक्ष स्वयं बातचीत कर लेते थे। 1970 का ”[[शिमला समझौता]]“ इसका उदाहरण है। यह समझौता भारत द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय राजनय, स्थायी मिशन : कार्य एवं भूमिका 201 और पाकिस्तान के मध्य हुआ था। भारत की ओर से प्रधानमंत्री श्रीमती [[इन्दिरा गांधी]] और पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति श्री भुट्टो ने यह समझौता किया था। इसी प्रकार [[शीत युद्ध]] की समाप्ति करने के लिए अमेरिका तथा रूस की द्विपक्षीय वार्ता द्वारा यह सम्भव हुआ।
द्विपक्षीय राजनय के समर्थन में सबसे बड़ा तर्क यह है कि राज्याध्यक्ष अथवा प्रधानमंत्री किसी भी स्थान पर पहुंच कर समस्या का हल निकाल सकते हैं। कई विद्वान इसके विषय में भी तर्क देते हैं कि द्विपक्षीय वार्ता से समस्या का हल नहीं हो पाता बल्कि समस्या और बढ़ती है। 15 वीं शताब्दी के विख्यात राजदूत फिलिप डी0 कोमाइन्स
द्विपक्षीय राजनय का उपभोग कभी-कभी प्राचार के लिए भी किया जाता है। ऐसी स्थिति में यह एक महत्वाकांक्षी नेता के हाथों में विजय प्राप्त का साधन बन जाता है न कि न्यायोचित समझौते का आधार। प्रायः यह देखा गया है कि इस प्रकार की वार्ता में न तो निर्णय पूरे लिये जाते हैं और जो निर्णय लिये जाते हैं उन्हें समय की कमी के कारण उनको अधीनस्थ अधिकारियों पर छोड़ दिया जाता है। रूस ओर अमरीका के मधुर सम्बन्ध न बन सकने का यही एक कारण है।
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