"भाप का इंजन": अवतरणों में अंतर

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== भाप इंजन का कार्यसिद्धांत (working principle) ==
[[चित्र:Steam locomotive work.gif|center|500px|thumb|भाप की शक्ति से चलने वाली गाड़ी का कार्यसिद्धान्त]]
ऊष्मा इंजन की अधिकतम दक्षता '''(T1-T2 )/T1''' होती है जिसमें '''T1''' और '''T2''' ऊष्मा इंजन चक्र (heat engine cycle) में अधिकतम एवं न्यूनतम ताप हैं। इससे पता चलता है कि इंजन की [[दक्षता]] इन दोनों तापों पर निर्भर करती है। भांप इंजन की दक्षता उतनी ही बढ़ती जाएगी जितनी (T1) का मूल्य बढ़ेगा एवं (T2) का मूल्य घटेगा। (T1) के मूल्य को बढ़ाने के लिए बायलर से निकल कर इंजन में आनेवाली भाप की दाब को बढ़ाना होगा, क्योंकि भाप की दाब जितनी ही अधिक होगी (T1) का मूल्य उतना ही बढ़ेगा। (T1) को बढ़ाने का एक और उपाय है। वह है भाप को अतितापित (superheat) करना। अतितापक का बॉयलर में व्यवहार करके भाप का अधिताप बढ़ाया जाता है। (T2) के मान को कम करने के लिए [[संघनित्र]] (condenser) का व्यवहार करना आवश्यक हो जाता है। संघनित्र में ठंढे जल द्वारा भाप जल में परिवर्तित की जाती है। अत: अच्छे संघनित्र में (T2) का मान ठंढे जल के ताप के बराबर हो सकता है। इससे पता चलता है कि भाप इंजन में अधिक दाब एवं अतितप्त भाप द्वारा कार्य कराने से एवं कार्य कराने के बाद भाप को संघनित्र में प्राप्य ठंढे जल के ताप के बराबर ताप पर जल में परिवर्तित करने से इंजन अधिक दक्ष होगा।
[[चित्र:Steam engine in action.gif|right|thumb|300px|भाप के इंजन का चालित-चित्र]]
बॉयलर से भाप उच्च दाब पर भापपेटी (steam chest) में प्रवेश करती है। पिस्टन जैसे ही स्ट्रोक (stroke) के अंत में पहुँचता है, उसी समय वाल्व चलता है, जिसमें भापद्वार (steam port) खुल जाता है एवं भाप सिलिंडर में प्रवेश करती है। भाप की दाब द्वारा धक्का दिए जाने से पिस्टन आगे बढ़ता हे। इसे अग्र स्ट्रोक (forward stroke) कहते हैं। पिस्टन की चाल द्वारा क्रैंक, क्रैंक शाफ्ट एवं उत्केंद्रक (eccentric) चलते हैं। उत्केंद्रक के चलने से द्वार कुछ और अधिक खुल जाता है। सिलिंडर में भाप तब तक प्रवेश करती रहती है जब तक द्वार एकदम बंद नहीं हो जाता। इस समय विच्छेद (cut off) होता है एवं इसके बाद सिलिंडर में भाप का संभरण (supply) नही हो पाता। सिलिंडर में आई हुई भाप अब प्रसारित होती है एवं इस प्रसार में भाप का आयतन बढ़ जाता है एवं दाब कम हो जाती है। इसी प्रकार के समय भाप कार्य करती है। अग्र स्ट्रोक के अंत में वाल्व भापद्वार को निकास की ओर खोल देता है, जिससे भाप निर्मुक्त होती है। निकली हुई भाप की दाब पश्च दाब (back pressure) के बराबर हो जाती है। निर्मोचन होने के कुछ क्षण के बाद पिस्टन पीछे की ओर लौटता है एवं इसे प्रत्यावर्तन स्ट्रोक (return stroke) कहते हैं। इस स्ट्रोक में लौटते समय पिस्टन सिलिंडर में बची हुई भाप का निकास करता जाता है। जब पिस्टन इस स्ट्रोक के अंत पर पहुँचता है, वाल्व निकास द्वार को बंद कर देता है, जिससे भाप का प्रवाह बंद हो जाता है। सिलिंडर शीर्ष और पिस्टन के बीच कुछ भाप बच जाती है, जो निर्मुक्त नहीं हो पाती है। फिर चक्र की पुनरावृत्ति होती है।