"होम रूल आन्दोलन": अवतरणों में अंतर

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== आन्दोलन की पृष्ठभूमि, प्रारम्भ एवं प्रगति ==
बाल गंगाधर तिलक की छः मास की लम्बी सजा काटने के बाद 16 जून 1914 को जेल से छूटे। कैद का अधिकांश समय माण्डले (बर्मा) में बीता था। भारत लौटे तो उन्हें लगा कि वह जिस देश को छोड़कर गए थे, वह काफी बदल गया है। स्वदेशी आन्दोलन के क्रांतिकारी नेता अरविन्द घोष ने सन्यास ले लिया तथा पांडिचेरी में रहने लगे थे। लाला लाजपत राय अमेरिका में थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सूरत के विभाजन, आन्दोलनकारियों पर अंग्रेजों के दमनकारी प्रहारों और 19901890 के संवैधानिक सुधारों के कारण नरमपंथी राष्ट्रवादियों की निराशा के सम्मिलित सदमे से अभी उबर नहीं पाई थी।
 
तिलक ने सोचा कि सबसे पहले तो कांग्रेस होकर बाकी गरमपंथियों को भी इसमें शामिल करवाया जाए। तिलक को यह विश्वास हो चला था कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का पर्याय बन चुकी है और बिना इसकी इजाजत के कोई भी राष्ट्रीय आन्दोलन सफल नहीं हो सकता। नरमपंथियों को समझाने-बुझाने, उनका विश्वास जीतने तथा भविष्य में अंग्रेजी हुकूमत दमन का रास्ता न अख्तियार करे, इस उद्देश्य से उसने घोषणा की ‘‘मैं साफ-साफ कहता हूँ कि हम लोग हिन्दुस्तान में प्रशासन व्यवस्था का सुधार चाहते हैं जैसा कि आयरलैंड में वहाँ के आन्दोलनकारी मांग कर रहे हैं। अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने का हमारा कोई इरादा नहीं है। इस बात को कहने में मुझे कोई हिचक नहीं कि भारत के विभिन्न भागों में जो हिंसात्मक घटनाएँ हुई हैं, न केवल मेरी विचारधारा के विपरीत है, बल्कि उनके कारण हमारे राजनीतिक विकास की प्रक्रिया भी धीमी हुई है।’’ उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के प्रति अपनी निष्ठा दोहराई और भारतीय जनता से अपील की कि वह संकट की घड़ी में अंग्रेजी हुकूमत का साथ दे।