"न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर
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इस विधि का अनुसरण करने वालों में फॉन जॉली (Von Jolly), पॉयंटिंग (Poynting) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इसमें किसी छोटे पिंड के नीचे कोई अन्य भारी पिंड लाकर (उसके आकर्षण के कारण) छोटे पिंड के भार में होनेवाली वृद्धि ज्ञात करके गुरुत्वस्थिरांक का मान ज्ञात करना ही लक्ष्य था। इसका सिद्धांत इस प्रकार है :
मान लीजिए m संहति का कोई पिंड किसी अत्यंत सुग्राही तुला (जैसे रासायनिक तुला) की एक भुजा से किसी तार द्वारा लटकाया गया है। यदि पृथ्वी की संहति M तथा अर्धव्यास r हो तो उस पिंड पर कार्य करने वाला गुरुत्वाकर्षण बल (अर्थात पिंड का भार)
w = G M m/ r^2............................................................(12)
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G = 6.75´10-8 स. ग. स. इकाई और D = 5.45 ग्राम प्रति घन सें. मी.।
कैवेंडिश की विधि की दुर्बलताओं का परिहार कर उससे अधिक सटीक परिणाम प्राप्त करने के लिए बेली (Baily, सन् १८४३), शील (Reich, सन् १८५२), कॉर्नू और बेली (Cornu & Baily, सन् १८७८) और बॉयज़ (Boys, सन् १८९५), ने कई प्रयोग किए। बॉयज़ ने यह पता लगाया कि क्वार्टज़ के अत्यंत पतले तंतु बनाए जा सकते हैं और दृढ़ता तथा प्रत्यास्थता संबंधी गुणों में वे फौलाद से भी अधिक श्रेष्ठ होंगे। इसलिए कैवेंडिश के प्रयोग में इनका प्रयोग करने पर कैवेंडिश के उपकरण का अनावश्यक दीर्घ आकार कम किया जा सकता है तथा उसके कारण होनेवाली त्रुटियों का बहुत कुछ निराकरण किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त त्रुटियों का बहुत कुछ निराकरण किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त बॉयज़ ने विक्षेप नापने के लिए दीप ऑर मापनी व्यवस्था (
इसमें एक अत्यंत छोटा (लगभग १"लंबा) आयताकार दर्पण द डंडी के स्थान पर प्रयुक्त किया गया था। उससे दो छोटे छोटे गोल ‘अ’ और ‘ब’ (संहति लगभग २.६ ग्राम) क्वार्टज के तागों से लटकाए गए थे जिनके बीच ऊ र्ध्वाधर दूरी लगभग ६" थी इन गोलों पर आकर्षण प्रभाव डालनेवाले गोलों अ और ब का अर्धव्यास लगभग ११ सें. मी. तथा संहति लगभग ८.९ कि. ग्रा. थी। इस प्रकार बड़े और छोटे गोलों के बीच पारस्परिक आकर्षण प्रभाव का बहुत कुछ परिहार कर दिया गया था। बड़े गोलों को पहले छोटे गोलों के अगल बगल इस प्रकार रखा गया था जैसा चित्र (ब) में पूर्णवृत्त द्वारा दिखलाया गया है। इससे दर्पण द में एक और विक्षेप हुआ। पुन: बड़े गोलों को बिंदुओं (dots) द्वारा दिखलाई गई स्थितियों में लाया गया जिससे छोटे गोलों पर विपरीत दिशाओं में आकर्षण हुआ और दर्पण इस बार विपरीत ओर विक्षिप्त हुआ। ज्ञातव्य है कि समतल दर्पण में विक्षेप होने पर परावर्तित किरणों में उसका दूना विक्षेप उत्पन्न होता है। यह विक्षेप दीप और मापनी व्यवस्था द्वारा नाप लिया गया। इसके लिए एक मापनी दर्पण से ७ मीटर दूर रखी गई थी और उसी के नीचे कुछ हटकर, दीप रखा गया था।
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