"पितृ पक्ष": अवतरणों में अंतर

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'''पुष्ट्यर्थश्राद्ध'''- पुष्टि के निमित्त जो श्राद्ध सम्पन्न हो, जैसे शारीरिक एवं आर्थिक उन्नति के लिए किया जाना वाला श्राद्ध पुष्ट्यर्थश्राद्ध कहलाता है।
 
धर्मसिन्धु के अनुसार श्राद्ध के ९६ अवसर बतलाए गए हैं। एक वर्ष की अमावास्याएं'(12) पुणादितिथियां (4),'मन्वादि तिथियां (14) संक्रान्तियां (12) वैधृति योग (12),व्यतिपात योग (12) पितृपक्ष (15), अष्टकाश्राद्ध (5) अन्वष्टका (5) तथा पूर्वेद्यु:(5) कुल मिलाकर श्राद्ध के यह ९६ अवसर प्राप्त होते हैं।'पितरों की संतुष्टि हेतु विभिन्न पित्र-कर्म का विधान है।
 
पुराणोक्त पद्धति से निम्नांकित कर्म किए जाते हैं :- एकोदिष्ट श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध, नाग बलि कर्म, नारायण बलि कर्म, त्रिपिण्डी श्राद्ध, महालय श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध कर्म उपरोक्त कर्मों हेतु विभिन्न संप्रदायों में विभिन्न प्रचलित परिपाटियाँ चली आ रही हैं। अपनी कुल-परंपरा के अनुसार पितरों की तृप्ति हेतु श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए।कैसे करें श्राद्ध कर्म महालय श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त घर में क्या कर्म करना चाहिए।